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चीन और अमरीका के बीच रस्साकशी के बीच भारत मार रहा है बाज़ी, बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का बना गंतव्य : रिपोर्ट

चीन और अमरीका के बीच रस्साकशी कोई ढंकी छिपी बात नहीं है, अमरीका के अधिकारी तो इस विषय पर खुलकर और मुखर होकर बयान दे रहे हैं वहीं चीन भी अपनी गतिविधियों से संदेश दे रहा है कि वह पीछे हटने वाला नहीं है। इस खींचतान के बीच एक नया डेवलपमेंट देखने में आ रहा है कि दुनिया की बड़ी कंपनियां उत्पादन के लिए भारत को अपना ठिकाना बनाने को तरजीह दे रही हैं।

रिपोर्टों में इस तरह की कई कंपनियों का उल्लेख किया जा रहा है। डिकसन टेक्नालोजीज़ ने ढाई साल पहले मोटोरोला कंपनी के फ़ोन की असेंबलिंग का काम शुरू किया है और उसे लगातार आर्डर मिल रहे हैं।

डिकसन की तरह भारत की दूसरी भी कई कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों से आर्डर मिल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि दुनिया की बड़ी इंटरनैशनल कंपनियां अपने उत्पादन केन्द्रो में विविधता लाना चाहती है और अमरीका चीन तनाव से बचने के लिए भारत को अपना ठिकाना बना रही हैं।

भारतीय कंपनियों के मालिक कहते हैं कि सरकार उन्हें इसके लिए इंसेंटिव दे रही है। सरकार दवाओं, कपड़े और इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों को बढ़ावा देना चाहती है ताकि वे उत्पादन बढ़ा सकें।

भारत जहां आर्थिक क्षेत्र में विकास का रहा है वहीं उसके सामने बेरोज़गारी की समस्या बहुत गंभीर है। भारत के पास श्रमबल भारी संख्या मौजूद है लेकिन काम के अवसर उस अनुपात में नहीं हैं इसलिए सरकार की कोशिश है कि उत्पादन का क्षेत्र विकास करे ताकि रोज़गार के अवसर पैदा हों।

भारत में कुछ ही महीनों के भीतर चुनाव होने वाले हैं और देखने में आया है कि ग़रीबी, महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण बहस का विषय बनते जा रहे हैं इसलिए भारत सरकार के सामने यह चुनौती है कि वो इन समस्याओं पर नियंत्रण करे।

भारत के प्रधानमंत्री जिस समय चुनाव प्रचार कर रहे थे और पहली बार प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में थे तो उन्होंने वादा किया था कि हर साल 2 करोड़ रोज़गार देंगे। यह वादा विपक्षी दलों की ओर से बार बार याद दिलाया जाता है और मोदी सरकार की आलोचना की जाती है कि उसने वादा पूरा नहीं किया।