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चुल्ल-2….ऐसी ”चुल्ल” कब मचती है?

Tajinder Singh
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चुल्ल 2….
आखिर प्रकृति ने नर और मादा को इस रूप में क्यों ढाला। इनकी बायोलॉजी में ये अंतर किस लिए। स्त्री मास में केवल एक डिम्ब उत्पन्न करती है जबकि पुरुष लाखों की संख्या में स्पर्म लगातार उत्पन्न कर सकता है। पुरुष की पोलीगामी प्रकृति की भी एक खास वजह है। दरअसल प्रकृति की ये सारी व्यवस्था केवल एक कारण से है। ये दुनिया आगे बढ़ती रहनी चाहिए। जोड़े सन्तान उत्पन्न करें। इसके लिए उनमें रुचि जागृत करने की ये प्राकृतिक व्यवस्था है।

खैर प्रकृति की एक और व्यवस्था को देखिए। जिसे हार्मोन्स कहते हैं या खास रसायनों का शरीर पर खास प्रभाव। अगर पूरा ब्रह्मांड भौतिकी के नियमो अनुसार चलता है तो प्रकृति की कृति स्त्री और पुरुष अपने रसायनों/हार्मोन्स अनुसार।

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दरअसल हमारा शरीर रसायनों के प्रभाव में एक खास प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य है। ये सारा केमिकल लोचा है। जो अक्सर हमारे बस में नही होता। इन पर एक हद तक ही नियंत्रण पाया जा सकता है।

एक स्त्री के मासिक के समय या मेनोपॉज के समय उसके पल पल बदलते मूड और शारीरिक परिवर्तनों के लिए उसके हार्मोन्स जिम्मेवार हैं। गर्भावस्था के समय किसी खास व्यंजन या मिट्टी खाने की ललक बढ़ना भी रसायनों के कारण है। सेक्स के लिए स्त्री की रुचि अरुचि भी उसके मासिक चक्र की अवधि के दौरान अलग अलग रहती है। इसकी वजह भी मासिक चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में स्त्रावित हुए हार्मोन्स ही हैं। स्त्री इस अवस्था को एक सीमा तक ही कंट्रोल कर सकती है। अन्यथा अधिकतर तो रसायनों अनुरूप ही प्रतिक्रिया देती हैं।

सामान्यतः ये माना जाता है कि पुरुष, सौंदर्य या नग्नता के प्रति बहुत जल्द प्रतिक्रिया देते हैं। और कई बार ये सामाजिक व्यवहार के अनुकूल नही होता और स्त्रियों को नागवार गुजरता है। लेकिन इसके पीछे भी हार्मोन्स ही हैं। ये पाया गया है कि किसी उत्तेजक दृश्य या तस्वीर को देखने पर पुरुष के मस्तिष्क का ह्यपोथालमुस हिस्सा स्त्री के मुकाबले ज्यादा सक्रिय होता है। इस का सम्बंध पुरुष के नर्व सिस्टम से है। इससे सांस तेज चलना, खून का दौरा और उतेजना का बढ़ जाना, शारीरिक परिवर्तन शुरू हो जाना आदि है।

प्राकृतिक रूप से पुरुष और स्त्री समान नही है। इसलिए सौंदर्य या नग्नता के प्रति दोनों की प्रतिक्रिया भी समान नही होती। प्रतिक्रिया की तीव्रता का सम्बंध उनके शारीरिक रसायनों के स्त्राव पर निर्भर करता है। जैसे पुरुष के लिए testosterone और स्त्रियों के लिए एस्ट्रोजन। लेकिन स्त्रियों की प्रतिक्रिया कई अन्य बाहरी कारकों पर भी निर्भर करती है।
जैसे स्त्रियां अपने मासिक चक्र के दौरान विभिन्न प्रतिक्रियाएं देने को बाध्य हैं। वैसे ही पुरुष की तत्कालिक प्रतिक्रिया भी उसके हार्मोन्स के कारण ही होती है। लेकिन यहां पुरुष के हार्मोन्स को आधार बना कर किसी स्त्री की अस्मिता से खेला नही जा सकता। एक पुरुष से समाज मे सामाजिक नियमो के अनुरूप ही व्यवहार अपेक्षित है।

यही सामाजिक नियम और बंधन स्त्रियों को अपनी शारीरिक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए भी बाध्य करते हैं। सदियों से स्त्रियों को एक खास तरह से व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता रहा है। और ये सिखाया जाता है कि एक आदर्श स्त्री को कैसे व्यवहार करना चाहिए। कैसे उठना, बैठना और बोलना चाहिए। ये सिखाई हुई आदर्शवादिता भी एक बंधन है कि स्त्री कभी सेक्स के लिए पहल नही करती। उसे सिखाया जाता है कि ये आदर्श नारी के लक्षण नही। ऐसा नही की उसके हार्मोन्स उसे बाध्य नही करते। लेकिन सदियों के प्रशिक्षण से उसने खुद पर नियंत्रण करना सीख लिया होता है। लेकिन ये नियंत्रण पुरषों ने थोड़ा कम सीखा होता है क्योंकि हमारा समाज पुरुष प्रधान है। इसलिए पुरषों को एक खास ढंग से जीने की आदत पड़ चुकी है। बकौल मुलायम सिंह यादव “लड़कों से कभी कभी गलतियां हो जाती हैं।”

बहरहाल यहां मेरा मकसद पुरषों के अपराध को कमतर आंकना नही। बल्कि ये कहना है कि मर्द और स्त्री दोनों अपने रसायनों अनुरूप प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य हैं। पुरषों की यौन प्रतिक्रिया उनके कुछ रसायनों और शारीरिक अंतर के कारण स्त्रियों से थोड़ी तीव्र और तत्काल होती है। पुरुष को इतने सारे विशेषण इस थोड़ी सी अतिरिक्त हार्मोनल उत्तेजना के कारण ही मिले हैं।

खैर पुरुष भी इसी समाज का हिस्सा है। जैसे जैसे स्त्रियों की भागीदारी, उनका दबदबा बढ़ेगा पुरुष को भी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीखना होगा अन्यथा सिखा दिया जाएगा।
वैसे अगर पुरुष के चरित्र को थोड़ा लाइटर वे में कहा जाए तो पुरुष इतना ज्यादा शालीन है कि सामने टू पीस में खड़ी स्त्री को भी जब देखता है तो उसकी नजर वहीं रहती है जहां वस्त्र रहते हैं।

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