इतिहास

*जंग-ए-आज़ादी मे परिवार के साथ योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल क़ादिर बावज़ीर*

Ataulla Pathan
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31डिसेंबर यौमे वफात
*जंग ए आजादी मे परिवार के साथ योगदान देनेवाले स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल कादिर बावज़ीर*

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🟫 *बारदोली सत्याग्रह में अब्दुल कादिर सरदार पटेल 1930 के डाण्डी मार्च में आप गांधीजी के साथ-साथ अगली कतार में शामिल थे।*
🟩 *देश की आजादी के खातीर अपना कारोबर छोडकर अपने परिवार के साथ सारी जिंदगी साबरमती आश्रम मे गुजारी*

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गुजरात के एक अमीर कारोबारी ख़ानदान में पैदा हुए अब्दुल कादिर ऐशो-इशरत से पले बढ़े थे। आपने अच्छे स्कूलों में तालीम पायी और खुद अपना कारोबार संभालने लगे। कारोबार के सिलसिले में आप साउथ अफ्रीका गये और वहां घोड़े का बड़ा कारोबार करने लगे। ट्रांसवाल शहर में आपको लोग बड़े ताजिर की हैसियत से जानते थे। कारोबार के अलावा आप वहां हिन्दुस्तान के लोगों की समाजी सोसायटी बनाकर उनकी मदद भी किया करते थे – साथ ही, मजहबी तबलीग का काम भी अंजाम देते थे। बाद में जोहानसबर्ग की मस्जिद में आप इमामत भी करने लगे। उसके बाद आपको लोग इमाम साहब के नाम से जानने लगे। आप अच्छी शोहरत और इज़्ज़त के मालिक थे। सन् 1903 में आपकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। यूं तो आप मुल्क की आज़ादी के लिए गांधीजी को चंदा देने गये थे लेकिन गांधीजी से बातचीत के बाद आप उनकी आइडियालॉजी से बहुत असरअंदाज़ हुए और गांधीजी के बहुत करीब आ गये। सन् 1904 में फोनिक्स सेटेलमेंट के तहत आप अपनी ऐशो-इशरत की जिंदगी छोड़कर जंगे-आज़ादी के लिए फकीर बन गये।

साउथ अफ्रीका में आपने गांधीजी के सभी प्रोग्रामों और मुज़ाहिरों में इण्डियन सोसायटीज़ के लोगों की कयादत की। सन् 1907 में आप हमीदिया इस्लामिया सोसायटी के सदर चुने गये। साउथ अफ्रीका के हिन्दुस्तानी समाज में इस सोसायटी को बहुत एहतराम से देखा जाता था। सन् 1908 में आप गिरफ्तार कर लिये गये । जेल से छूटने के बाद भी आप आज़ादी की अलख जगाते रहे। सन् 1914 में जब गांधीजी साउथ अफ्रीका से वापस आने लगे तो उनके साथ अब्दुल कादिर भी अपनी फैमिली को साथ लेकर सारा कारोबार बंद करके हिन्दुस्तान आ गये और साबरमती आश्रम में रहने लगे। आश्रम में आपने प्रिटिंग के काम की जिम्मेदारी संभाली। आपकी बेगम और दोनों लड़कियां आमीना और फ़ातिमा आश्रम में औरतों के साथ दूसरे कामों में हाथ बंटाने लगीं।

अब्दुल कादिर और उनकी लड़कियां गांधीजी के हर आंदोलन में साथ-साथ रहतो थी और सन् 1928 व 1929 में तीन बार गिरफ्तार भी हुई। आपकी बड़ी बेटी आमीना की शादी भी आश्रम से ही हुई, जिसका दावतनामा गांधीजी की तरफ से छापा गया था। उन्होंने ही मेहमानों की आगवानी की थी।

बारदोली सत्याग्रह में अब्दुल कादिर सरदार पटेल 1930 के डाण्डी मार्च में आप गांधीजी के साथ-साथ अगली कतार में शामिल थे।

जब उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया तो वहां जेल में यातना की वजह से वह बीमार हो गये। हालत खराब होने पर गांधीजी की कोशिशों से अक्टूबर सन् 1931 में आप जेल से रिहा हुए, लेकिन सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ और 31 दिसम्बर सन् 1931 को आश्रम में ही इंतकाल कर गये। आपके इंतकाल पर गांधीजी ने कहा कि एक बड़ी शख्सियत, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी अपने परिवार के साथ मुल्क की
साथ शामिल हुए।

आज़ादी के आंदोलन में कुर्बान कर दी, आज हमसे बिछड़ गया। इसकी कमी पूरी होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है।
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संदर्भ- 1)THE IMMORTALS
– syed naseer ahamed
2)लहू बोलता भी है

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संकलन तथा अनुवादक लेखक *अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी तालुका संग्रामपूर जिल्हा बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726