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जब नादिर शाह दिल्ली से महज़ सौ मील दूर पहुंच गया तो….

Syed Yahiya
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18वीं सदी के शुरूआती दशक से ही यानि औरंगज़ेब आलमगीर की वफ़ात के फ़ौरन बाद से मुग़ल सल्तनत के ओरुज का सूरज डूबने लगा था। जब तक शराब और शबाब में डूबे रहने वाले औरंगज़ेब के परपोते मोहम्मद शाह रंगीला ने हुकूमत संभाली। हालात बेकाबू होने लगे। ऐसे में सत्ता कैसे चलती और कौन चलाता? अवध, बंगाल और दक्कन जैसे उपजाऊ और मालदार सूबों के नवाब अपने-अपने इलाक़ों के बादशाह बन बैठे।

उधर, दक्षिण में मराठों ने दामन खींचना शुरू कर दिया और सल्तनत-ए-तैमूरिया के बखिए उधड़ने शुरू हो गए लेकिन सल्तनत के लिए सब से बड़ा ख़तरा पश्चिम से नादिर शाह की शक्ल में शामत-ए-आमाल की तरह नमूदार हुआ और सब कुछ तार-तार कर गया।

नादिर शाह ने हिंदुस्तान पर हमला क्यों किया शफ़ीक़ुर्रहमान ने अपनी शाहकार तहरीर ‘तुज़के नादरी’ में इसकी कई वजहें बयान की हैं।
मसलन हिंदुस्तान के गवैये ‘नादरना धीम-धीम’ कर के हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, या फिर ये कि ‘हम तो हमला करने नहीं बल्की अपनी फूफी जान से मुलाक़ात करने आए थे.’ मज़ाक अपनी जगह, असल सबब सिर्फ़ दो थे।


पहलाः हिंदुस्तान फौजी ताकत के लिहाज़ से कमज़ोर था।
दूसराः माल और दौलत से भरा हुआ था।

गिरावट के बावजूद अब भी काबुल से लेकर बंगाल तक मुग़ल शहंशाह का सिक्का चलता था और उसकी दारुलहकूमत दिल्ली उस समय दुनिया का सबसे बड़ा शहर थी। जिसकी बीस लाख नफ़ूस पर शामिल आबादी लंदन और पेरिस की संयुक्त आबादी से ज़्यादा थी, और उसका शुमार दुनिया के अमीर तरीन शहरों में किया जाता था।

इसलिए नादिर शाह 1739 में हिंदुस्तान जाने के मशहूर रास्ते ख़ैबर दर्रे को पार करके हिंदुस्तान में दाख़िल हो गया। कहा जाता है कि मोहम्मद शाह को जब भी बताया जाता कि नादिर शाह की फौज आगे बढ़ रही हैं तो वो यही कहते:- ‘हनूज़ दिल्ली दूर अस्त यानी अभी दिल्ली बहुत दूर है, अभी से फ़िक्र की क्या बात है.’

जब नादिर शाह दिल्ली से महज सौ मील दूर पहुंच गया तो मुग़ल शहंशाह को ज़िंदगी में पहली बार अपनी फौजियों की कयादत खुद करनी पड़ी। यहां भी हालात ऐसे की उनके लश्कर की कुल तादाद लाखों में थी, जिसका बड़ा हिस्सा बावर्चियों, संगीतकारों, कुलियों, सेवकों, खजांचियों और दूसरे नागरिक कर्मचारियों का था जबकि लड़ाका फौज एक लाख से कुछ ही ऊपर थी।

उसके मुक़ाबले पर ईरानी फौज सिर्फ़ 55 हज़ार की थी। लेकिन कहां जंगों में पले नादिर शाही लड़ाका दस्ते और कहां हंसी खेल में धुत मुग़ल सिपाही। करनाल के मैदान में सिर्फ़ तीन घंटों में फैसला हो गया और नादिर शाह मोहम्मद शाह को क़ैदी बनाकर दिल्ली के फतेह की हैसियत से शहर में दाख़िल हुआ।

(सय्यद याहिया)

February 24 1739: The army of Iranian ruler Nadir Shah defeats the forces of the Mughal emperor of India, Muhammad Shah.

 

Now let’s go further back and dive deeper, here is a letter written by Nadir Shah of Afshar dynasty, on the down left which I marked nader says to Ottoman king that “Caucasus was a part of IRAN and I took it back” again no Persia


Lone Wolf Ratnakar
@SadaaShree
#TodayinHistory The Persian ruler Nadir Shah routs the much larger Mughal army of Muhammad Shah at Karnal in 1739, in just three hours. Delhi would be looted, and a skirmish with his soldiers ends in a bloody massacre leaving 30,000 dead.