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जब नूह में हिन्दुत्वादियों की भीड़ ने मस्जिद पर कर दिया था हमला, सरदार गुरवचन सिंह वहां फंसे लोगों को बचाने पहुंच गए थे : रिपोर्ट

31 जुलाई को हरियाणा के नूंह में बजरंग दल ने धार्मिक यात्रा का आयोजन किया था.
यात्रा में हज़ारों की संख्या में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं और श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया.
यात्रा जब नूंह में मंदिर से आगे बढ़ी तो पथराव शुरू हो गया और देखते ही देखते आगज़नी शुरू हो गई.
भीड़ ने शहर की सड़कों और मंदिर के बाहर गोलियां भी चलाईं.
बड़ी संख्या में लोग मंदिर में फंसे रहे, जिन्हें शाम को प्रशासन की मदद से बाहर निकाला गया.
नूंह से शुरू हुई हिंसा के बाद बना तनाव, देर शाम हरियाणा के सोहना और गुरुग्राम तक पहुँच गया.
हिंसा में अब तक छह लोगों की मौत हुई, जिसमें दो होमगार्ड भी शामिल हैं.
नूंह में हिंसा की प्रतिक्रिया में मुसलमानों के कई ठिकानों और मस्जिदों पर हमले हुए हैं.
पुलिस ने बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियां की हैं और नूंह के कई इलाक़ों में बुलडोज़र से सैकड़ों निर्माण तोड़े गए हैं.
जिला प्रशासन के अनुसार यहां 8 अगस्त तक इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं.

31 जुलाई को हरियाणा के नूंह में सांप्रदायिक हिंसा के बाद आसपास के इलाक़ों में तनाव था.

यहाँ से क़रीब 20 किलोमीटर दूर सोहना में भी हालात तनावपूर्ण हो रहे थे.

शहर की सबसे बड़ी और इस इलाक़े की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक शाही जामा मस्जिद के इमाम कलीम काशफ़ी को कुछ होने का अंदेशा तो था.

लेकिन उनका दिल ये मानने को तैयार नहीं था कि जिस इलाक़े में उनका परिवार दशकों से रह रहा है, वहाँ उन्हें कुछ हो सकता है.

नूंह के घटनाक्रम के बाद कलीम काशफ़ी सतर्क थे. आसपास के लोगों ने उन्हें कुछ दिन के लिए सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह भी दी थी.

लेकिन एक अगस्त को सोहना में शांति समिति (अलग-अलग धर्मों के नेताओं और पुलिस प्रशासन) की बैठक हुई और ये तय हुआ कि शहर के भाईचारे को बनाने के लिए मिलकर काम किया जाएगा.

इस बैठक में शामिल रहे क्षेत्रीय पार्षद के पति गुरवचन सिंह ने बैठक से पहले इमाम कलीम काशफ़ी को चेतावनी दी थी कि वो अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर भेज दें.

लेकिन बैठक के बाद उन्होंने कलीम काशफ़ी से कहा कि ‘अब हालात बेहतर होने के संकेत मिल रहे हैं.’

जब भीड़ ने मस्जिद पर कर दिया हमला
शाही मस्जिद के परिसर के ही एक हिस्से में इमाम और उनके भाइयों के परिवार रहते हैं.

नूंह के घटनाक्रम के बाद मस्जिद की सुरक्षा में पुलिस तैनात कर दी गई थी.

कलीम काशफ़ी कहते हैं, “प्रशासन और आसपास के लोगों ने हमें सुरक्षा का भरोसा दिया था. पुलिस भी मौजूद थी, ऐसे में डर के बावजूद हम परिवार सहित यहीं रुके रहे.”

सोहना में मुसलमानों की सीमित आबादी है. शाही जामा मस्जिद के आसपास मुसलमानों के गिने-चुने घर हैं.

मस्जिद के इमाम के संयुक्त परिवार के क़रीब 40 लोगों के अलावा यहाँ आसपास इक्का-दुक्का मुसलमान ही हैं.

शाही जामा मस्जिद का सही-सही इतिहास तो नहीं मिलता है लेकिन इमारत देखकर लगता है कि ये मस्जिद सदियों पुरानी हैं.

इमाम कलीम काशफ़ी के मुताबिक़ ये मस्जिद अलाउद्दीन खिलजी के आदेश पर बनाई गई थी.

तीन बड़े गुंबदों वाली ये मस्जिद ऊँचाई पर बनी है.

इसके एक तरफ़ बारह खंबों वाला विशाल गुंबद है और उससे सटकर मकबरे जैसी एक इमारत है जिसमें अब इमाम और उनके परिवार के लोग रहते हैं.

मंगलवार दोपहर क़रीब एक बजे इमाम काशफ़ी को सूचनाएँ मिलने लगीं कि मस्जिद पर हमला हो सकता है.

उन्होंने अपने परिवार को कमरों में बंद कर लिया.

दोपहर क़रीब एक बजे कुछ युवकों ने मस्जिद में घुसने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें दौड़ा दिया.

कलीम काशफ़ी बताते हैं, “दो-तीन युवा मस्जिद की दीवार फांदकर अंदर आए तो पुलिस ने उन्हें वहाँ से भगा दिया. हमने तुरंत इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को दी. एसएचओ मौक़े पर पहुँचे और मस्जिद पर हमला करने आए युवकों के छोटे समूह को खदेड़ दिया.”

काशफ़ी बताते हैं, “लेकिन इसके कुछ मिनट बाद ही बड़ी तादाद में भीड़ ने दूसरी तरफ़ से मस्जिद पर हमला कर दिया. पुलिस भी उनके सामने बेबस हो गई.”

जब युवाओं की भीड़ आगे बढ़ रही थी, काशफ़ी के भतीजे सादिक़ मस्जिद परिसर में मौजूद थे.

भीड़ को देखते ही उन्होंने रिहाइश वाले इलाक़े का दरावाज़ा बंद किया. अपने घर की रसोई की जाली से वो भीड़ को हमला करते हुए देख रहे थे.

सादिक़ बताते हैं, “हमें घर की महिलाओं और बच्चों की फ़िक्र थी. भीतर से दरवाज़ा बंद करके हमने उन्हें गुंबद के ऊपर चढ़ा दिया ताक़ि हमलावर उन्हें देख ना पाएँ. हमने बाहर से ताला लगा दिया था ताकि भीड़ को लगे कि कोई भीतर नहीं है.”

सादिक़ ने घर की एक जाली से मस्जिद पर हमले का एक छोटा वीडियो भी बनाया. इस वीडियो में हाथों में हथियार लिए हमलावर मस्जिद पर में तोड़फोड़ करते दिख रहे हैं.

इस दौरान मस्जिद में इमाम और उनके परिवार के फँसे होने की ख़बर स्थानीय पार्षद गुरवचन सिंह को लग गई थी.

उन्होंने तुरंत आसपास के सिख नौजवानों को इकट्ठा किया और मस्जिद की तरफ़ बढ़े.

‘जान बचाना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है’
गुरवचन बताते हैं, “स्थानीय पुलिस दंगाइयों को खदेड़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन उनकी संख्या कम थी. हमें आगे बढ़ता देखकर पुलिस का भी हौसला बढ़ा. जब तक हम मस्जिद परिसर में दाख़िल हुए, दंगाई फ़रार हो चुके थे.”

गुरवचन सिंह कहते हैं, “हमने पुलिस के साथ मिलकर इमाम और उनके परिवार का रेस्क्यू किया और उन्हें सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया. हमने इमाम साहब से कहा था कि अगर वो हमारे साथ रहना चाहें तो रह सकते हैं.”

क्या गुरवचन सिंह को इस दौरान डर लग रहा था?

इस सवाल पर वो कहते हैं, “हमें सिर्फ़ ये पता था कि जान बचाना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है. हम इमाम और उनके परिवार को बचपन से जानते हैं. हम बस अपने धर्म का पालन कर रहे थे.”

मस्जिद से क़रीब 200 मीटर दूर सिखों की अच्छी ख़ासी आबादी रहती हैं. यहाँ क़रीब 300 सिख परिवार और एक बड़ा गुरुद्वारा है.

एक सिख व्यक्ति ने अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए कहा, “यहाँ के सिख मुसलमान भाइयों की मदद करने पहुंचे क्योंकि वो फँसे थे. मायने ये नहीं रखता कि उनका धर्म क्या है, मायने ये रखता है कि उनकी जान बचानी थी.”

इस घटनाक्रम की तस्दीक़ करते हुए सादिक़ कहते हैं, “पुलिस जब दंगाइयों को खदेड़ रही थी तब आसपास रहने वाले सिख यहाँ पहुँचे और हमारा हालचाल पूछा और कहा कि किसी को चोट तो नहीं लगी है. उन्होंने कहा कि अगर हम कहीं जाना चाहते हैं तो उनकी गाड़ियाँ हाज़िर हैं. लेकिन फिर प्रशासन ने बस की व्यवस्था की तो वो पुलिस के साथ मिलकर हमारे परिवार को सुरक्षित छोड़कर आए.”

इमाम कलीम काशफ़ी कहते हैं, “हमें ये भरोसा था कि हमारे पड़ोसी हमारे साथ हैं. हमले के दौरान सिख भाई यहाँ आए, पड़ोस में सैनी अस्पताल है. वहाँ से भी लोग हमारे पास पहुँचे और हाल पूछा.”

कलीम काशफ़ी कहते हैं, “हमारा परिवार पिछले 50 साल से यहाँ रह रहा है. 1947 के बँटवारे के बाद ये मस्जिद बंद पड़ी थी. हमारे दादा ने आकर इसे खोला और इसे आबाद किया. 92 का दंगा हुआ लेकिन यहाँ कुछ नहीं हुआ. न जाने कितनी बार हालात तनावपूर्ण हुए, लेकिन मस्जिद पर कभी हमला नहीं हुआ.”

इस हमले के दौरान दंगाइयों ने मस्जिद के पास खड़ी कार और अन्य वाहनों को तोड़ दिया.

मस्जिद में रखे वॉटर कूलर, कुर्सियों और पंखों को भी तोड़ दिया गया. मस्जिद को हमले के बाद साफ़ कर दिया गया है. लेकिन यहाँ हर तरफ़ हमले के निशान दिखाई देते हैं.

मिंबर (वो जगह जहाँ खडे़ होकर इमाम ख़ुत्बा देते हैं) तोड़ दिया गया है.

बिजली के बोर्ड उखड़े हुए हैं. मज़बूत दरवाज़े भी चटक गए हैं. मस्जिद में लगी घड़ी उसी वक़्त बंद हो गई जब उस पर डंडा मारा गया. ये अभी भी दोपहर डेढ़ बजे का वक़्त दिखा रही है.

‘अगर पुलिस गोली ना चलाती तो कुछ भी हो सकता था’
सादिक़ कहते हैं, “हमलावर जो कर सकते थे उन्होंने किया. हमारे घर की महिलाएँ फँसी हुईं थी. सभी की साँसें अटकी थी. अगर उन्हें पता होता कि भीतर हम लोग हैं तो वो दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश भी करते थे.”

सादिक़ एक निजी कंपनी में काम करते हैं और हिंसा के बाद से दफ़्तर नहीं जा रहे हैं.

वो अब घर से ही काम कर रहे हैं.

सादिक़ कहते हैं, “इस हमले से जो आर्थिक नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई तो हो जाएगी लेकिन जो निशान हमारे ज़ेहन पर रह गए हैं उन्हें मिटाना आसान नहीं है.”

सादिक़ की बुआ के बेटे सुहैल भी इसी परिसर में रहते हैं और गुरुग्राम में नौकरी करते हैं.

सुहैल भी हमले के वक़्त यहीं मौजूद थे और इस समय वो भी वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं.

सुहैल कहते हैं, “इस घटना को भुलाना हमारे लिए आसान नहीं होगा. अगर पुलिस गोली ना चलाती तो यहाँ कुछ भी हो सकता था.”

सुहैल कहते हैं, “मेरे कई मुसलमान दोस्त हैं जो अब गुरुग्राम से वापस चले गए हैं.”

जामा मस्जिद में इस समय पुलिस तैनात हैं. यहाँ अब तनावपूर्ण शांति हैं.

इमाम के परिवार की महिलाओं ने यहाँ से क़रीब आठ किलोमीटर दूर एक गाँव में पनाह ली है. वो एक शैक्षणिक संस्थान के परिसर में रह रही हैं.

कलीम काशफ़ी कहते हैं, “हम जल्द से जल्द अपने परिवार के साथ घर लौटना चाहते हैं.”

लेकिन क्या उनके दिल से ख़ौफ़ निकल पाएगा?

कलीम कहते हैं, “ये हमला हमारी सोच के बाहर की बात है. जब आँखों के सामने से मौत गुज़रे तो ख़ौफ़ तो होता ही है, लेकिन हम मस्जिद को छोड़कर कहाँ जाएँगे और किसके भरोसे इस विरासत को छोड़ेंगे?”

गुरुग्राम पुलिस ने अभी इस हमले के संबंध में किसी को गिरफ़्तार नहीं किया है.

सोहना के एसीपी नवीन सिंधु कहते हैं, “अभी हम जाँच कर रहे हैं. जाँच के बाद कार्रवाई होगी.”

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दिलनवाज़ पाशा
पदनाम,बीबीसी संवाददाता सोहना से