नई दिल्ली:दिल्ली की शान माने जाने वाली जामिया मिल्लिया इस्लामिया के खिलाफ केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने को गलत ठहराते हुए एक हलफनामा दिया है. केंद्र ने यूनिवर्सिटी को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिए जाने का विरोध कर रही है।
मोदी सरकार ने हलफनामे में कहा है कि ऐसा जरुरी नहीं है कि जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के बोर्ड का निर्वाचन हो और जरुरी नहीं है कि इसमें मुस्लिम धर्म को मानने वालों की ही अधिकता हो. ऐसे में जामिया के अल्पसंख्यक संस्थान होने का सवाल ही नहीं उठता।
मोदी सरकार के इस फैसले पर बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए इसको मुस्लिम शिक्षा सशक्तिकरण के खिलाफ बताया है,और मोदी सरकार द्वारा अल्पसंख्यक कल्याण पर किये जाने वाले वादों और नारों को जुमला बताया है।
Modi government opposes religious minority status of Jamia Millia Islamia https://t.co/BG8BUGXZ3J pic.twitter.com/SeZuTaI2RK
— The Wire (@thewire_in) March 21, 2018
MODI Government is against Muslim Minority education Empowerment this step is against Art 30 of constitution, out of 3.5 crores students in HEducation Muslims are 4.5%only,remember Jumlas of PM quran&computer,Sufi Conference…. https://t.co/o5SW63Floy
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) March 21, 2018
ओवैसी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि “मोदी सरकार मुस्लिम अल्पसंख्यक शिक्षा सशक्तीकरण के खिलाफ है, यह क़दम संविधान की धारा 30 के खिलाफ है, मुस्लिमों में 3.5 करोड़ छात्रों में से केवल 4.5% है, केवल प्रधानमंत्री कुरान और कम्प्यूटर के जुमला, सूफी सम्मेलन को याद रखना”
लेकिन अब केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल किए अपने हलफनामे में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य केस (साल 1968) का हवाला देते हुए बताया है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो यूनिवर्सिटी संसद एक्ट के तहत शामिल है, और सरकार से फंड लेती है उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं माना जा सकता।