देश

#जोशीमठ, धंस रही है ज़मीन… जोशीमठ में घरों की दरारों को देख दिल दहल उठता है : वीडियो-तस्वीरें एंड रिपोर्ट!

 

 

 

Sarvesh Kumar Tiwari
===========
जोशीमठ!
भगवन आदिशंकराचार्य की तपोभूमि ज्योतिर्मठ! नारायण बद्रीनाथ के शयन की भूमि ज्योतिर्मठ! देवभूमि के पूज्य देवस्थलों की केन्द्रभूमि ज्योतिर्मठ! या कहें तो लोभी मनुष्य के विकासवादी अत्याचार के कारण फट रही पहाड़ की छाती पर टूट कर बिखर रहा ज्योतिर्मठ। कुछ भी कह लीजिये, आज का सच यही है कि हमने अपने ही हाथों अपना एक पवित्र देवस्थान ध्वस्त कर दिया है।

पुराण बताते हैं, हमारे पापों के कारण एक दिन माँ गङ्गा विलुप्त हो जाएंगी। इसे विज्ञान की भाषा में समझना हो तो सरस्वती नदी के उदाहरण से समझें। सरस्वती नदी पर शोध करने वालों के अनुसार हिमालय क्षेत्र में हुए किसी बड़े भूस्खलन के कारण नदी की धारायें अपनी दिशा बदल गईं और सनातन सभ्यता की जन्मदात्री माता सरस्वती का अस्तित्व समाप्त हो गया। जोशीमठ से जो शुरू हुआ है, क्या वैसा ही नहीं है? मनुष्य के जिन पापों के कारण माँ गङ्गा को धरा छोड़ना है, उसकी शरुआत हो चुकी है।

हम यदि तनिक भी समझदार होते तो जोशीमठ की दरारें आज विमर्श का सबसे बड़ा मुद्दा होतीं, पर ऐसा है नहीं। हम बहाने ढूंढ रहे हैं कि कैसे अपने पापों को किसी और के माथे मढ़ सकें। हमें बस एक संकेत चाहिये, हम इसे चीन का षड्यंत्र बता कर स्वयं को मुक्त कर लेंगे।

सरकार जोशीमठ के नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होने के दावे कर रही है। देश के बुद्धिजीवी भी उन्हें बचाने की चिन्ता में गल रहे हैं। जोशीमठ को बचाने की बात कहीं नहीं हो रही। होगी भी नहीं, क्योंकि हम जोशीमठ के होने का मूल्य ही नहीं समझ रहे हैं।

सुनने में तनिक कड़वा है पर सच है कि आधुनिक संसाधनों के साथ यदि आप पहाड़ों की ओर जा रहे हैं तो अधर्म कर रहे हैं। यदि आप देवभूमि के पवित्र तीर्थों की यात्रा में सुविधाएं ढूंढते हैं तो पाप करते हैं। इस विनाश का पाप आप ही के माथे लगेगा यदि आप छुट्टियां मनाने के लिए हिमालय क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। आपको समझना होगा कि हिमालय सभ्यता की तपोभूमि है, असभ्यता का ऐशगाह नहीं…

तीस साल पहले तक चार धाम की यात्रा जीवन की अंतिम यात्रा होती थी। इसके बाद लोग उधर ही गल जाते थे, या वापस लौट कर पूर्णतः सन्यासी जीवन व्यतीत करते थे। हमने देखे हैं यात्रा के पहले महीनों से लहसुन प्याज छोड़ देने वाले लोग, लोभ मोह ईर्ष्या झूठ आदि गृहस्थी के सामान्य अवगुणों से पीछा छुड़ा लेने वाले लोग! हम बदरी केदार जाते थे मन की शांति के लिए, परलोक सुधारने के लिए। अब जाते हैं रील बनाने के लिए, ट्रैकिंग के लिए, नदी में बोटिंग के लिए, फेसबुक इंस्टा पर वायरल होने के लिए..

जब केदारनाथ में दारू पी कर रील बनाना फैशन हो जाय, तो धरती फटेगी। जब पैसा कमाने के लोभ में सरकारें मैदान और पहाड़ के बीच का अंतर भूल जांय, तो धरती फटेगी। जब माँ गङ्गा का जल हमें मोक्षदायी अमृत से अधिक विद्युत परियोजना का कच्चा माल लगने लगेगा तो धरती फटेगी। आप रोक पाएंगे? नहीं।

पहाड़ों के विनाश को रोकना है तो इस फर्जी विकास को रोकना होगा। तीर्थ और पर्यटन स्थल का भेद हम जैनियों से सीख लें तो बेहतर, नहीं तो प्रकृति सबकुछ रोक देगी। प्रकृति अपने अपराधियों को कभी माफ नहीं करती।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

Tanushree Pandey
@TanushreePande
Very scary situation unfolding in #Joshimath. Massive cracks and fissures in almost all houses, major hotels and roads. More than 700 families are impacted. Leaning buildings across the town.

Families tell me, “The govt knew everything since last year but never took any action.”

Ritu #सत्यसाधक
@RituRathaur
Very frightening pictures of ‘vikas’ coming from #Joshimath

The Times Of India
@timesofindia
#Joshimath land subsidence | Secretary of Border Management and members of the National Disaster Management Authority to visit Uttarakhand tomorrow and assess the Joshimath situation.

Anand Singh
@Anand_Journ

We demand that what is happening in Joshimath should be announced as a national disaster. Also want to highlight that giving Rs 5,000 is a cruel joke. The work of tunnel of NTPC should be stopped & must be filled, said
@INCIndia
leader

Anoop Nautiyal
@Anoopnautiyal1
The #Joshimath bulletin released by
@ChamoliDm
&
@USDMAUk
of 4 Jan states following:

1. 561 homes across all 9 wards report cracks
2. 2 hotels closed
3. 9 buildings identified with capacity to host 385 people in 70 rooms, 7 hotels & 1 auditorium

This needs massive scaling up!

Anoop Nautiyal
@Anoopnautiyal1
5 decisions by authorities in wake of #Joshimath crisis:

1. Construction of BRO Helang Bypsas stops till further orders
2. Construction of NTPC Tapovan Vishnugad Hydropower project stops till further orders
3. Construction works stop in Joshimath Nagar Palika till further orders

Ritu #सत्यसाधक
@RituRathaur
#Joshimath
NTPC project where they were digging tunnels in the Himalayas and the Char dham Road project are being held responsible by protesting locals for #joshimathsinking
Cracks had started to appear in 2020 itself
Just Stop making Hindu religious places into tourists spots

Digant Rai 🇮🇳
@DigantRai

All those mindless people blaming about development work near #Joshimath should understand that the entire Himalayan range is tectonic joint, formed as a result of the collision between the Indian Plate and Eurasian Plate which began 50 million years ago and continues today.

जोशीमठ, इसलिए धंस रही है जमीन…

नई दिल्ली : जोशीमठ में घरों की दरारों को देख दिल दहल उठता है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित जोशीमठ में सड़क फट रहे हैं, मकानों की दीवारें दरक रही हैं, जमीन दो फाड़ हो रही हैं। इलाके में सरकारी परियोजनाओं को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, खासकर बिजली परियोजनाओं और सुरंगों को। लेकिन विकास परियोजनाएं तो देश के अन्य हिस्सों में भी होते हैं, बल्कि उत्तराखंड के बाकी इलाकों में भी हुए हैं और हो रहे हैं। वहां तो जमीन दरकने की समस्या तो नहीं हो रही? तो सवाल है कि आखिर जोशीमठ में ऐसा क्या है कि परेशानियों को दूर करने के लिए हुई सड़क, बिजली की व्यवस्था से ही परेशानी हो गई? इसका बहुत हद तक जवाब उसकी भौगोलिक स्थिति में मिल जाता है। वर्ष 2006 की एक वैज्ञानिक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि जोशीमठ प्रति वर्ष एक सेंटीमीटर धंस रहा है। जोशीमठ शहर के साथ-साथ कामेत और सेमा गांव वाला ब्लॉक में यह समस्या हो रही है।

जोशीमठ करीब 500 मीटर ऊंचे मलबों के पहाड़ पर बसा है। वो मलबे अतीत में हुए भूस्खलन के हैं। इस कारण जमीन हल्की है, उसमें कड़ापन नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि जमीन के खालीपन बहुत है जो वक्त-वक्त पर सिकुड़ते हैं और फिर दरारें उभरने लगती हैं। मौके पर जाकर अध्ययन करने वाली विशेषज्ञों और केंद्र सरकार की टीम ने अपनी प्राथमिक रिपोर्टों में यही कहा है। रिपोर्टों के मुताबिक, स्थानीय आबादी और पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी को भी जोशीमठ की धरती झेल नहीं पा रही है।

नौ में से चार वार्ड भूस्खलन की चपेट में

सरकारी सूत्रों ने कहा कि क्या सच में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) के लिए खोदे गए सुरंगों के कारण जोशीमठ डूब रहा है, एक्सपर्ट्स इस सवाल का जवाब जानने में जुटे हैं। जोशीमठ में नौ वार्ड हैं। इनमें चार वार्डों में जमीन फटने की समस्या हो रही है। केंद्रीय टीम ने बताया है कि 600 से ज्यादा घरों को नुकसान हुआ है। ध्यान रहे कि एनटीपीसी इस इलाके में अपनी पनबिजली परियोजना के लिए दो सुरंगें खोद रहा है। भूवैज्ञानिकों ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि अगर सुरेंगे खोदने का काम नहीं रुका तो जोशीमठ को डूब जाएगा। जोशीमठ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब का प्रवेश द्वार है

आपातकालीन परिस्थितियों की तैयारी, रिसर्च भी जारी

केंद्र सरकार ने जोशीमठ की समस्या के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की टीमें तैनात कर रखी हैं। वहीं, आईआईटी रुड़की, भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण (Geological Survey of India), वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियॉलजी, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (National Institute of Hydrology) और केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (National Institute of Hydrology) जोशीमठ के लिए तत्कालीन और दीर्घकालीन योजना बनाने के लिए स्थितियों का अध्ययन कर रहे हैं। एक्सपर्ट्स ने बताया है कि जमीन से पानी बाहर फेंकने की समस्या से तुरंत निपटना होगा।

लोगों ने भी खुद के लिए खड़ी की परेशानी

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जोशीमठ में मकान बनाते वक्त वैज्ञानिक पद्धति का ध्यान नहीं रखा गया और नियमों की धज्जियां उठा दी गई हैं। इलाके के मुताबिक ठोस मकान नहीं बने हैं। सूत्रों की मानें तो अब आबादी को वहां से हटाकर दूसरी जगह बसाया जाना ही एक रास्ता बच गया है। कम जमीन पर बहुत घनी आबादी और पर्यटकों की बाढ़ से जंगलों का तेजी से सफाया हुआ है। उन इलाकों में भी मकान बनाए गए हैं जो आबादी की बसावट के लिहाज से उपयुक्त नहीं हैं। वहां नालियों की उचित व्यवस्था भी नहीं है। इन सब समस्याओं ने जोशीमठ को मुश्किल में डाल दिया है।