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डंकापति….जब कोई विदेशी भारत आकर साहब संग झूला झूलता है तो भी साहब का डंका बजने लगता है

Tajinder Singh
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डंकापति….
जयकारों का शोर भी एक प्रदूषण है। जरूरत से ज्यादा आवाजे इंसान को बहरा कर सकती हैं। आजकल भारत मे जब नॉइज़ पॉल्युशन अचानक बहुत बढ़ गया तो मुझे पता लग गया कि साहब विदेश गए हुए हैं। और ये साहब के बजते डंके का शोर है। जब कोई विदेशी भारत आकर साहब संग झूला झूलता है तो भी साहब का डंका बजने लगता है। खैर साहब तो यूं भी अपना डंका बजाने के लिए बदनाम हैं। लेकिन ये कौन बेहूदा लोग हैं जो साहब का डंका बजाते रहते हैं।

मुझे पता लगा कि भारत मे एक भक्त प्रजाति पाई जाती है। ये प्रजाति डंका बजाने में बड़ी प्रवीण होती है। क्योंकि डंका बजाना हमारी संस्कृति भी है। जैसे दुर्गा पूजा में ढाकिये ढाक बजाते हैं। ये भक्त साहब का डंका बजाते हैं। भक्तों के इस सारे शोरगुल का मकसद वही महाभारत वाला होता है। जहां युधिष्ठिर के सत्य…”अश्वथामा हतः इति नरो वा कुंजरो” को शंख के शोर से दबा दिया गया था।

साहब के डंके का शोर भी सत्य को छुपाने के लिए किया जाता है। पहला सत्य ये है कि कोई बड़ा अधिकारी साहब को रिसीव करने नही पहुंचा। दूसरा सत्य है कि इसी अवसर पर बीबीसी की भारत मे बैन डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया गया। तीसरा सत्य है कि 75 सांसदों ने मिलकर साहब के नेतृत्व पर कुछ शंकाएं जाहिर की हैं। चौथा सत्य है कि कुछ लोगों ने साहब के भाषण का बहिष्कार किया। पांचवा सत्य है कि बराक ओबामा ने कहा कि अगर मैं प्रेजिडेंट होता तो कुछ तीखे सवाल जरूर उठाता।

खैर बराक साहब आज प्रेजिडेंट नही हैं। इसलिए तीखे सवाल उठा सकते हैं। लेकिन बाइडेन साहब के कंधों पर अमरीकी हितों को साधने की जिम्मेवारी है। इसलिए वो धार्मिक असहिष्णुता, पत्रकारों का उत्पीड़न, प्रेस की स्वतंत्रता, सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग जैसे मुद्दों को रेड कार्पेट के नीचे दबा भोज आयोजित करते हैं। हमारे प्रधान साहब भी उसी रेड कार्पेट पर बैठ भोज खाते हुए अपने हितों को साधने की कोशिश करते हैं। ऐसी डिप्लोमेटिक मीटिंगों से मैं कोई बहुत उम्मीद नही रखता। अमरीका को अपना युद्ध का साजोसामान बेचना है, चीन के सामने भारत को रख अपने हित साधने हैं इसलिए अगर डेमोक्रेट भी साहब का डंका बजाने लगे तो इसमें हैरान होने की कोई बात नही।

इस सारे तमाशे के बीच सबसे ईमानदार स्वीकारोक्ति एलन मस्क साहब की थी। उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान विरोधियों की आवाज दबाने के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा कि भारत के कानून और अमरीका के कानूनों में बहुत अंतर है। हमे भारत के कानूनों का पालन करते हुए सरकार विरोधी स्वरों को जगह देनी होती है। वैसे जैक डोरसी साहब ने तो हमे बताया ही है कि आदेश नही मानने पर ट्विटर को बंद करने और इसके कर्मचारियों पर रेड मारने की धमकी मिल चुकी है। अब डोरसी साहब के इस बयान से किसका डंका बजा…आपका ये वाजिब सबाल भी डंकों के शोर में दबा दिया जाएगा।।

खैर पूंजीवाद के इन ब्यपारिओं से बहुत उम्मीदें न रखें। यहां सबके अपने अपने हित हैं। इन्हें साधने के लिए कौन यहां किसका डंका बजा रहा है इसे समझना बहुत मुश्किल है। आप और हम तो यहां डंके के शोर में बहरे होने और सत्य को परास्त होते देखने को शापित हैं।