सेहत

डिप्रेसन, चिंता, तनाव और स्नायु संबंधित दुर्बलताओं में यह अश्वगन्धा से बेहतर परिणाम देता है!

मधुसूदन उपाध्याय
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भाँग, गांजा(इंद्र का आहार), चरस , बहुवादिनी , बज्रभाँग, बज़र, सन, विजया(तीनो लोकों पर विजय दिलाने वाली), आनन्दा, भंगिनी, भरिता, चपला, हर्षअनि, काम्या, मोहिनी , भाँगीगीडा (कन्नड़), चेरुकंछवा (मलयालम) ,अलातम (तमिल), गांजाचेट्टू (तेलगु), क़िनाब (उर्दू), गज़ीमा(नेपाली) , hashish, hemp, cannabis, marijuana इत्यादि नामो से जाना जाने वाला Canabbis sativa इस पृथ्वी पर पाया जाने वाला एकमात्र ऐसा पादप है जो नयी मस्तिष्क कोशिकाओं के बनाने की प्रक्रिया आरंभ करने की क्षमता रखता है,.

जाता मंदरमंथानाज्जलनिधौ, पीयूषरूपा पूरा,
त्रैलोक्यई विजयप्रदेती विजया, श्री देवराज्ज्प्रिया,
लोकानां हितकाम्या क्षितितले, प्राप्ता नरैः कामदा,
सर्वातंक विनाश हर्षजननी, वै सेविता सर्वदा।
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डिप्रेसन, चिंता, तनाव और स्नायु संबंधित दुर्बलताओं में यह अश्वगन्धा से बेहतर परिणाम देता है.
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आटोइम्यून डिजीज और कैन्सर के रोकथाम में यह जिन्सेंग से ज्यादा कारगर है.
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रक्तचाप और हृदय रोगों में rhodiola से अच्छे परिणाम देता है.
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त्वचा की सुरक्षा और त्वचा संबंधित रोगों में Aloe vera से बेहतर है.
भाँग या cannabis sativa , canabaceae परिवार का द्विलिंगी (dioecious) पौधा है जो पूरे मध्य एशिया एवं दक्षिण एशिया में पाया जाता है.!
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साधारणत: इसकी प्रवित्ति अम्लीय है ! इसमे THC(delta-9-tetrahydrocannabinol ) पाया जाता है , जो इसके अद्वितीय गुणो के लिये जिम्मेदार है!..
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इसे गंगा की बहन और मादा cannabis को साक्षात काली बताया गया है, बाइबल इसे “heavenly guide”और “soother of grief” कहता है तो सिख योद्धाओं ने “भो ताएरा भाँग कल्लारी मायेरा चीत” कह कर इसका गुणगान किया!
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तिब्बती लामा और ताओ भवितव्य बताने से पहले भाँग और जिन्सेंग के एक खास आनुपातिक मिश्रण को पीते थे!
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शतरूद्रिय अथर्ववेद की मीमाँसा में महर्षि सायण जिस रुद्र को ” रोदयति सर्वम अंतकाले इति रुद्र:” कहते हैं यजुर्वेद और अथर्ववेद के अनुसार शिव एक ब्राह्मण है जिसने योग तपस्या और रसायनो के प्रयोग से ईश्वरत्व प्राप्त कर लिया! स्वाभाविक रूप से इन रसायनो में गांजा , बिल्वपत्र और शिलाजीत का प्रमुख स्थान रहा हो।
कुछ पाश्चात्य विद्वान सुक्तों में सोम शब्द का प्रयोग भाँग के लिये किया गया है ऐसा बताते हैं, हालांकि सोम और भांग का कोई संबंध नहीं।


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अफ्रिकी कबीला बशिलिँग (bashilenge) के लोग खुद को बेना रिआम्बा (son of hemps) कहते हैं.
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चरक और सुश्रुत ने गांजे को बुद्धिभ्रंश, दृष्टिभ्रंश और स्मृतिभ्रंश की औषधि बताया है.
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भारत जैसे देश में यह श्रद्धा का विष य भी है..तांत्रिक लोग इसका प्रयोग spiritual ecstasy के लिये करते रहे हैं.! फिर भी अन्ग्रेजी राज़ के समय से ही इसका उपयोग गैर कानूनी करार दिया गया है.
Aanandmide, जो संस्कृत के शब्द आनंद के ऊपर रखा गया है । किसने रखा है ? एक हिब्रू वैज्ञानिक ने ये नाम दिया है अपनी एक दवा को ! जब उस से पूछा गया कि आपने संस्कृत से ये नाम क्यों रखा है, तो उसने बताया क्योंकि हिब्रू में आनंद (ultimate happiness) जैसा कोई शब्द नही है । ये दवा क्या है ? ये दवा THC (tetrahydrocannabinol) की एक dose है । ये केमिकल भांग में होता है । भांग में मुख्यतया 2 केमिकल होते हैं, पहला THC (tetrahydrocannabinol) और दूसरा CBD (cannabidiol)
Aanandmaide की खास बात ये है कि मस्तिष्क में चलने वाले न्यूरॉन की क्रिया को ये बढ़ा देती है और कोशिकाएं बना सकती है ,जो और किसी केमिकल में नही पाई जाती ।
इसे कई बीमारियों पर रिसर्च के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, जैसे, भूख बढ़ाना, यादाश्त का कमजोर न होना, दिमाग में नई कोशिकाओं का बनना और कैंसर में कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट जैसे नाक से खून आना, भूख न लगना आदि को रोकना ।
ये तो हुई नेशनल जियोग्राफिक और साइंस मैगज़ीन से निकाली हुई इनफार्मेशन की । लेकिन अब आते है इस से भी मजेदार बात पर । भांग को हमारे शंकर भगवान से जोड़ कर देखा जाता है और आयुर्वेद में इसके सीमित मात्रा में प्रयोग करने से इसके औषिधि गुणों के बारे में बताया गया है । अब जिन वैज्ञानिक ने ये खोज की है और जिनके पास 30 से ज्यादा पेटेंट है और 500 से ज्यादा रिसर्च पेपर छप रखे हैं ,वो बताते हैं कि उनके पिता या दादा ने इसके ऊपर रिसर्च करके एक उम्र निकाल दी और उनके नोट्स में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो अभी खोजा जाएगा । भांग और इसके द्वारा बनने वाला (मारिजुआना) कई देशो में 60 के दशक से बैन है । इन्होंने खुद ने इसकी रिसर्च एक दशक पहले शुरू की है शायद जैसा ये बताते हैं ।
उन्होंने संस्कृत का शब्द क्यों चुना होगा ? जबकि संस्कृत आज भी ऑनलाइन ऐसी भाषा नही है, जिसे आप अंग्रेजी शब्द डाल के उसका संस्कृत का शब्द निकाल लें। उन्होंने लेटिन, अंग्रेजी या हिब्रू किसी भाषा में इसका नाम नही रखा । जिसका सीधा मतलब है कि वो संस्कृत से भी कही न कही से जुड़े हुए होंगे और नोट्स में आयुर्वेद के कुछ नुस्खे होने चाहिए।
आयुर्वेद और मेडिकल सइंस में एक बड़ा फर्क है कि जब तक किसी चीज का quantification (मात्रा, अनुपात) नही होता आप उसे विज्ञान नही कह सकते । विज्ञान का quantificatiin पर चलता है और हमारे यहां सारे शास्त्र, आयुर्वेद सब पुराने तौर के मात्रकों में ही आज भी पढ़े जा रहे हैं, नतीजा ये है कि उसका रिसर्च पेपर नही बन सकता । आप जब तक HPLC, GC या ICP MS पर इन मात्रकों को नही बनाएंगे, तब तक आपके आयुर्वेद को महान कहने वाली सारी बातें, गप्प से ज्यादा कुछ नही है ।
विदेशी वैज्ञानिक हमारी ही औषधियों को हम से ही पढ़ कर, उनको मॉडर्न मशीनों पर टेस्ट करके, उनके मानक बना रही है और उनको पेटेंट करा रही हैं । आज के समय मे शास्त्रो को चाहे वो वेद हों, पुराण हो, आयुर्वेद हो या ज्योतिष पुरानी पुस्तको और मानकों से बाहर निकाल कर आज की भाषा, मानकों में पुनर्परिभाषित करने की महती आवश्यकता है इसके बिना न तो विश्वगुरु बना जा सकता है और न ही अपने शास्त्रो पर इठलाया जा सकता है क्योंकि पहले ये शास्त्र दुनिया में माने जाते थे, फिर धीरे धीरे भारत और आसपास के देशों तक रह गए फिर और कम होते होते, वर्णो तक सीमित रह गए और अब केवल ब्राह्मणो तक सीमित रह गए हैं । अगर इनको फिर से समाज में प्रतिस्थापित करना है तो इसे आज की भाषा में, आज के मानकों में, आज की मशीनों से validate करना होगा वरना जंगल मे मोर नाचा किसने देखा जबकि उसी मोर की फ़ोटो दुनिया में अलग अलग नामो से बिक रही है पर जंगल में रहने वालों को कुछ पता ही नही चल रहा है । वो अभी भी पेड़ को भगवान मान रहे है और गौ को माता ।
आज तक भाँग खाने से पूरे विश्व में एक भी मौत नही हुई फ़िर भी ये महाऔषध सिरफ़ स्विटजरलेन्ड़ , कनाडा, और नीदरलेन्ड में ही वैध है. ऐसा क्यों ?????????.
शिवोहम्