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ड्रग्स की जन्मस्थली जर्मनी में नशाख़ोरी के कारण जान गंवाते लोग : विशेष रिपोर्ट

जर्मनी में अवैध रूप से नशीली दवाओं का सेवन करने की वजह से मरने वालों की संख्या कई वर्षों से लगातार बढ़ रही है. हैम्बर्ग शहर में ऐसे ही लोगों की याद में शोक सभा का आयोजन किया गया.

गोंजो की उम्र 55 साल हो चुकी है. वह 16 साल की उम्र से ही नशीली दवाओं का सेवन कर रहे हैं. वह कहते हैं, “जिन लोगों को मैं जानता था उनमें से बहुत से लोग अब मर चुके हैं.” यह शब्द बोलते हुए गोंजो की आंखें भर आयी. वह साफ-सुथरे कपड़े पहने हुए थे. उनके लहजे से साफ तौर पर झलकता है कि वह हैंबर्ग के रहने वाले हैं.

नशाखोरी का ठिकाना
गोंजो हैंबर्ग में एक तथाकथित ‘कंजंप्शन रूम’ में बैठे थे. यह वह जगह है जहां लोग नशाखोरी के लिए आते हैं. यह कंजंप्शन रूम जिस प्रोजेक्ट के तहत बनाया गया है उसका नाम है ‘एब्रिगाडो’. यह स्पैनिश भाषा के शब्द ‘शेल्टर्ड’ का अनुवाद है. यह ऐसी जगह है जहां नशीली दवाओं का सेवन करने वाले आते हैं और अस्पताल जैसे स्वच्छ वातावरण में ड्रग्स लेते हैं. यहां आने वाले ज्यादातर लोग हेरोइन या कोकीन का सेवन करते हैं.

वे यहां स्नान भी कर सकते हैं और किसी तरह के घाव का इलाज भी करा सकते हैं. साथ ही, खाने-पीने के लिए कुछ ले सकते हैं. इसके अलावा, वे एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ जुड़ सकते हैं जो स्थानीय सरकारी कार्यालयों में उनके साथ जा सकता है और उनका काम कराने में उनकी मदद करता है.

हरमन और ओली यहां कर्मचारी के तौर पर काम करते हैं. इनका काम है दोपहर के इस्तेमाल के लिए चीजें तैयार करना, जब एक बार में चार लोग यहां आकर अपने साथ लाए ड्रग्स का सेवन कर सकते हैं. ओली ने रात भर कीटाणुनाशक घोल में भिगोए गए चम्मचों को धोया. वहीं, हरमन ने सीलबंद सिरिंज, अल्कोहल स्वैब और मलहम तैयार किया.

एक छोटी बातचीत के बाद, लगभग दोपहर में 1:30 बजे दरवाजे खुले. दर्जनों लोग पहले से ही अंदर आने का इंतजार कर रहे थे. कुछ लोग जल्दी ही उन कमरों में चले गए जहां उन्हें अपने साथ लाए ड्रग्स का सेवन करने की अनुमति थी. ज्यादातर लोग यहां नियमित रूप से आते हैं और नियमों को जानते हैं. पहला नियम है मास्क पहनना, फिर साइन करना और अगर कमरा भरा हुआ है, तो धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इंतजार करना. गोंजो यहां सबसे पहले अंदर आने वाले लोगों में से एक थे.

इस एब्रिगाडो प्रोजेक्ट को 28 साल पहले शुरू किया गया था. गोंजो उसी समय से यहां आ रहे हैं. वह कहते हैं, “मुझे लगता है कि अगर यह जगह नहीं बनी होती, तो मैं शायद मर गया होता. मैं किसी गंदी जगह पर हेरोइन का सेवन कर रहा होता. मैं पहले अपने हाथों को साफ नहीं करता था, लेकिन यहां ऐसा करना जरूरी होता है. वे नजर रखते हैं कि आप क्या कर रहे हैं.”

लगातार बढ़ती मौतें
जर्मनी में ड्रग के सेवन से संबंधित मौतों की संख्या 2021 में लगातार चौथे वर्ष बढ़ी है. कुल 1826 पुरुष और महिलाओं की मौत हुई है. इनमें से ज्यादातर लोग हेरोइन और ओपिओइड (अफीम युक्त दवा जो डॉक्टरों के पर्चे पर दर्द निवारण या नींद लाने के लिए दी जाती है) का सेवन करते थे.

जर्मन सरकार के नारकोटिक्स कमिश्नर बुर्कहार्ड ब्लिनर्ट का कहना है, “ये आंकड़े मुझे बहुत दुखी करते हैं. वे चौंकाने वाले हैं. इनसे साफ पता चलता है कि हम ड्रग्स पर अपनी नीतियों में पहले की तरह नहीं चल सकते.”

यह एक ऐसी समस्या है जो सामान्य जर्मन लोगों की समस्या से अलग है. वर्षों से अमेरिका भी एक ओपिओइड संकट से त्रस्त है. वहां हर पांच मिनट में ओवरडोज की वजह से एक व्यक्ति की मौत होती है.

इस साल एब्रिगाडो में मार्च और अप्रैल महीने विशेष रूप से परेशान करने वाले थे. यहां आने वाले लोग एक दूसरे को ‘अतिथि’ कहना पसंद करते हैं. सामाजिक कार्यकर्ता प्रत्येक “अतिथि”, जो मर जाते है उनके प्रति संवेदना जताते हुए एक पुस्तक बनाते हैं. मर चुके लोगों की याद में बनाई गई कई पुस्तकें कमरे में पड़ी थी. ओली कहते हैं, “समस्या यह थी कि हम उन्हें बचा नहीं सकते थे. यह भयानक था.” हरमन ने भी सहमति जताते हुए कहा, “यह वाकई कठिन है.”

हर साल यह समुदाय 21 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय ड्रग इस्तेमाल करने वालों के स्मरण दिवस के तौर पर मनाता है. इस मौके पर लोग अपनी बातों को रखते हैं. इस साल अतिथियों और कर्मचारियों ने गुजर गए लोगों के नाम पर पत्थर लगाए.

आपात स्थिति के लिए तैयार
एब्रिगाडो के कमरे के अंदर अब तक किसी की मौत नहीं हुई है. यहां के कर्मचारी पूरी तरह प्रशिक्षित हैं. वे आपात स्थितियों से निपटने के लिए तैयार रहते हैं. पल्स मॉनिटर और वेंटिलेटर जैसे उपकरण हमेशा मौजूद रहते हैं. हरमन ने याद करते हुए बताया, “जब मुझे पहली बार आपात स्थिति से निपटना पड़ा था, तो मैंने काफी चुनौती का सामना किया था. अब मुझे पता है कि क्या करना है, क्योंकि मैं पहले आपात स्थिति से निपट चुका हूं. इसलिए, मैं एक समाधान ढूंढ सकता हूं.”

हालांकि, एब्रिगाडो के बाहर कई लोगों की मौत हुई है जिन्हें रोका नहीं जा सकता. यह ओली और हरमन के लिए वास्तविक बोझ है. ओली ने पहले व्यक्ति की मौत को याद किया. उस समय तक ओली एक योग्य सामाजिक कार्यकर्ता बन चुके थे. उन्होंने कहा, “उस व्यक्ति की मौत से मुझे काफी दुख हुआ. मैं उसे अभी भी महसूस कर सकता हूं.”

हरमन कहते हैं, “एक व्यक्ति जिससे आप कमोबेश हर दिन मिलते हैं और अचानक एक दिन वह महज फाइल में सिमट कर रह जाता है. अक्सर सामाजिक कार्यकर्ताओं को अतिथियों के माध्यम से ही पता चलता है कि किसी के साथ क्या हुआ. हमें यह भी नहीं पता चलता है कि उनकी मौत कैसे हुई और उन्हें कहां दफनाया गया.”


एक अलग नजरिया
अक्सर कहा जाता है कि नशीली दवाओं से जुड़ी सख्त नीतियों की वजह से अधिक मौत होती है, लेकिन यह बात हर जगह लागू नहीं होती. बवेरियन प्रसारक बायरिशर रुंडफुंक ने हाल ही में एक जांच रिपोर्ट में पाया कि सख्त कानून का यह मतलब नहीं है कि अधिक मौतें होंगी. हालांकि, यह भी कहा गया कि अधिक उदार कानून और सहायता सेवाओं तक आसान पहुंच से लोगों की जान बचाई जा सकती है.

फ्रैंकफर्ट में इंस्टीट्यूट ऑफ एडिक्शन रिसर्च के हाइनो स्टोवर नशे की रोकथाम के विशेषज्ञ हैं. वह उन नीतियों की वकालत करते हैं जिसमें छोटे पैमाने पर ड्रग के सेवन को अपराध नहीं माना जाता. स्टोवर ने डीडब्ल्यू को बताया, “जर्मनी में एक तरफ शराब और तंबाकू के इस्तेमाल को अनुमति देने वाली नीतियां हैं. मैं इन्हें बहुत ही उदारवादी कहूंगा. बहुत अनियमित. वहीं, दूसरी तरफ जब अवैध ड्रग्स की बात आती है, तो यह बहुत ही कठोर है.”

उन्होंने कहा कि जहां कम मात्रा में भांग का सेवन करने वाले को कठोर कानून का सामना करना पड़ता है. वहीं, तंबाकू और शराब जैसे ड्रग से निपटने के लिए कोई रणनीति नहीं है. उन्होंने जोर देकर कहा, “हर साल होने वाली करीब 1,27,000 मौतें तंबाकू से जुड़ी होती हैं. वहीं, करीब 74,000 मौतें शराब की वजह से होती हैं. और ये भी नशीली दवाओं से होने वाली मौतों के तहत ही आती हैं.”

हालांकि, अब शायद बदलाव हो सकता है. 2021 में बनी नई सरकार के एजेंडे में भांग के सेवन को वैध बनाना शामिल है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत नालोक्सन के प्रभाव की जांच की जा रही है. नालोक्सन एक नाक के जरिए इस्तेमाल होने वाला स्प्रे है, जो तुरंत प्रभाव से हेरोइन की अधिक मात्रा को रोक सकता है.

इस बीच, ‘कंजंप्शन रूम’ में ट्रायल के तहत ड्रग की जांच की जा रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह ड्रग कितना शुद्ध है. नई सरकार ड्रग से जुड़ी नीतियों पर फिर से विचार करने और इसके सेवन को ‘अपराध की श्रेणी’ से दूर करने के लिए तैयार है. हालांकि, रूढ़िवादी पार्टी सीडीयू के सांसदों ने इसकी आलोचना की है और कहा है कि भांग का सेवन करना खतरनाक है. उन्होंने यह तर्क दिया कि इसे वैध करने से सख्त ड्रग के इस्तेमाल के लिए रास्ता खुल जाएगा.

यादों को जिंदा रखने की कोशिश
एब्रिगाडो के सामाजिक कार्यकर्ता बदलावों का स्वागत करते हैं. ओली ने अपनी और इसी तरह की दूसरी परियोजनाओं के लिए धन की कमी को लेकर निराशा जताते हुए कहा, “मैं आशावादी हूं.” एब्रिगाडो अपने कंजंप्शन रूम में अतिथियों को इस बात के लिए मनाने की कोशिश नहीं करता कि वे ड्रग्स का सेवन करना छोड़ दें.

उन्होंने कहा, “ओवरडोज की वजह से या लंबे समय तक ड्रग्स के सेवन की वजह से, किसी की मौत होती है, तो टीम इसे अपनी निजी विफलता के तौर पर नहीं देखता कि अगर समय रहते उसे ड्रग्स से दूर कर दिया जाता, तो ऐसा नहीं होता. इसके बजाय, हम इसे एक दुखद कहानी के तौर पर देखते हैं कि कोई मर गया. हमारे बीच से चला गया और मेरा मानना है कि यह किसी का पहला विचार होना चाहिए.”

ओली और हरमन दोनों इस बात पर जोर देते हैं कि ‘अतिथियों’ को पता होता है कि जिस तरह से वे जिंदगी जी रहे हैं उससे उनकी मौत जल्दी हो सकती है. गोंजो भी अपने आसपास के उन लोगों को मरते हुए देखते हैं जिन्हें वे कई सालों से जानते हैं.

गोंजो ने कहा, “मुझे पता है कि मैं 90 साल तक जीवित नहीं रहूंगा. हम स्मृति समारोह का आयोजन उन लोगों को याद करने के लिए करेंगे जो नशीली दवाओं के सेवन से मर गए.” अभी कुछ महीने पहले ही उन्होंने अपने एक पुराने दोस्त को बिस्तर पर मृत पाया था. वह अभी भी नहीं जानते कि मौत का सही कारण क्या था या उसे कहां दफनाया गया है.

ड्रग्स की जन्मस्थली

लड़ाने के लिए
सन 1939 में जर्मनी के नाजियों ने अपने सैनिकों को ड्रग्स देकर पोलैंड में और फिर अगले साल फ्रांस में युद्ध करने के लिए भेजा था. फ्रांस पर हमले के दौरान मेथएम्फीटेमीन पर्विटीन की 3.5 करोड़ टैबलेट सैनिकों में बांटी गयी थीं. इसे “टैंक चॉकलेट” नाम मिला. विपक्षी सेना ने भी अपने सैनिकों को ड्रग्स दी थी.

चौकन्ने और निडर
एक जापानी केमिस्ट ने सबसे पहले वो तरल पदार्थ बनाया था, जिससे बाद में जर्मनी की टेमलर दवा कंपनी ने जादुई दवा बनायी और 1937 में उसे पेटेंट करा लिया. एक साल बाद ही उनकी दवा पर्विटीन आम दवा की दुकानों में बिकने लगी. इसे लेने से लोग ज्यादा सतर्क और निडर महसूस करते और उन्हें भूख प्यास भी नहीं लगती. यह आज भी क्रिस्टल मेथ के नाम से अवैध रूप से बेची जाती है.

सबसे बड़ा उपभोक्ता खुद?
इतिहासकारों में इस पर मतभेद है कि क्या हिटलर को खुद भी पर्विटीन की लत थी. उसके निजी डॉक्टर थियो मोरेल की फाइलों में रोज की दवाओं की सूची में किसी “x” का जिक्र है. लेकिन यह साफ नहीं कि वो चीज क्या थी. हालांकि इतना पता है कि हिटलर रोजाना कई शक्तिशाली दवाइयों का कॉकटेल सा लेता था.

हेरोइन
नाजी काल से पहले भी जर्मन केमिस्ट्स ने कुछ ऐसी ड्रग्स बनायीं थीं. फिर 19वीं सदी के अंत में जर्मन दवा कंपनी बायर ने खांसी की ऐसी दवा बनायी, जिसमें मरीजों को हेरोइन दी जाती थी. मिर्गी, दमा, स्कित्जोफ्रेनिया और दिल की बीमारियों में भी हेरोइन मिलती थी. और कंपनी ने इसका केवल एक साइड इफेक्ट बताया था, वो था कब्ज.

क्रिएटिव केमिस्ट
फेलिक्स होफमन को विश्व एस्पिरिन की खोज के लिए जानता है. लेकिन इसके अलावा उन्होंने एसिटिक एसिड के साथ प्रयोग करने के दौरान उससे हेरोइन बना डाली थी. यह एसिड को मॉर्फीन के साथ मिलाने से बनी थी. जर्मनी में 1971 तक हेरोइन वैध रही लेकिन उसके बाद से इसे अवैध दवाइयों की सूची में डाल दिया गया.

आंख के डॉक्टरों के लिए कोकेन
सन 1862 में डार्मश्टाड की दवा कंपनी मर्क ने बड़े पैमाने पर कोकेन बनाना शुरू किया. नेत्र विेशेषज्ञ इसका इस्तेमाल मरीज को बेहोश करने में करते. जर्मन केमिस्ट अल्बर्ट नीमन ने इसके पहले ही दक्षिण अमेरिकी में उगाये जाने वाले कोका की पत्तियों से कोकेन नाम का एल्केलॉइड अलग कर लिया था. कोकेन की खोज के कुछ ही समय बाद वे फेफड़ों की बीमारी से चल बसे.

यूफोरिया और जीवन शक्ति
ऑस्ट्रिया के न्यूरोलॉजिस्ट और “साइकोएनालिसिस के पिता” माने जाने वाले जिग्मंड फ्रॉयड ने कोकेन पर वैज्ञानिक स्टडी के लिए खुद ही नियमित रूप से कोकेन का सेवन किया. उन्होंने इसका कोई नुकसान नहीं बताया बल्कि उन्होंने पाया कि इससे “यूफोरिया, जीवन शक्ति और काम करने की क्षमता और बढ़ गयी.” उस समय डॉक्टर सिरदर्द और पेट की परेशानियों में यह दवा देते थे.

एमडीएमए पेटेंट
अमेरिकी केमिस्ट एलेक्जेंडर शुल्गिन को पार्टी ड्रग एक्सटेसी का जनक माना जाता है. लेकिन सच ये है कि बहुत पहले सन 1912 में ही इस कंपाउंड को दवा कंपनी मर्क ने विकसित किया और पेटेंट के लिए अर्जी भी डाली थी. यह एक रंगहीन तैलीय पदार्थ 3,4-मिथाइलीनडाईऑक्सीमेथएम्फीटेमीन या एमडीएमए था.

मौत का साया
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक केवल 2013 में ही दुनिया भर में 1,90,000 लोग अवैध दवाओं के सेवन के कारण मारे गये. हालांकि यह भी सही है कि एक वैध ड्रग होते हुए भी इससे कहीं ज्यादा लोगों की जान अल्कोहल के सेववन से जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2012 में दुनिया के 5.9 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण अल्कोहल रहा, यानि करीब 33 लाख लोग. (निकोलास मार्टिन/आरपी)

ये हैं महंगे और असरदार ड्रग…

एलएसडी
लिसेरगिक एसिड डायथाइलामाइड (एलएसडी) को एसिड भी कहा जाता है. यह ड्रग अपने मनोवैज्ञानिक प्रभावों के लिए जाना जाता है. इसे लेने के बाद आस-पास के माहौल में भावनायें, अनुभूतियां और छवियों के बदलने का एहसास होता है, हालांकि ऐसा असली में नहीं होता लेकिन इसे लेने वाले ऐसा महसूस करते हैं. इस ड्रग को मैजिकल मशरूम का भी नाम दिया गया है.

एक्स्टसी
एक्स्टसी को अक्सर “लव पिल” कहा जाता है क्योंकि यह रंग और ध्वनि पर इंसान के सेंसेशन बढ़ा देता है. नेशनल सर्वे ऑन ड्रग यूज एंड हेल्थ के मुताबिक अमेरिका में 12 साल और इससे अधिक उम्र के लोग जिंदगी में एक बार इस ड्रग का इस्तेमाल जरूर करते हैं. इसे एमडीएमए भी कहा जाता है.

एम-कैट
मेफेल्ड्रोन को 4-मिथाइल एफेड्रोन के रूप में भी जाना जाता है. यह एक सिंथेटिक उत्तेजक ड्रग है. जिसे बोलचाल में ड्रोन, एम-कैट, व्हाइट मैजिक भी कहा जाता है. यह गोलियां और पाउडर के रूप में मिलता है, यह उपयोग करने वाले पर एमएडीएमए और कोकेन के बराबर असर डालता है.

एन-बूम
एन-बूम को आमतौर पर एन-बॉम्ब और स्माइल कहा जाता है. इस पावर ड्रग में एलएसडी जैसा ही असर पैदा होता है और नशा करने वाले को आसपास ऐसी छवियों और एहसासों का अनुभव होता है जो असलियत में नहीं होती. इसके एक डोज का असर 12 घंटे तक रह सकता है.

कोकेन
कोकेन को कोकीन और कोक भी कहा जाता है. यह एक मजबूत उत्तेजक पदार्थ होता है जिसे प्रायः मनोरंजक दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह आमतौर पर धुएं की तरह लिया जाता है. इसके लेने के बाद को तीव्र भावनाओं का एहसास होता है. ज्यादा कोकेन शरीर में उच्च रक्तचाप पैदा करती है और शरीर का तापमान भी बढ़ा देती है.

रिपोर्ट: अपूर्वा अग्रवाल