धर्म

तसवूफ़ एक बदनाम लफ़्ज़ होकर रह गया है….तसवूफ़ क्या है? : Part-7

 

Razi Chishti
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अगर कुरान की आयात के ज़ाहिरी मआनी सब कुछ हैं तो अल्लाह swt बार बार क्यों फ़रमा रहा है कुरान में ग़ौर करो और जो ग़ौर नहीं करता उसके लिए फ़रमा रहा है कि तुम ग़ौर क्यों नहीं करते क्या तुम्हारे अक्लों पर ताले पड़े हुए हैं(47:24) और जो समझने की कोशिश नहीं करते उनके दिलों पर मोहर लगा देता है.(30:59), जो कुछ भी ज़मीन और आसमानों के बीच है सबको अल्लाह ने तुम्हारे क़ाबू मे दे दिया है जो लोग ग़ौर करने वाले हैं उनके लिए इसमें निशानियाँ हैं.(45:13)

देखें किस क़द्र ग़ौर व फ़िक्र की फ़ज़ीलत है. तसवूफ़ के मूतअल्लिक़ ग़लतफ़हमी फैलाने वाले दरअस्ल वही लोग हैं जो अपने को तसवूफ़ का दावेदार बताते हैं. इन लोगों ने तसवूफ़ को, महज़ मज़ारों पर सजदा करना, मज़ार का त्वाफ़ करना, चादर पोशी करना, क़व्वाली सुनना और वज्द में आकार झूमने या नाचने लगना, तक महदूद कर दिया है. तसवूफ़ अपनी ख़ुदी(नफ़्स) को पचान कर उसको ऊँचे ऊँचे मक़ामात की तरफ़ लेजाना है. अल्लाह swt ने फ़रमाया, “हमें शाम की सुर्ख़ी की क़सम और रात की और चाँद की जब वह कामिल हो जाये कि तुम दर्जा ब दर्जा रुत्ब-ए-आला की तरफ़ चढ़ोगे”(84:17-19). यह तरक़्क़ी उन्ही को मिलती है जो इस्लाम से एहसान तक की मंज़िल का सफ़र तय करने में कामयाब होते हैं. यह तरक़्क़ी उन्ही को नसीब है जो अपने नफ़्स को पाक करने में कामयाब हो जाते हैं. सूरह शम्स मे अल्लाह swt फ़रमा रहा है, “जिन्हों ने अपने नफ़्स को पाक करलिया वो मुराद को पहुँच गए”. और मुराद क्या है? सूरह नज़म में फ़रमाया, “तेरा इंतहाई मक़ाम अल्लाह तक रसाई है”. तसवूफ़ इन्ही रास्तों को तय करने में मदद करता है.

जो लोग तसवूफ़ की मुखालफ़त करते हैं वो तसवूफ़ को फ़लसफ़ा समझते हैं और उनकी नज़र में फलसफ़ा बेसरो पैर की बातों को कहते हैं. इस कायनात के तमाम नेज़ाम की बुनियाद पर कोई न कोई फलसफ़ा ज़रूर है. अल्लाह swt ने कुरान को दानिश व बसीरत फ़रमाया है. फलसफ़ा तो किसी चीज़ की हक़ीक़त को समझने का इल्म है. जो लोग तसवूफ़ को फलसफ़ा समझते हैं वो दीन के उस पहलू से बेख़बर हैं जहाँ पर अल्लाह swt की इस तरह से इबादत करते हैं गोया उसको देख रहे हैं. तसवूफ़ उस तरीक़-ए-कार से तअल्लुक़ रखता है जिस पर चलने से अल्लाह swt की निशानियाँ जो ज़मीन पर बिखरी पड़ी हैं उनका मोशाहेदा होने लगता है और अल्लाह swt तक रसाई मुमकिन हो जाती है.

इस्लाम दीन की पहली सीढ़ी है जहाँ पर मिसालों को ही हक़ीक़त समझते हुए बंदा इबादत की शुरुआत करता है और फिर अगर अल्लाह swt की तौफ़ीक़ हुई तो वह धीरे धीरे कुरान मे ब्यान किए गए मिसालों की हक़ीक़त को समझते हुए आगे बढ़ता है. फलसफ़ा के dictionary meaning है ‘वो इल्म जो चीज़ों की हक़ीक़त व माहियत और उनके वजूद के सबब पर दलील पेश करता है’. फलसफ़ा इलमों हिकमत से तअल्लुक़ रखता है जो कुरान में भरा पड़ा है लेकिन कुरान का फलसफ़ा दानिशों बसीरत के साथ है. जो सिर्फ़ इलमे ज़ाहिरी से ही वाक़िफ़ हैं वो इस बात को नहीं समझ सकते. नबी करीम saw फरमाते हैं की इल्म दो तरह के होते हैं: एक इलमे लिसान और दूसरा इलमे जनान. लिसान ज़ुबान को कहते हैं जो दिखाई देता है इस से मुराद ज़ाहिरी इल्म अर्थात इलमे फ़िक़ा से है. जनान दिलको कहते हैं इस से मुराद रूहानीयत के इल्म से है. इस इल्म से इंसान अपनी हक़ीक़त तक पहुँच जाता है कि वह कौन है? कहाँ से आया है? यहाँ आने का मक़सद क्या है? और बाद मरने के बाद उसका क्या होगा? एक सूफ़ी के नज़दीक अपनी हक़ीक़त तक पहुँचने के लिए ग़ौर व फ़िक्र करना और हक़ीक़त से आशना होना ही तसवूफ़ का असल मक़सद है. अगर किसी को लफ़्ज़ ‘तसवूफ़ से परहेज़ हो तो वो चाहे इसको जो नाम देले मतलब तो हक़ीक़त तक पहुंचे से है. (concluded)