साहित्य

**तुमको** पागलख़ाने में दाख़िल दिलाने का इंतज़ाम हम करेंगे — सुमन मोहिनी

Suman Mohini
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तुम दिन के उजाले में कहो ग़र कि दीपक जलाना है तो हम सवाल ना करेंगे
तुम रात में कहो कि दिन है तो हम सवाल ना करेंगे
तुम धूप में कहो कि चांदनी खिली है तो हम सवाल ना करेंगे
तुम ग़र कहो कि हाथी उड़ता है तो हम सवाल ना करेंगे
तुम ग़र कहो कि पेड़ पर चॉकलेट उगती हैं तो हम सवाल ना करेंगे
तुम ग़र कहो कि ट्रेन सड़क पर चलती है तो हम सवाल ना करेंगे
तुम ग़र कहो कि सूरज को गोद में लिए हो तो हम सवाल ना करेंगे
सुनते सुनते जब हम पक जाएंगे तो एक काम हम करेंगे
तुमको पागलखाने में दाखिला दिलाने का इंतजाम हम करेंगे
— सुमन मोहिनी

Suman Mohini
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तुम कहते हो मुझसे कि वक़्त नहीं है
बात तक करने की भी फुर्सत नहीं है
मैंने कहा कि वक़्त तो निकालना पढ़ता है
अपनों के बारे में भी सोचना पढ़ता है
ये दौलत ये शोहरत किसी काम की नहीं
ग़र अपनों को ही हम खुश ना रख पाए
समय मुट्ठी से रेत कि तरह फिसल रहा है
हर एक पल घट रहा है
क्या जाने कब जिंदगी की शाम हो जाए
क्या जाने कब कोई अपना बिछुड़ जाए
फकत पछतावा ही केवल तब रह जाएगा
कोई अपना ग़र हमसे जुदा हो जाएगा
थोड़ा वक़्त निकालो उनके लिए जो तुम्हें चाहते हैं
वर्ना हाथों में सिर्फ यादों का पुलिंदा रह जाएगा
रह जाएंगे कुछ बीते हुए लम्हे और य़ह अफसोस
कि काश वो वक़्त फिर से लौट आए
और याद आयेंगी किसी की कही हुई वो बातें
कि कुछ वक़्त निकालो मेरे लिए भी
लेकिन वो लम्हा वो इंसान तब तक गुजर चुका होगा
हाथ में सिर्फ पछतावे के सिवा कुछ ना बचा होगा
बस कानों में गूंज रही होंगी उसकी वो कही हुई बातें
जो सोने नहीं देंगी तुम्हें कितनी ही रातें
सोचोगे उनको बस तुम ख़यालों में
देखोगे उनको केवल तुम ख्वाबों में
मगर साक्षात कभी भी उनसे मिल नहीं पाओगे
ना फिर कोई शिकवे शिकायत ही उनसे तुम सुन पाओगे
फिर किसके सामने तुम नाज़ नखरे दिखाओगे
और फिर किससे तुम य़ह कह पाओगे कि मेरे पास वक़्त नहीं है
— सुमन मोहिनी