साहित्य

तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त हो…??

कश्मीरा एण्ड शहरयार
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एक बहुत अमीर आदमी ने रोड के किनारे एक भिखारी से पूछा…”तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त हो…??”
भिखारी ने जवाब दिया…”मेरे पास महीनों से कोई काम नहीं है… अगर आप मुझे कोई नौकरी दें तो मैं अभी से भीख मांगना छोड़ दूँ” अमीर मुस्कुराया और कहा…”मैं तुम्हें कोई नौकरी तो नहीं दे सकता…लेकिन मेरे पास इससे भी अच्छा कुछ है… क्यूँ नहीं तुम मेरे बिज़नस पार्टनर बन जाओ…” भिखारी को उसके कहे पर यकीन नहीं हुआ…”ये आप क्या कह रहे हैं क्या ऐसा मुमकिन है…?”हाँ मेरे पास एक चावल का प्लांट है.. तुम चावल बाज़ार में सप्लाई करो और जो भी मुनाफ़ा होगा उसे हम महीने के अंत में आपस में बाँट लेंगे..” भिखारी के आँखों से ख़ुशी के आंसू निकल पड़े…”आप मेरे लिए जन्नत के फ़रिश्ते बन कर आये हैं मैं किस कदर आपका शुक्रिया अदा करूँ..” फिर अचानक वो चुप हुआ और कहा..”हम मुनाफे को कैसे बांटेंगे..? क्या मैं 20% और आप 80% लेंगे ..या मैं 10% और आप 90% लेंगे.. जो भी हो…मैं तैयार हूँ और बहुत खुश हूँ…” अमीर आदमी ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा .. “मुझे मुनाफे का केवल 10% चाहिए बाकी 90%तुम्हारा ..ताकि तुम तरक्की कर सको..”

भिखारी अपने घुटने के बल गिर पड़ा…और रोते हुए बोला…”आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा… मैं आपका बहुत शुक्रगुजार हूँ …। और अगले दिन से भिखारी ने काम शुरू कर दिया ..उम्दा चावल और बाज़ार से सस्ते… और दिन रात की मेहनत से..बहुत जल्द ही उसकी बिक्री काफी बढ़ गई… रोज ब रोज तरक्की होने लगी….और फिर वो दिन भी आया जब मुनाफा बांटना था. और वो 10% भी अब उसे बहुत ज्यादा लग रहा था… उतना उस भिखारी ने कभी सोचा भी नहीं था… अचानक एक शैतानी ख्याल उसके दिमाग में आया…”दिन रात मेहनत मैंने की है…और उस अमीर आदमी ने कोई भी काम नहीं किया.. सिवाय मुझे अवसर देने की..मैं उसे ये 10% क्यूँ दूँ…वो इसका हकदार बिलकुल भी नहीं है..। और फिर वो अमीर आदमी अपने नियत समय पर मुनाफे में अपना हिस्सा 10% वसूलने आया और भिखारी ने जवाब दिया ” अभी कुछ हिसाब बाक़ी है, मुझे यहाँ नुकसान हुआ है, लोगों से कर्ज की अदायगी बाक़ी है, ऐसे शक्लें बनाकर उस अमीर आदमी को हिस्सा देने को टालने लगा.” अमीर आदमी ने कहा के “मुझे पता है तुम्हे कितना मुनाफा हुआ है फिर कयुं तुम मेरा हिस्सा देने से टाल रहे हो ?” उस भिखारी ने तुरंत जवाब दिया “तुम इस मुनाफे के हकदार नहीं हो ..क्योंकि सारी मेहनत मैंने की है…”

जरा सोचिए …अगर उस धनवान व्यक्ति के साथ पर आप होते तो क्या करते ? आप उससे सबकुछ छीन लेते ।

क्या आप जानते हो हम में से अधिकतर लोग भी उसी भिखारी की तरह है । ईश्वर ने अल्लाह ने हमें जिंदगी दी…हाथ- पैर… आँख-कान…दिमाग दिया…समझबूझ दी…बोलने को जुबान दी…जज्बात दिए…”हमें याद रखना चाहिए कि दिन के 24 घंटों में 10% अर्थात लगभग ढाई घंटे उसका हक़ है, जिसे हमको राज़ी ख़ुशी उसका नाम सिमरन करते हुए उसके बंदों और जीवों के साथ अच्छा व्यवहार करते हुए जरूरतमंदों की सहायता करते हुए अदा करना चाहिए . और सदैव उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए जिसने हमें जिंदगी दी सुख दिए ।।