
पिछले 20 सालों से तुर्की की हुकूमत राजप तय्यप अर्द्गान के हाथों में है, इस दौरान कई मौकों पर तुर्की के राष्ट्रपति ने विश्व में अपनी और अपने देश की धाक क़ायम की है, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे ताक़तवर देशों के सामने तय्यप अर्द्गान दबंगई के साथ सीना तान कर खड़े रहे और कई बार इन देशों को उन्होंने आढे हाथों भी लिया, जब कभी भी जर्मनी ने तुर्की को लेकर कुछ कहा तय्यप अर्द्गान ने तुरंत उसका सख्ती के साथ जवाब दिया यही नहीं, यूरोप के देशों के आका अमेरिका की धौंस तक उन्होंने स्वीकार नहीं की, ट्रम्प का दौर रहा हो या बाइडेन का, उन्होंने अमेरिका के साथ अपनी शर्तों पर बराबरी के रिश्ते रखे हैं, यूक्रेन और रूस के तनाव के बीच तय्यप अर्द्गान की दोस्ती रूस के राष्ट्रपति के साथ ऊंचाइयां छूती नज़र आयी तो दूसरी तरफ तुर्की ने यूक्रेन को अपने सबसे खतरनाक ड्रोन बेचे, इस जंग में तुर्की ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया
अरब देशों के बीच जो अब नयी दोस्ती की इबारत लिखी जा रही है उसमे तुर्की की बहुत अहम् भूमिका रही है, क्राउन प्रिंस बिन सलमान से उनके रिश्ते ख़राब रहे मगर किंग सलमान की इज़्ज़त उनकी नज़रों में हमेशा बनी रही, यही कि किंग सलमान के एक कॉल पर तय्यप अर्द्गान ने तमाम तल्खियां भुलाते हुए क्राउन प्रिंस को बचाने के लिए आगे बढ़ कर काम किया, इमरान खान के साथ मिलकर तय्यप अर्द्गान ने सऊदी अरब और चीन के रिश्ते बेहतर बनाने में मदद की वहीँ सऊदी अरब और ईरान बीच दोस्ती कायम करवाने का रास्ता साफ़ किया, इमरान खान और तय्यप अर्द्गान की जोड़ी ने अरब और ईरान के आपस में अच्छे रिश्ते बनवाये साथ ही चीन और रूस के साथ पूरे अरब को जोड़ने का काम किया

तय्यप अर्द्गान हर ऐसे मौक़े पर जब मुस्लिम क़ौम की बात सामने आयी, आगे आ कर उस पर अपनी राय दी, मैंम्मार में मुसलमानों पर ज़ुल्म का मामला रहा या फिर कश्मीर, अज़रबैज़ान, साईप्रस, बोस्निया वो बोले और बढ़-चढ़ कर बोले
तुर्की में इसी महिने की 14 तारीख को चुनाव होने वाले हैं, इन चुनावों में तय्यप अर्द्गान को लोग पहले जैसा ताक़तवर नहीं मान रहे थे बल्कि विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार को लेकर चर्चाएं होने लगी थीं, भयानक भूकंप के बाद तय्यप अर्द्गान के बारे में कहा जा रहा था कि उनका ये चुनाव राजनीती में अंत साबित होगा लेकिन चुनावों से पहले तय्यप अर्द्गान ने रिकॉर्ड भीड़ जमा कर साबित कर दिया है कि उन्हें हराना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है
Brajesh Misra
@brajeshlive
इसे कहते हैं महा-रैली। तुर्की के राष्ट्रपति
@RTErdogan
को हराना मुश्किल ही नहीं, लगभग नामुमकिन है। इस्तांबुल में 17 लाख समर्थकों को बुलाकर उन्होंने अपनी ताकत का खुला प्रदर्शन किया। भूकंप से बरबाद हुए इस देश में पुनर्निर्माण सबसे बड़ी चुनौती है। साथ ही पश्चिम को संदेश कि वो अब भी अजेय हैं। लंबे कार्यकाल के बावजूद ऐसी लोकप्रियता विलक्षण है। कयामत जैसा जलजला झेलने वाला देश, इस वक्त चुनौतियों के पहाड़ से मुकाबिल है। इस महा रैली ने एर्डोगन को विपक्ष के सामने बड़ा सियासी उछाल दिया है। उनके विरोधी इतनी भीड़ देख हैरान हैं।
राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन सत्ता में लगभग 20 सालों से ज़्यादा से हैं और अब उनके सामने सबसे कड़ी चुनौती है. तुर्की के छह विपक्षी दलों ने 14 मई को राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों के लिए एकजुट होकर विपक्षी नेता केमल किलिकडारोग्लू को अपने विपक्षी गठबंधन का उम्मीदवार चुना है. राष्ट्रपति अर्दोआन के शासन में तुर्की निरंकुश हो गया है और विपक्ष इसमें तब्दीली लाने की कोशिश कर रहा है. तुर्की में बढ़ती महंगाई और दोहरे भूकंप से 50 हज़ार से ज़्यादा मौतों के बाद राष्ट्रपति अर्दोआन कमज़ोर पड़ते दिख रहे हैं.