तो वो खुद तो सुखी रहेंगे ही बल्कि दूसरों से नफ़रत करने से भी बचेंगे……By-Poonam Gautam
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Poonam Gautam ==============
जो लोग #मतलबी और #स्वार्थी होते है… वो भी कहाँ #खुश रहते है……. उनकी जिंदगी निकल जाती है दूसरों के लिए #परेशानी पैदा करने में……. अगर यहीं मेहनत वो खुद की भलाई के लिए कर लें तो वो खुद तो सुखी रहेंगे ही बल्कि दूसरों की नफरत से भी बचेंगे……
दूसरों को #तकलीफ पंहुचा कर मिलने वाली ख़ुशी पल भर की होती है……. जबकि दूसरों को ख़ुशी दे कर होने वाली ख़ुशी आजीवन होती है…….. लेकिन ये #मूर्खता की निशानी है की लोग सुखी होना ही नहीं चाहते… क्योंकि वो अपने दुःख से ज्यादा किसी के सुख से दुःखी है…….
ये बात भी बहूत अजीब लगती है की……लोग उन्हें #ठुकराते है जो उनके लिए दिन रात अच्छा सोचते है…… और लोग उनके तलवे चाटते है जो हर बार उन्हें ठोकर मारते है…. फिर ऐसे लोग दुःखी ना होंगे तो और क्या होंगे…………..
#इंसान के पास #बुद्धि है….. उसे समझना चाहिए की कौन उसका अपना है और कौन पराया……..फिर क्या फर्क पड़ता है की वो बेटा है या बेटी….. भाई है या बहन…….. अपने धर्म का है या दूसरे धर्म का है….. या किसी भी भाषा का………
बड़ी आई कलेक्टर कहीं की..! कहां चली महारानी …कॉलेज!!!ये बर्तन का ढेर क्या अल्लादीन का जिन्न साफ करेगा चल पहले ये सब साफ कर फिर जाना ….बड़ी आई पढ़ाई करने वाली …जैसे कलेक्टर ही बन जायेगी ….अरे मुई लड़की कित्ता भी पढ़ ले लिख ले घर केकाम तो करने ही पड़ेंगे समझी …!
मां की जली कटी को अनसुना सी करती गुड्डन बोल उठी और अगर कलेक्टर बन गई तो…!!तब तो ये सब काम नहीं करना पड़ेगा ना…! फिक्क से हंसती गुड्डन की बात ने तो मानो मां के तन बदन में आग ही लगा दी थी वहीं पड़ा डंडा दिखा कर चीख पड़ी चल चल बड़ी आई कलेक्टर कहीं की!!मुंह देखा है अपना आईने में!!आज तक इस खानदान में किसी आदमी को अधल्ली की नौकरी भी नहीं मिली तू लड़की होकर आई बड़ी कलेक्टर का ख्वाब देखने वाली!!घर में नही दाने अम्मा चली भुनाने..!
फुर्ती से बर्तन धोकर गुड्डन किताबें संभालती कॉलेज पहुंची तो प्रिंसिपल उसका इंतजार ही कर रहे थे.. गुड्डन तुम्हें इस बार सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण कॉलेज की तरफ से सिविल सेवा प्रतियोगिता की मुफ्त कोचिंग प्रदान की जाएगी …!अंधा क्या चाहे दो आंखें गुड्डन की तो सबसे बड़ी समस्या हल हो गई थी।
समय की रफ्तार से भी तेज हो गई थी गुड्डन की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी और पढ़ाई की रफ्तार ….और साथ ही मां के जहर बुझे तानों की रफ्तार…..!!
सुबह के अखबार में गुड्डन की बड़ी सी फोटो छपी थी..” कस्बे की लड़की अब बनेगी कलेक्टर ..प्रथम बार सिविल सेवा परीक्षा में कस्बे ने सफलता प्राप्त की…”!
पैर छूती गुड्डन से आंख नहीं मिला पा रही थी मां ..डबडबाई आंख और अवरुद्ध कंठ था मुझे माफ कर दे बेटी बचपन से तुझे जली कटी सुनाती आई काम करवाती रही पढ़ाई से दूर करती रही सोचती थी लड़की के नसीब में यही चूल्हा चौका ही लिखा होता है तूने तो अपना ही नहीं पूरे खानदान का नसीब बदल दिया !!
मां तेरी जली कटी का ही असर था जो मेरे लिए प्रेरणा बन गया मुझे चुनौती देता रहा मेरी प्यारी मां तेरी जली कटी मेरे लिए आशीर्वाद बन गई ..एक बार फिर से कह ना बड़ी आई कलेक्टर कहीं की!!!हंसती हुई गुड्डन की बात सुन मेरी कलेक्टर बिटिया रानी कह मां ने दोनों हाथों से अपनी बेटी को कलेजे से लगा लिया था।
#जली कटी लतिका श्रीवास्तव
Nikhil Kumar · ======= इस मूवी की कहानी गुजरात कच्छ में कहीं दूरदराज बसे एक छोटे से गांव से शुरू होती है। इस सीन को देखकर दर्शक समझ सकते हैं कि अगले करीब दो घंटों में स्क्रीन पर उन्हें क्या दिखाई देगा। गांव की पंचायत गांव की एक नवविवाहिता को अपने पति के घर लौटने का फैसला देती है, पंचायत पीड़ित महिला की कोई बात नहीं सुनती, महिला पति के घर लौटना नहीं चाहती, क्योंकि वहां उसका बूढ़ा ससुर और देवर उसका यौन शोषण करता है। पति किसी दूसरी औरत से लगा हुआ है। वह एक अबॉर्शन भी करवा चुकी है क्योंकि उसे यह ही नही पता होता कि बच्चे का बाप कौन है। वह महिला अपना यह दर्द अपनी मां के साथ भी बांटती है, लेकिन मां भी अपनी बेटी की बात नहीं सुनती। बेशक, इस घटना का फिल्म की स्टोरी से कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन यह घटना फिल्म के टेस्ट को जरूर बयां करती है।
फिल्म इस गांव की चार महिलाओं की है। रानी (तनिष्ठा चटर्जी) की उम्र करीब 32 साल है, एक ऐक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो चुकी है। रानी अब अपने बेटे गुलाब सिंह की शादी करना चाहती है ताकि उसके वीरान घर में बहू आ सके। गुलाब की मर्जी के खिलाफ रानी उसकी शादी कम उम्र की जानकी से करती है। जानकी अभी स्कूल में पढ़ रही है, इस शादी से बचने के लिए जानकी अपने लंबे बाल तक काट लेती है, लेकिन इसके बावजूद जानकी की शादी गुलाब से होती है। शादी के बाद गुलाब अपनी पत्नी को पीटता है, शराबखोरी करता है और वेश्याओं के पास जाता है। रानी चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही।
रानी की एक सहेली लाजो (राधिका आप्टे) है, लाजो शादी के बाद मां नहीं बन सकी तो उसका शराबी पति उसे बांझ बताकर रोजाना बुरी तरह से पीटता है जबकि वह खुद बांझ है।
इसी गांव में चल रही एक नाटक मंडली में डांस करने वाली बिजली (सुरवीन चावला) डांस ग्रुप में नाचने के साथ गांव के मर्दों की सेक्स की भूख मिटाने का काम भी करती है।
रानी, लाजो, बिजली और जानकी को मर्दों से नफरत है, हर राज पुरुष प्रधान समाज में कुचली जा रही इन चारों महिलाओं के इर्दगिर्द घूमती इस कहानी में इन चारों का मकसद पुरुषों की कैद से छुटकारा और उनसे मिलने वाली प्रताड़ना से मुक्ति प्राप्त करना है।
फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत ही तीक्ष्ण कटार की तरह है जो कई सारे मुद्दों की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करती है जैसे बाल विवाह, पंचायती राज, पुरुष प्रधानता और महिलाओं पर अत्याचार. लीना यादव की एक बेहतरीन फिल्म।
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