विशेष

थप्पड़ : ……माँ और पत्नी के बीच जूझते पुरूष!

Shantanu netam
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#पुरूष का समर्पण
पूरे दो महीने बाद तनख्वाह मिला था..सोहन को पिछला महीना बहुत तंगी से निकला फिर भी घर में किसी को भनक तक नही लगने दी सबकी जरूरत का सामान समय पर ला कर दे दिया था…. अब जब तनख़्वाह मिली है तो माँ के एक साड़ी खरीद लेता हूँ, बच्चों के लिए मिठाई और सीमा को कुछ पैसे ही दे दूँगा,, ओ भी अपने मन का कर लेगी.. यही सोचते हुए ऑफिस से निकला रास्ते मे बाजार से सामान लेकर घर को चल पड़ा ठंडी का मौसम समय से पहले ही शाम गहराने लगी थी…। घर के बाहर ही पुरानी शॉल ओढ़े माँ बैठी थी। अरे इतनी अंधेरे में येसे बाहर अकेली क्यूँ, बैठी हो ? कहते हुए मोटर साइकिल के बैग से सामान निकालने लगा,। अंदर चलो माँ मै आपके लिए कुछ लाया हूँ…. जो कुछ भी लाया है जा, जाकर दे अपनी जोरू को मुझे दो वक्त की रोटी दे रहा है वही बहूत है.। माँ येसी क्यूँ बोल रही हो कुछ हुआ है क्या फिर से तुम दोनों के बीच.. ना बेटा कुछ ना हुआ…. मै बोझ बन गई हूँ किसी काम की नही रही ना इसलिए!!!! मै तो लोक लिहाज के डर से इतना बर्दाश्त करती हूँ नही तो आज ही अपने रसोई अलग कर लूँ… पर दुनियाँ क्या कहेगी यही कि इकलौते बेटे बहू का सुख भी बुढ़िया से देखी नही जा रही,,.. कहते कहते बुढ़िया रोने लगी….. अरे!!! माँ येसा क्या करती हो माँ सुनो तो आप समझने की कोशिश!!!!! हां अब तु भी मुझे ही समझाएगा तेरी जोरू तो बहुत समझदार हैं एक मै ही गवांर हूँ बुढ़िया और जादा बड़बड़ाने लगी।


बेचारे सोहन जो रास्ते भर सबको खुश देखने के लिए कल्पना की बड़ी बड़ी मीनारे बनाया था पल भर में ही धराशायी हो गया……. ।
जैसे ही सोहन कमरे मे आया, पत्नी भी क्यूँ पीछे रहती… देखो जी अभी के अभी फैसला करो कि आपको किसके साथ रहना है मै अब और तुम्हारी माँ की ज्यादती बर्दाश्त नही कर सकती,…. अरे सीमा ये क्या कह रही हो माँ हमारे साथ नही रहेगी तो कहाँ जाएगी? हां तुम्हारी माँ कहाँ जाएगी..!!! मैं ही पराए घर से आई हूँ मुझे ही जाना पड़ेगा मै हूँ ही कौन??…सीमा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। अरे मैंने येसा तो नही कहा,.. सोहन हताश होकर बोला। जब परिवार संभालने की हिम्मत नहीं थी तो शादी ही क्यूँ की???बने रहते श्रवण कुमार….
हां मुझसे गलती हो गयी मेरी माँ!! कहकर हाथ जोड़ते हुए सोहन कमरे से बाहर निकल कर… घर की छत पर टहलने लगा…… सोचने लगा ये औरते भी कमाल होती है।. माँ अपने बच्चे के लिए, और पत्नी अपने पति के लिए कितना, भूख प्यास बर्दाश्त करती है।व्रत, उपवास दुनियाँ भर के नियम धीयम पालती हैं अपने पति और बच्चों के लिए मंदिर मंदिर देव पूजती है, बड़ा से बड़ा कष्ट सह लेती है, ये कैसा अनोखा प्यार है इन दोनों का!!!!!
पर बस दो बातें बर्दाश्त नही कर सकती, सास अपनी बहू का और बहू अपनी सास की बात बर्दाश्त कर ले बस फ़िर तो, घर में ख़ुशहाली आने से कोई नही रोक सकता,…. महिलाएँ देश की आधी आबादी हैं थोड़ी सहन शक्ति आ जाए तो घर, समाज और देश की शक्ल ही बदल जाए.. सोहन अपने आप ही बड़बड़ा पड़ता है….. हमेशा औरते ही बेचारी नही होती……… माँ और पत्नी के बीच सामंजस्य ना बैठा पाने वाला मुझ जैसा पुरुष भी “बेचारा” होता है……माँ और पत्नी के बीच जूझते हुए सभी पुरूषों को सामर्पित….

Navneet Singh ·
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थप्पड़
यदि आपसे कहा जाए कि महिला शशक्तिकरण पर आधारित कोई फ़िल्म का नाम सुझाव दीजिये या ऐसी फिल्म जिसे देख कर महिलाओं के मन में आत्मशक्ति पहचानने की दृष्टि विकसित हो तो कौन सी फ़िल्म का नाम बताएंगे??
मेरे जेहन में जो पहला नाम आता है वो फ़िल्म “थप्पड़” का है।कहानी एक उच्च वर्ग के सम्पन्न परिवार की है जहां नायिका (तापसी पन्नू)अपने पति व सास, ससुर के साथ रहती है,पति अपने ऑफिस से लंदन वाले ऑफिस में प्रमोट होने के लिए जी जान लगा रहा है।नायिका पति को प्यार करती है, पूरे परिवार का ध्यान रख रही एक आदर्श बहु की तरह।एक दिन एक पार्टी में लंदन वाले ऑफिस में प्रमोट न होने पाने की फ्रस्टेशन में नायक सबके सामने अपनी पत्नी को थप्पड़ लगा देता है।अगले दिन सुबह नायिका हर रोज़ की ही तरह सारे काम में लग जाती है,पति भी सॉरी बोल देता है पर यह कहता है कि पता नहीं कल रात को पार्टी में लोग उसके बारे में क्या सोच रहे होंगे,पत्नी के बारे में क्या सोच रहे होंगे इससे उसे कोई फर्क नहीं है,और यहीं से नायिका के जीवन में एक टर्निंग पॉइंट आता है,नायिका को लगता है कि महज यह गुस्से में मारा थप्पड़ नहीं उसके आत्मसम्मान पर कुठाराघात है,उसे लगता है कि जैसे उसका जिंदगी भर का इन्वेस्टमेंट उससे छीन लिया गया है।यहां नायिका एक अन्य महिला वकील की सहायता से डाइवोर्स केस फाइल कर देती है,पूरा घर उसे यही समझाने में लग जाता है कि सिर्फ एक थप्पड़ ही तो था,इतनी तो कोई बड़ी बात नहीं थी,पर नायिका के मन में चल रहे भावों को फ़िल्म में बहुत प्रभावशाली तरीके से दर्शाया गया है।महिला वकील द्वारा भत्ते लेने की बात को सिरे से खारिज कर नायिका द्वारा दृढ़ता का परिचय दिया जाता है,उस सीन के वकील और नायिका का संवाद बेहद संजीदा है।नायक इस फ़िल्म में कोई खलनायक नहीं है,न ही कोई गलत व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है,पर फ़िल्म दिखाती है कि पति पत्नी का बिना किसी विवाद के साथ रहना जोकि अधिकांश परिवारों में है, ही मजबूत दाम्पत्य का आधार नहीं है,सिर्फ प्रेम ही काफी नहीं है,प्रेम बिना परस्पर सम्मान के छलावा मात्र है।नायिका का वापस अपने मायके आने पर पिता द्वारा उसके निर्णय में साथ दिया जाना भी एक बहुत बड़ी सामाजिक सीख है इस फ़िल्म के द्वारा,जहां एक और कई महिलाएं सिर्फ इस भय से कि मायके में कौन कब तक रखेगा,ससुराल के जुल्म सहती रहती हैं।निर्देशक अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म भले ही उच्च वर्ग की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हो पर सीख तो समाज की हर वर्ग की महिला ले सकती है।
जब तक आप अपना सम्मान खुद नहीं करेंगे,दूसरे को क्या पड़ी है आपको सम्मान देने की।
फ़िल्म अब तो आप ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देख सकते हैं।\