विशेष

दिमाग़ मे नग्न स्त्री—–प्रेम और काम, प्रेम और सेक्स विरोधी चीज़ें हैं ?

स्वामी देव कामुक via facebook wall
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उम्रदराज़ औरतो में बड़ी कशिश,खिंचाव और आकर्षण महसूस करता हु।उनके भरे हुए शरीर और आगे पीछे की मादक बड़ी गोलाइयों अनायास ही मन मोह लेती है ।तन मन मे थिरकन पैदा कर देती है।बड़ी उम्र की ये औरते वास्तव में शरीर से नही मन से प्यासी होती है कारण इनके साथी उन्हें वो सब कुछ नही दे पाते

जिसकी ये अपेक्षा करती है,चाहे वो उनकी व्यस्तता वजह हो ,चाहे ढलती उम्र के कारण सेक्स के प्रति रुझान कम होना ।इन प्यासी नारियो को जब कोई पर पुरुष प्रेम देता है तो ये तन मन से उस से लतर की तरह चिपक जाती है और अपना सर्वस्व निछावर कर देती है।अब दूसरा पहलू देखे

पुरुष को इनके गदराए बदन से खेलने में आनंद आता है ये अपनी स्वभाबिक कामुक अदाओ और सिसकियों से ज्यादा उत्तेजित कर देती है।बच्चे पैदा होने के कारण इनके आंतरिक शारीरिक अंगों में ऐसे बदलाव आ जाते है जो घर्षण में ज्यादा आनंद देते है पुरुष को ऐसा चरमसुख देते है कि उसे मोक्ष जैसा लगता है… …❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
तुम्हारा स्वामी देव

स्वामी देव कामुक
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एक शादीशुदा स्त्री क्यों पड़ जाती है
किसी के प्रेम में ?
ऐसा नहीं कि वो बदचलन है
ऐसा भी नहीं कि उसका
चरित्र ग़लत है
पर हाँ फिर भी वो पड़ जाती
है किसी के प्रेम में
उसके जीवन में जो खालीपन
हैं उसे किसी का साथ भरने
लगता है जब उसे लगता है उसे कोई
नहीं समझता कोई भी उसे
नहीं सुनता
तब वह उसे अच्छा लगने
लगता हैं जो उसे समझता
भी है और सुनता भी है।
एक ऐसे किसी का साथ
जिसके साथ वो बेफिक्री
वाली हंसी हंस पाती है
एक ऐसे किसी का साथ
जिसे वो हर बात कह जाती
है बिना ये सोचे कि कोई उसे
जज करेगा।
पूर्ण समर्पित भाव से खुद
को उसके हवाले कर देती है
देह से परे प्रेम को हर रंग में
बिखेर देती है.।।

स्वामी देव कामुक
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नारी।
नारी अपने स्वभाव से ही अभिनेत्री ,
होती है
अस्वस्थ रह कर भी स्वस्थ, रहने का
अभिनय करती है,
कष्ट में रह कर भी, प्रसन्न रहने का,
पिडा ग्रस्त रहने पर भी मुस्कुरा ने का,
बहुत सरलता से अभिनय करती हैं,
इसलिए उनके हौसले बहुत बुलंद होते हैं,
जिन्दगी और औरत , एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,
*रास्ते उनके ही आसान हुआ करते हैं*
हौसले जिनके चट्टान हुआ करतें हैं,

*ऐ नारी ना घबरा ईन परेशानियों से*
*ये तो पलभर की मेहमान हुआ करते हैं*
सारा जगत, उसके मन की ,
थाह लेने को बेताब है
पर उसके मन की ,
गहराई तक कोई नहीं पहुंच पाया,
अपने दुःख को छुपाने में ,
वो बहुत माहिर हैं।
खुशीयां, सभी को बांटती है,
आंसु सभी के पोछतीं है।
प्रकृति है,जननी है,
क्यों की वो सृष्टि सृजन करतीं हैं।

स्वामी देव कामुक
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नारी हूं मैं
पीड़ा हूं
वेदना हूं
दर्द हूं
संवेदना हूं
क्योंकि
नारी हूं मैं
​​संतान के लिए
ममता भरा आंचल हूं
भाई के लिए
राखी का सम्बल हूं
पति के लिए
आंखों का काजल हूं
पिता के लिए
सुख का बादल हूं
बेटी का लाड़
बहू का दुलार
हर रिश्ते की
परिभाषा हूं
क्योंकि
नारी हूं मैं
​​त्रेता की सीता हूं
हारती रही
छल से
द्वापर की द्रौपदी हूं
जीतती गई
बल से
क्योंकि
नारी हूं मैं
​​भक्ति की मीरा हूं
छूट गई
द्वंद से
वीरंगना लक्ष्मी हूं
लुट गई
जंग से
क्योंकि
नारी हूं मैं
वर्तमान की निर्भया हूं
हार कर भी
हारी गई
और
जीत कर
भी हारी है
क्योंकि
नारी हूं मैं
जन्म से
मृत्यु तक
बंधी हूं
कभी संस्कार
के नाम पर
कभी धर्म
के नाम पर
कभी रिवाज
के नाम पर
कभी कर्तव्य
के नाम पर
क्योंकि
नारी हूं मैं
मेरा अस्तित्व
मेरा सम्मान
मेरा वजूद
मेरा नाम
सब छीना
फिर भी
जी रही हूं
क्योंकि
नारी हूं मैं
दुष्टों के लिए
आग हूं
नफरत के लिए
राग हूं
पतझड़ के लिए
बहार हूं
आशिकों के लिए
त्योहार हूं
सृष्टि की
वसुधा हूं
क्योंकि
नारी हूं मैं..🌹🙏

स्वामी देव कामुक
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“पत्नी से रात भर संभोग करना अथवा संभोग से तृप्त करना पुरुष के लिए किसी युद्ध जीतने से कम नहीं है।”
कई पुरुष स्वयं को बहुत शक्तिशाली मानते हैं। वे कहते हैं कि “मैं इस तरह संभोग करूंगा की पत्नी की चीखें निकल जाएगी” या “मैं जोर-जोर से घंटों तक संभोग करूंगा, पत्नी स्वयं बोलेगी कि अब बस करो।” कई लोग कहते हैं कि “मैं रात भर संभोग करूंगा, पत्नी एकदम थक जाएगी।” ऐसे लोग अनाड़ी हैं या झूठ बोल रहे हैं। यह सब “छोटी मुंह और बड़ी बात है”, क्योंकि ऐसा करना सरल नहीं है। ऐसे लोग पत्नी की योनि में अपने लिंग को प्रवेश कराकर घर्षण करते हुए कुछ ही क्षण में पत्नी को अतृप्त छोड़कर स्खलित हो जाते हैं।

ऐसा नहीं है कि पत्नी से रात भर संभोग करना या उन्हें संभोग से तृप्त करना असंभव है। इसके लिए आपको संभोग को मजाक में नहीं बल्कि गंभीरता से लेना होगा क्योंकि, यह एक अध्यात्मिक विषय है।

आपके मन में अपनी अर्धांगिनी के प्रति सर्वदा प्रेम, करुणा एवं सहयोग की भावना होनी चाहिए। इन सभी भावनाओं के साथ अपनी पत्नी के प्रति समर्पण एवं सेवा भाव से उन्हें संभोग द्वारा पूर्ण रूप से तृप्त करने की दृढ़ संकल्प के साथ संभोग अभ्यास करना चाहिए। मन में कभी भी नारी के प्रति हीन भावना नहीं होनी चाहिए। आप अपनी पत्नी के दास अथवा सेवक बनकर ही संभोग द्वारा उन्हें पूर्ण रूप से तृप्त कर सकते हैं, स्वयं को पत्नी से श्रेष्ठ मान कर कभी भी संभोग कर उन्हें तृप्त नहीं कर पाएंगे, क्योंकि “नारी संसार में सर्वश्रेष्ठ है, नारी से श्रेष्ठ कोई नहीं है।”जय नारी शक्ति, जय नारी योनि…🙏🙏🙏🙏🙏
तुम्हारा स्वामी देव


स्वामी देव कामुक
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दिमाग मे नग्न स्त्री—–;
एक सुंदर नग्न मूर्ति फ्रान्स मे प्रदर्शित की गई |
वहां के लोगो ने उस मूर्ति की वेहद प्रशंसा की।
बनाने बाले के हाथ चूमे ।

फिर वही मूर्ति जब एशिया के एक महान देश मे प्रदर्शित की गई तो लोग उत्तेजित हो गये। उनको उसमे सिर्फ नग्नता ही दिखायी दी। और उन्होने मूर्ति चकनाचूर कर दी ।
अगर मूर्ति मे वासना होती तो मूर्ति फ्रान्स मे ही टूट जाती।वासना मूर्ति मे नही वासना मन मे थी । और जिस देश के नर के मन मे नग्न स्त्री बसती हो वह देश कभी रचनात्मक नही हो सकता है। वह बालात्कार ही करेगा कोई आविष्कार नही।
कुदरत ने स्त्री और पुरुष को एक दुसरे का पूरक बनाया है। लेकिन इतनी बात महान एशियन को समझ मे नही आती
वह स्त्री और पुरुष को एक साथ बेठे हुये नही देख सकता ।
उन्हें डेट करते हुये नही देख सकता ।
प्रेमी जोडो को प्रताडित किया जाता है।
और नतीजा नर के लिये मादा महत्वपूर्ण हो जाती है।

एक नर के जीवित रहने के लिये स्त्री से ज्यादा जरूरी पानी और हवा है। लेकिन फिर भी एशियन आदमी का दिमाग चैक करोगे तो उसमे हवा पानी की जगह नग्न स्त्री मिलेगी। प्रकृति का धन्यवाद जिसने हवा पानी से इसांन की बुद्धि को मुक्त रखा ।

अगर एशियन जरा से भी समझदार होते तो प्रेम का जरा भी विरोध नही करते । अगर वह प्रेम को सहजता से लेते और सोचते– दो लोगों का आपसी मामला है हमे क्या ? तो आज इनके दिमाग मे नग्न स्त्री नही सो रही होती।
तुम्हारा स्वामी देव

 

स्वामी देव कामुक
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औरत क्या है ? इस सवाल का जवाब हर कोई अपने नजरिए से देता है एक नजरिया मेरा भी पढ़ लो।
एक मांस का पुतला बाहर से सुन्दर और आकर्षित करती चमड़ी ओर उस चमड़ी को सजाया गया है नख से लेकर सर तक। तभी सुन्दर दिखती है ।
बिना श्रृंगार के त़ो रुप सौंदर्य कम आकृष्ट करता है। गरुड़ पुराण में वर्णित है जब जीव अत्यंत पाप कर लेता और फिर मृत्यु के पश्चात कर्म के अनुसार उसे अलग अलग योनि (जाति)में जन्म लेना पड़ता है।

हर निम्न से निम्न योनियों में जन्म मृत्यु लेकर पाप कर्म भोगने से भी उसके पाप पुरे नष्ट नहीं होते हैं तो उसे मनुष्य जाति में नारी बना कर कर्म फल भोगने के लिए भेजा गया है ‌‌।
एक औरत आजीवन गुलाम बन कर जीती है रामायण में एक बात कहती हैं सीता माता ने कहा है औरत को सपने में भी सुख नहीं मिलता है । जब छोटी होती है तो माता पिता के अधीन होती है।जवान होती है तो पति के अधीन होती है और बुढ़ापे में बच्चों के अधीन होती है।

हर लेखक और पुरुष ने औरत को अलंकारों से सजाया है बनावटी आकृति बनाई है सभी ने अपने अपने तरीके से किसी ने मृगनयनी कहा है तो किसी ने अप्क्षरा बता कर वर्णन किया है। तो किसी ने नारी के होंठों को कमल पंखुड़ियों सा बताया।

औरत के रुप सौंदर्य को देख कर बड़े बड़े तपस्वी, संत तक काम वासना जगा उठें तो साधारण पुरुष क्या कर सकते हैं। औरत की रचना ही मोहित करने वाली की है। एक बार देख ले तो काम के मन में भी वासना जाग जाएं।

नारी किसी का भोग नहीं करती है पुरुष उसके शरीर को भोग समझ कर भोगता है, और अति कामुक और वासनाओं में डूबे पुरुष नर्क गामी हों जाते हैं।
मगर सच कहूं तो औरत भी एक मांस का पुतला है और कुछ भी नहीं औरत के भीतर भी मांस,खुन हड्डियों का कंकाल इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। जिस सीने को देख कर पुरुष के मन में काम वासना जागती है वो भी मांस के ही लोथड़े है इससे ज्यादा कुछ नहीं।

नारी पावन होती तो क्यों उसके शरीर की इस तरह रचना नहीं होती हर महीने एक नर्क से गुजरती है , जिस अंग को लेकर पुरुष ज्यादा कामुक होता उस गुप्त अंग योनि से खून , मेला निकलता है , और इसी किचड़ भरे दलदल में फंसते हैं कामी , पांच दिन रजवसला सूतक से गुजरना पड़ता है गर्भवती होती है तो नौ महीने तकलीफ से गुजरती है और जब सन्तान को जन्म देती है तो एक मौत से गुजरती है।

स्वामी देव कामुक
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प्रेम और सेक्स में विरोध
आप जानकर हैरान होंगे, प्रेम और काम, प्रेम और सेक्स विरोधी चीजें हैं। जितना प्रेम विकसित होता है, सेक्स क्षीण हो जाता है। और जितना प्रेम कम होता है, उतना सेक्स ज्यादा हो जाता है। जिस आदमी में जितना ज्यादा प्रेम होगा, उतना उसमें सेक्स विलीन हो जाएगा। अगर आप परिपूर्ण प्रेम से भर जाएंगे, आपके भीतर सेक्स जैसी कोई चीज नहीं रह जाएगी। और अगर आपके भीतर कोई प्रेम नहीं है, तो आपके भीतर सब सेक्स है।

सेक्स की जो शक्ति है, उसका परिवर्तन, उसका उदात्तीकरण प्रेम में होता है। इसलिए अगर सेक्स से मुक्त होना है, तो सेक्स को दबाने से कुछ भी न होगा। उसे दबाकर कोई पागल हो सकता है। और दुनिया में जितने पागल हैं, उसमें से सौ में से नब्बे संख्या उन लोगों की है, जिन्होंने सेक्स की शक्ति को दबाने की कोशिश की है। और यह भी शायद आपको पता होगा कि सभ्यता जितनी विकसित होती है, उतने पागल बढ़ते जाते हैं, क्योंकि सभ्यता सबसे ज्यादा दमन सेक्स का करवाती है।

सभ्यता सबसे ज्यादा दमन, सप्रेशन सेक्स का करवाती है! और इसलिए हर आदमी अपने सेक्स को दबाता है, सिकोड़ता है। वह दबा हुआ सेक्स विक्षिप्तता पैदा करता है, अनेक बीमारियां पैदा करता है, अनेक मानसिक रोग पैदा करता है। सेक्स को दबाने की जो भी चेष्टा है, वह पागलपन है। ढेर साधु पागल होते पाए जाते हैं। उसका कोई कारण नहीं है सिवाय इसके कि वे सेक्स को दबाने में लगे हुए हैं। और उनको पता नहीं है, सेक्स को दबाया नहीं जाता। प्रेम के द्वार खोलें, तो जो शक्ति सेक्स के मार्ग से बहती थी, वह प्रेम के प्रकाश में परिणत हो जाएगी। जो सेक्स की लपटें मालूम होती थीं, वे प्रेम का प्रकाश बन जाएंगी। प्रेम को विस्तीर्ण करें। प्रेम सेक्स का क्रिएटिव उपयोग है, उसका सृजनात्मक उपयोग है। जीवन को प्रेम से भरें।

आप कहेंगे, हम सब प्रेम करते हैं। मैं आपसे कहूं, आप शायद ही प्रेम करते हों; आप प्रेम चाहते होंगे। और इन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। प्रेम करना और प्रेम चाहना, ये बड़ी अलग बातें हैं। हममें से अधिक लोग बच्चे ही रहकर मर जाते हैं। क्योंकि हरेक आदमी प्रेम चाहता है। प्रेम करना बड़ी अदभुत बात है। प्रेम चाहना बिलकुल बच्चों जैसी बात है। छोटे-छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं। मां उनको प्रेम देती है। फिर वे बड़े होते हैं। वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं, परिवार उनको प्रेम देता है। फिर वे और बड़े होते हैं। अगर वे पति हुए, तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं। अगर वे पत्नियां हुईं, तो वे अपने पतियों से प्रेम चाहती हैं। और जो भी प्रेम चाहता है, वह दुख झेलता है। क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता, प्रेम केवल किया जाता है। चाहने में पक्का नहीं है, मिलेगा या नहीं मिलेगा। और जिससे तुम चाह रहे हो, वह भी तुमसे चाहेगा। तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। दोनों भिखारी मिल जाएंगे और भीख मांगेंगे। दुनिया में जितना पति-पत्नियों का संघर्ष है, उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं और देने में कोई भी समर्थ नहीं है।

इसे थोड़ा विचार करके देखना आप अपने मन के भीतर। आपकी आकांक्षा प्रेम चाहने की है हमेशा। चाहते हैं, कोई प्रेम करे। और जब कोई प्रेम करता है, तो अच्छा लगता है। लेकिन आपको पता नहीं है, वह दूसरा भी प्रेम करना केवल वैसे ही है जैसे कि कोई मछलियों को मारने वाला आटा फेंकता है। आटा वह मछलियों के लिए नहीं फेंक रहा है। आटा वह मछलियों को फांसने के लिए फेंक रहा है। वह आटा मछलियों को दे नहीं रहा है, वह मछलियों को चाहता है, इसलिए आटा फेंक रहा है। इस दुनिया में जितने लोग प्रेम करते हुए दिखायी पड़ते हैं, वे केवल प्रेम पाना चाहने के लिए आटा फेंक रहे हैं। थोड़ी देर वे
आटा खिलाएंगे, फिर…।

और दूसरा व्यक्ति भी जो उनमें उत्सुक होगा, वह इसलिए उत्सुक होगा कि शायद इस आदमी से प्रेम मिलेगा। वह भी थोड़ा प्रेम प्रदर्शित करेगा। थोड़ी देर बाद पता चलेगा, वे दोनों भिखमंगे हैं और भूल में थे; एक-दूसरे को बादशाह समझ रहे थे! और थोड़ी देर बाद उनको पता चलेगा कि कोई किसी को प्रेम नहीं दे रहा है और तब संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी। दुनिया में दाम्पत्य जीवन नर्क बना हुआ है, क्योंकि हम सब प्रेम मांगते हैं, देना कोई भी जानता नहीं है। सारे झगड़े के पीछे बुनियादी कारण इतना ही है। और कितना ही परिवर्तन हो, किसी तरह के विवाह हों, किसी तरह की समाज व्यवस्था बने, जब तक जो मैं कह रहा हूं अगर नहीं होगा, तो दुनिया में स्त्री और पुरुषों के संबंध अच्छे नहीं हो सकते। उनके अच्छे होने का एक ही रास्ता है कि हम यह समझें कि प्रेम दिया जाता है, प्रेम मांगा नहीं जाता, सिर्फ दिया जाता है। जो मिलता है, वह प्रसाद है, वह उसका मूल्य नहीं है। प्रेम दिया जाता है। जो मिलता है, वह उसका प्रसाद है, वह उसका मूल्य नहीं है। नहीं मिलेगा, तो भी देने वाले का आनंद होगा कि उसने दिया।

अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को प्रेम देना शुरू कर दें और मांगना बंद कर दें, तो जीवन स्वर्ग बन सकता है। और जितना वे प्रेम देंगे और मांगना बंद कर देंगे, उतना ही–अदभुत जगत की व्यवस्था है–उन्हें प्रेम मिलेगा। और उतना ही वे अदभुत अनुभव करेंगे–जितना वे प्रेम देंगे, उतना ही सेक्स उनका विलीन होता चला जाएगा।
ध्यान सूत्र
(साभार ओशो )
तुम्हारा स्वामी देव

स्वामी देव कामुक
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शिप्रा का रिजर्वेशन जिस बोगी में था,
उसमें लगभग सभी लड़के ही थे ।
टॉयलेट जाने के बहाने शिप्रा पूरी बोगी घूम आई थी, मुश्किल से दो या तीन औरतें होंगी । मन अनजाने भय से काँप सा गया ।
पहली बार अकेली सफर कर रही थी, इसलिये पहले से ही घबराई हुई थी। अतः खुद को सहज रखने के लिए चुपचाप अपनी सीट पर मैगज़ीन निकाल कर पढ़ने लगी ।
नवयुवकों का झुंड जो शायद किसी कैम्प जा रहे थे, के हँसी – मजाक , चुटकुले उसके हिम्मत को और भी तोड़ रहे थे ।
शिप्रा के भय और घबराहट के बीच अनचाही सी रात धीरे – धीरे उतरने लगी ।
सहसा सामने के सीट पर बैठे लड़के ने कहा —

” हेलो , मैं साकेत और आप ? “
भय से पीली पड़ चुकी शिप्रा ने कहा –” जी मैं ………”
“कोई बात नहीं , नाम मत बताइये । वैसे कहाँ जा रहीं हैं आप ?”
शिप्रा ने धीरे से कहा–“इलाहबाद”
“क्या इलाहाबाद… ?

वो तो मेरा नानी -घर है। इस रिश्ते से तो आप मेरी बहन लगीं ।” खुश होते हुए साकेत ने कहा ।और फिर इलाहाबाद की अनगिनत बातें बताता रहा कि उसके नाना जी काफी नामी व्यक्ति हैं , उसके दोनों मामा सेना के उच्च अधिकारी हैं और ढेरों नई – पुरानी बातें ।
शिप्रा भी धीरे – धीरे सामान्य हो उसके बातों में रूचि लेती रही । शिप्रा रात भर साकेत का हाथ पकड़ के सोती रही
रात जैसे कुँवारी आई थी , वैसे ही पवित्र कुँवारी गुजर गई ।
सुबह शिप्रा ने कहा – ” लीजिये मेरा पता रख लीजिए , कभी नानी घर आइये तो जरुर मिलने आइयेगा ।”

” कौन सा नानीघर बहन ? वो तो मैंने आपको डरते देखा तो झूठ – मूठ के रिश्ते गढ़ता रहा । मैं तो पहले कभी इलाहाबाद आया ही नहीं ।”
“क्या….. ?” — चौंक उठी शिप्रा ।
“बहन ऐसा नहीं है कि सभी लड़के बुरे ही होते हैं, कि किसी अकेली लड़की को देखा नहीं कि उस पर गिद्ध की तरह टूट पड़ें । हम में ही तो पिता और भाई भी होते हैं ।”
कह कर प्यार से उसके सर पर हाथ रख मुस्कुरा उठा साकेत ।
शिप्रा साकेत को देखती रही जैसे कि कोई अपना भाई उससे विदा ले रहा हो शिप्रा की आँखें गीली हो चुकी थी
काश इस संसार मे सब ऐसे हो जाये

न कोई अत्याचार ,न व्यभिचार ,भय मुक्त समाज का स्वरूप हमारा देश,हमारा प्रदेश, हमारा शहर,हमारा गांव
जहाँ सभी बहन ,बेटियों,खुली हवा में सांस ले सकें
निर्भय होकर कहीं भी कभी भी आ जा सके जहाँ हर कोई एक दूसरे का मददगार हो 🤔
🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏
तुम्हारा स्वामी देव

 

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है

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