दुनिया

दुनिया की अगली महाशक्ति वह नहीं है, जिसके बारे में आप सोच रहे हैं : रिपोर्ट

क्या होगा, जब दुनिया एकध्रुवीय, द्विध्रुवीय या बहुध्रुवीय नहीं रह जाएगी? यहां यह सवाल उठता है कि अभी दुनिया को कौन चला रहा है?

अगर आप 45 साल के या उससे ज़्यादा के हैं, तो इस सवाल का जवाब आपके लिए आसान होगा। क्योंकि आप ऐसी दुनिया में बड़े हुए, जहां दुनिया पर दो महाशक्तियां का वर्चस्व था। अमरीका और उसके पश्चिमी सहयोगी बर्लिन की दीवार के एक ओर अपने नियम निर्धारित करते थे, जबकि दूसरी ओर सोवियत संघ का दबदबा था। इसे द्विध्रुवीय विश्व कहा जाता था।

उसके बाद 1999 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और अमरीका दुनिया की एकमात्र महाशक्ति रह गया। अमरीका ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अपना वर्चस्व बढ़ाकर और अपनी शक्ति का प्रयोग करके परिणामों को प्रभावित करना शुरू कर दिया। इस तरह से एकध्रुवीय दुनिया बन गई।

क़रीब 15 साल पहले, दुनिया में एक बार फिर बदलाव हुआ और यह पहले से कहीं ज़्यादा जटिल बन गई। अब अमरीका की ताक़त घटने लगी और दुनिया पर उसकी चौधराहट कम होने लगी। दूसरे कई देश ज़्यादा शक्तिशाली बनने लगे और उन्होंने अपने हितों और पसंद के हिसाब से अमरीका को नज़र अंदाज़ करना शुरू कर दिया।

आज आपको हर दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीन मुद्दों के बारे में सुर्ख़ियां देखने को मिलेंगी। यूक्रेन युद्ध, ताइवान का मुद्दा और ईरान का परमाणु कार्यक्रम। दुनिया के 90 फ़ीसद तक मुद्दे इन्हीं तीन मुद्दों के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि भविष्य में वैश्विक व्यवस्था, उससे बिल्कुल अलग होगी, जिसकी हमें अब तक आदत रही है। अब हम एकध्रुवीय, द्विध्रुवीय या बहुध्रुवीय दुनिया में नहीं रहते हैं। क्यों? क्योंकि अब कोई दुनिया में बहु-आयामी महाशक्ति नहीं है। यह बात सही है कि अमरीका और चीन आज महाशक्तियां नहीं हैं। कम से कम उस अर्थ में तो नहीं, जैसे हम हमेशा इस शब्द का इस्तेमाल करते आए हैं। कोई महाशक्ति नहीं होने का मतलब, एक वैश्विक व्यवस्था का नहीं होना है। इसके बजाय, आज कई विश्व व्यवस्थाएं हैं।

चीन एशिया में अपनी सैन्य क्षमताओं को तेज़ी से बढ़ा रहा है। यह अमरीका और उसके हिंद-प्रशांत सहयोगियों के लिए चिंता का विषय है। यूक्रेन पर रूस के हमले ने यूरोप को अमरीका के नेतृत्व वाले नाटो पर पहले से भी अधिक निर्भर कर दिया है।

लेकिन अमरीका की सैन्य शक्ति अब उस हद तक नहीं है कि वह दुनिया पर और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर राज कर सके। क्योंकि अर्थव्यवस्था भी अब बहुध्रुवीय हो गई है। अमरीका आज भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन आर्थिक महाशक्ति नहीं रह गया है।

इस बीच, दुनिया में एक नया क्रम तेज़ी से उभर रहा है, जो जल्द ही दूसरों की तुलना में अधिक प्रभाव डालेगा, वह है डिजिटल क्रम। यहां अतीत और वर्तमान के हर दूसरे भू-राजनीतिक क्रम के विपरीत, नियम स्थापित करने और शक्ति का प्रयोग करने वाले प्रमुख खिलाड़ी, सरकारें नहीं बल्कि टेक कंपनियां हैं।

टेक कंपनियां तय करती हैं कि क्या पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प बिना फ़िल्टर के और लाइव करोड़ों लोगों से बात कर सकते हैं। टेक कंपनियां हमारी पहचान भी परिभाषित करती हैं। हम आश्चर्य करते थे कि मानव व्यवहार, मुख्य रूप से प्रकृति या पालन-पोषण का परिणाम है। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। आज, इसमें प्रकृति, पालन-पोषण और एल्गोरिथम की भूमिका है। हम कैसे जीते हैं, हम किसमें विश्वास करते हैं, हम क्या चाहते हैं और इसे पाने के लिए हम क्या करने को तैयार हैं, इसमें डिजिटल ऑर्डर एक महत्वपूर्ण निर्धारक बनता जा रहा है।