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दुनिया भर के 500 प्रभावी मुस्लिम शख़्सियतों की एक लिस्ट जारी : पहले नंबर पर सऊदी किंग, दूसरे नंबर पर ईरान के सर्वोच्च नेता : रिपोर्ट

जॉर्डन के द रॉयल आल अल-बायत इंस्टिट्यूट फ़ोर इस्लामिक थॉट (RABIIT) यानी रैबिट ने साल 2023 के लिए दुनिया भर के 500 प्रभावी मुस्लिम शख़्सियतों की एक लिस्ट जारी की है.

द रॉयल आल अल-बायत इंस्टिट्यूट फ़ोर इस्लामिक थॉट इस्लामिक एनजीओ है और इसका मुख्यालय जॉर्डन की राजधानी अम्मान में है.

इस लिस्ट में पहले नंबर पर सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुल-अज़ीज़ अल-साऊद, दूसरे नंबर पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह अली ख़ामेनेई और तीसरे नंबर पर क़तर के शासक शेख़ तमीम बिन हमाद अल-थानी हैं. चौथे नंबर पर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन, आठवें नंबर पर यूएई के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद अल-नाह्यान और 10वें नंबर पर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हैं.

इस लिस्ट में 15वें नंबर पर दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो हैं. सबसे ख़ास बात है कि 15वें नंबर पर जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद मदनी हैं. मदनी भारत के हैं. मदनी को मैन ऑफ द इयर भी घोषित किया गया है.

रैबिट ने 2023 के लिए लिस्ट जारी करते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ”अभी दुनिया में 1.94 अरब मुसलमान हैं. यह तादाद दुनिया की कुल आबादी की एक तिहाई है. ये मुसलमान अपने-अपने देशों के नागरिक तो हैं ही लेकिन दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय से भी एक किस्म का रिश्ता है. इस लिस्ट में उन शख़्सियतों को शामिल किया गया है, जिनका कई ख़ास मामलों में दख़ल है. ख़ास करके वैसी हस्तियां जिनकी वजह से मुस्लिम वर्ल्ड और मुसलमान प्रभावित हुए हैं. ये हस्तियां इस्लामिक संस्कृति, विचारधारा, वित्त और राजनीति से जुड़ी हैं.”

रैबिट ने लिखा है, ”ये प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है और यह स्थिति पर निर्भर करता है. इस पब्लिकेशन में जिन लोगों को चुना गया है, इसका मतलब यह क़तई नहीं है कि हम उनके विचारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं. यह सीधा प्रभाव के आधार पर चुना गया है. यह प्रभाव इस्लामिक स्कॉलर के रूप में भी है, जो सीधा मुसलमानों को प्रभावित करता है. यह प्रभाव एक शासक के तौर पर भी है जो अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. यह प्रभाव एक कलाकार के तौर पर भी है, जो लोकप्रिय संस्कृति को नया आकार दे रहे हैं.”

रैबिट ने लिखा है, ”टॉप 50 में वैसे लोग हैं, जो या तो इस्लामिक उपदेशक हैं या फिर राष्ट्राध्यक्ष हैं. मुसलमानों के बीच इनके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है. रैबिट ने 13 कैटिगरी के लोगों को इस लिस्ट में शामिल किया है. ये कैटिगरी हैं-

• विद्वता

• राजनीतिक

• धार्मिक मामलों के प्रशासक

• धार्मिक उपदेशक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक

• परोपकार/चैरिटी और विकास

• सामाजिक मुद्दे

• कारोबार

• विज्ञान और तकनीक

• कला और संस्कृति

• क़ुरान के ज्ञाता

• मीडिया

• सिलेब्रिटीज और स्पोर्ट्स स्टार

• अतिवादी

रैबिट ने जिन देशों में सर्वे किया है, उन देशों के बारे में भी लिखा है. भारत की इस रिपोर्ट में जमकर आलोचना की गई है. रिपोर्ट में लिखा गया है कि भारत में इस्लामोफ़ोबिया को सरकार प्रोत्साहित कर रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि हिन्दूवादी नेता भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने में लगे हैं.

रैबिट की रिपोर्ट में कहा गया है, ”भारत के मुसलमान दक्षिणपंथी हिन्दुओं से नफ़रत लगातार झेल रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मोदी सरकार उन पत्रकारों को निशाना बना रही है, जो उसकी आलोचना करते हैं. दक्षिणपंथी हिन्दू मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए लव जिहाद जैसे नक़ली मुद्दे उठा रहे हैं. न केवल मुसलमान बल्कि बाक़ी के अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाया जा रहा है.”

”2021 में कर्नाटक ने धर्मांतरण विरोधी क़ानून पास किया था और इसके साथ ही भारत के कुल 10 राज्यों में यह क़ानून लागू हो चुका है. गुड़गांव में मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने से रोका गया. दिल्ली और त्रिपुरा में दंगे हुए और मुसलमानों को जमकर निशाना बनाया गया.”

इस रिपोर्ट में मुसलमानों को निशाना बनाने का आरोप बीजेपी नेता कपिल मिश्रा पर भी लगाया गया है.

कपिल मिश्रा से इस रिपोर्ट के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ”कुछ ख़ास मुस्लिम समूह भारत के मुसलमानों को लगातार डर के माहौल में रखना चाहते हैं. ये भारत में मुसलमानों को भड़काने के लिए हर तरह के बहानों का इस्तेमाल करते हैं. मुझे नहीं पता है कि मेरा नाम एक वैश्विक मुस्लिम केंद्रित रिपोर्ट में क्यों लिखा गया है. इस तरह के नैरेटिव से भारत में ग़रीब और पिछड़े मुसलमानों का ही नुक़सान होगा.”

कपिल मिश्रा से पूछा कि वह मौलाना महमूद मदनी को दुनिया के 15वें सबसे बड़े प्रभावी मुस्लिम शख़्सियत की लिस्ट में रखने को कैसे देखते हैं तो उन्होंने कहा, ”मुझे लिस्ट से कोई मतलब नहीं है, चाहे वह जितने नंबर पर रहें.”

इस लिस्ट में 15वें नंबर पर आने और पर्सन ऑफ द इयर घोषित होने के बाद मौलाना महमूद मदनी ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ”मैं ख़ुश हूँ. मुझे इससे और काम करने की प्रेरणा मिलेगी. हम जिस मिली-जुली सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करते हैं, उसे और आगे बढ़ाएंगे. मुझे तीन महीने पहले यूके से फ़ोन आया था कि मेरा नाम भी आ सकता है. मुझसे तस्वीरें मांगी गई थीं.”

मौलाना मदनी ने कहा, ”जहाँ तक इस रिपोर्ट में भारत की आलोचना की बात है तो मैंने उसे देखी नहीं है. देखने के बाद ही कुछ कहूंगा.”

मौलाना महमूद मदनी
रैबिट की रिपोर्ट में मौलाना महमूद मदनी के बारे में लिखा गया है कि उनका स्कूल ऑफ थॉट पारंपरिक सुन्नी है और जिस जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष हैं, उसके 1.2 करोड़ अनुयायी हैं.

मदनी 13 सालों तक इस इस संगठन के महासचिव रहे हैं. मदनी आतंकवाद की खुलकर निंदा करते रहे हैं और भारतीय मुसलमानों के समर्थन में हमेशा खड़े रहते हैं. मौलाना महमूद के दादा मौलाना सैयद हुसैन अहमद मदनी इस्लाम के जाने-माने विद्वान रहे हैं. वह जब तक ज़िंदा रहे तब तक जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष रहे थे. इसके बाद 1957 में महमूद मदनी के पिता असद मदनी जमीअत उलेमा-ए हिन्द के अध्यक्ष बने और 2006 में मृत्यु के बाद ख़ुद मौलाना महमूद मदनी के पास जमीअत की कमान आई थी.

जमीअत उलेमा-ए-हिन्द की स्थापना 1919 में हुई थी. इसे बनाने वाले देवबंद स्कॉलर के लोग थे. रैबिट के अनुसार, यह संगठन समावेशी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बाद करता है.

रैबिट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ”1992 में देवबंद से ग्रैजुएट होने के बाद मदनी जमीअत के साथ जुड़ गए थे. मदनी भारत में मुसलमानों के हक़ को लेकर बोलते रहते हैं और साथ ही आतंकवाद के लिए जिहाद टर्म के इस्तेमाल का भी विरोध करते हैं. मदनी इस्लामोफ़ोबिया के ख़िलाफ़ भी मुखर रहे हैं. भारत में धर्म के आधार पर मुसलमानों से भेदभाव का भी विरोध करते रहे हैं.”

लिस्ट में शामिल टॉप के चार प्रभावी मुस्लिम शख़्सियत
1) किंग सलमान बिन अब्दुल-अज़ीज़ अल-साऊद

रैबिट ने किंग सलमान को 2023 के लिए दुनिया के सबसे प्रभावी मुसलमानों की लिस्ट में पहले नंबर पर रखा है. किंग सलमान सऊदी अरब के सातवें किंग हैं. जनवरी 2015 में इन्हें सऊदी अरब का किंग घोषित किया गया था. रैबिट ने लिखा है कि अरब के देशों में किंग सलमान का प्रभाव सबसे ज़्यादा है. सऊदी अरब में दो पवित्र शहर मक्का और मदीना हैं, जहाँ हर साल लाखों मुसलमान जाते हैं.

तेल आपूर्ति के मामले में भी सऊदी अरब की दुनिया भर में केंद्रीय भूमिका है. इस्लामिक दुनिया में किंग सलमान का ख़ासा प्रभाव है. दुनिया भर के 1.9 अरब मुसलमानों के लिए मक्का पवित्र शहर है. हर साल क़रीब 40 लाख मुसलमान हज के लिए सऊदी अरब जाते हैं. इसके अलावा क़रीब एक करोड़ मुसलमान उमराह के प्रति वर्ष सऊदी अरब जाते हैं. किंग सलमान ने मक्का और मदीना की दोनों पवित्र मस्जिदों के विस्तार के लिए अरबों डॉलर खर्च किया है.

2) अयोतोल्लाह अली ख़ामेनेई

अयोतोल्लाह अली ख़ामेनेई को इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर रखा गया है. ख़ामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता हैं. इस पद के लिए 88 इस्लामिक जानकारों का एक समूह, एक नाम पर मुहर लगाता है. इस समूह को असेंबली ऑफ़ एक्स्पर्ट्स कहा जाता है. आयातुल्लाह ख़ामेनेई अब तक दूसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें इस पद के लिए चुना गया है. 83 साल के ख़ामेनेई को मध्य-पूर्व में एक शक्तिशाली नेता माना जाता है.

3) अमीर शेख़ तामिन बिन हमाद अल-थानी

शेख़ तामिन बिन हमाद अल-थानी 33 साल की उम्र में क़तर के अमीर बन गए थे. क़तर में प्रति व्यक्ति जीडीपी 63,505 डॉलर है और इस लिहाज से यह दुनिया का सबसे अमीर देश है. क़तर में रहने वाले चार लाख वहाँ के नागरिक हैं और 30 लाख प्रवासी कामगार हैं. क़तर शीर्ष का गैस निर्यातक देश है और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गैस रिज़र्व वाला देश है. थानी को 2003 में इन्हें क्राउन प्रिंस बनाया गया था. रैबिट ने लिखा है कि इनकी माँ शेइख़ा मोज़ा अब भी काफ़ी शक्तिशाली हैं और क़तर के शासन में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है. शेख़ तमिन ने यूके के प्राइवेट स्कूल से पढ़ाई की है. उन्होंने इंग्लैंड के सैंडहर्स्ट रॉयल मिलिटरी एकेडमी से ग्रैजुएशन किया था.


4) रेचेप तैय्यप अर्दोआन

रेचेप तैय्यप अर्दोआन 11 सालों तक तुर्की के राष्ट्रपति रहे. 2002, 2007 और 2011 के चुनावों में अर्दोआन बहुमत से जीते थे. 2014 में अर्दोआन राष्ट्रपति चुने गए. 2018 में उन्हें राष्ट्रपति का दूसरा कार्यकाल भी मिला. अर्दोआन के शासन में तुर्की कई तरह से बदला. अर्दोआन 1994 में इस्तांबुल के पहले इस्लामिक रूढ़िवादी मेयर बने थे. इसके बाद से रैलियों में अर्दोआन के भाषण की चर्चा अक़्सर होती थी. वो अपनी रैलियों में तुर्की के राष्ट्रवादी विचारक ज़िया गोकाई के इस उद्धरण को अक्सर दोहराते थे-‘मस्जिदें हमारी छावनी हैं, गुंबदें हमारी रक्षा कवच, मीनारें हमारी तलवार और इस्लाम के अनुयायी हमारे सैनिक हैं.’

2002 में पहली बार तुर्की के प्रधानमंत्री बनने के बाद अर्दोआन ने न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा था, ”मैं कुछ भी होने से पहले एक मुसलमान हूँ. एक मुसलमान के तौर पर मैं अपने मज़हब का पालन करता हूं. अल्लाह के प्रति मेरी ज़िम्मेदारी है. उसी के कारण मैं हूँ. मैं कोशिश करता हूँ कि उस ज़िम्मेदारी को पूरा कर सकूँ.”

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रजनीश कुमार
बीबीसी संवाददाता