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देवानंद की मथुरा व आगरा से जुड़ी उनकी कुछ यादें

देवानंद अपने साले के बुलावे पर मथुरा आए थे, अभिनेता की झलक पाने को मचल उठे थे हजारों युवा, महिला और बच्चे (जन्म शताब्दी पर विशेष)

‘गाइड’ व ‘हरे रामा- हरे कृष्ण’ जैसी अमर फिल्मों के अभिनेता देवानंद का जन्म 100 साल पहले 26 सितंबर 1923 को हुआ था। मथुरा व आगरा से जुड़ी उनकी कुछ यादें हैं।

वर्ष 1961 में उनके साले (पत्नी कल्पना कार्तिक के बड़े भाई) लेफ्टीनेंट कर्नल ए.के. सिंघा मथुरा में सेना में तैनात थे। वह समय ऐसा था, जब देवानंद की फिल्मों का जलवा हुआ करता था। उन्हें यहां आर्मी एरिया में बड़ा फुटबाल टूर्नामेंट था। उसके उद्घाटन के लिए वरिष्ठ सैन्य अफसरों ने अपने लेफ्टिनेंट कर्नल ए.के. सिंघा से कह कर देवानंद को मथुरा बुलवाया था। सायं के समय सैन्य एरिया में बड़ी पार्टी रखी गयी। देवानंद ने डॉयलाग सुनाकर सैन्य अफसर व उनके बीबी-बच्चों का खूब मनोरंजन किया था। उस पार्टी में शहर के कई बड़े लोग भी बुलाए गये थे।


फुटबाल मैच सुबह था। देवानंद के मथुरा आने की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गयी थी। हजारों प्रसंशक युवा और महिला, वृद्ध देवानंद की एक झलक पाने को मचल उठे थे। इसके लिए उन्हे बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी। मथुरा में वह जिस गाड़ी से निकले, उसके पीछे भीड़ भागी थी।

काले कपड़ों में वह महिलाओं को इतने सुंदर लगते थे कि उस समय मुम्बई हाईकोर्ट ने उनके काली शर्ट पहनने पर रोक लगा दी थी। उनके नेहरू जी और बाद में अटल जी से बहुत मधुर संबंध थे।


मथुरा के अलावा आगरा में तो देवानंद कई बार आए थे। वहां फिल्मों की शूटिंग की। उन्होंने चुपचाप हीरोइन सुरैया से शादी तय कर ली। उसे लेकर अंगूठी पहनाने मुंबई से ताजमहल आए थे। हालांकि मुस्लिम हीरोइन सुरैया की मां व दादी ने उनकी यह शादी नहीं होने दी थी।

वर्ष 1957 क फिल्म “नौ दो ग्यारह” के प्रसिद्ध गीत “हम हैं राही प्यार के… की शूटिंग देवानंद ने जीप में सवार होकर यमुना किनारे आगरा में की थी। फिल्म में सीन था कि- देवानंद दिल्ली से फतेहपुर सीकरी होते हुए आगरा आते हैं। आगरा किला के समीप यमुना किनारे वाली रोड होते हुए वह ताज महल में प्रवेश करते हैं। उस समय गीत- हम हैं राही प्यार के..फिल्माया था। आज भी सिने प्रेमी इस गीत को गुनगुनाते हैं। इस फिल्म के डायरेक्‍टर उनके ही भाई विजय आनंद थे। उस फिल्म में अभिनेत्री कल्‍पना कार्तिक थीं।

देवानंद की कुछ फिल्में फ्लाप भी हुईं थीं, तब उन्होंने कहा था- “फिल्म बनाने के बाद मैं कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता। फिक्र को धुएं में उड़ाते हुए आगे बढ़ता जाता हूं”।

03 दिसम्बर 2011 को उनका निधन इगंलैड में इलाज कराने के दौरान हुआ था। मृत्यु का उन्हे पहले ही आभास हो गया था। उन्होंने परिवार के लोगों से कह दिया था कि ‘मृत्यु के बाद मेरी डैड वॉडी मुम्बई मत ले जाना। यहीं इग्लैंड में अंतिम संस्कार कर देना।


इसके पीछे एक वजह थी। वह मानते थे कि- मैं जवानी के दिनों में अपनी अदाओं से, सुंदरता से फिल्मों का हीरो बना। लोगों के मन मस्तिष्क में मेरी वही फिल्मों के हीरो वाली सुंदर सूरत बसी रहनी चाहिए। मृत्यु के बाद मेरे मृत शरीर को प्रशंसक व अन्य लोग जब देखेंगे तो उन्हे कष्ट होगा। इसीलिए मेरा अंतिम संस्कार यहीं इग्लैंड में कर देना।

बहुत कुछ ऐसा ही मशहूर अभिनेता राजेन्द्र कुमार की मृत्यु के बाद उनके परिजनों ने किया था। प्रशंसकों व फिल्म जगत के लोगों को बगैर बताये ही परिजनों ने चुपचाप अभिनेता का अंतिम संस्कार कर दिया था। इति..

साभार : Chandra Pratap Singh Sikarwar ji🌹🙏🏻