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धर्म का धंधा और बेचारे पहाड़…और…..नौ नगद या तेरह उधार….By-Tajinder Singh

Tajinder Singh

· Lives in Jamshedpur
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धर्म का धंधा और बेचारे पहाड़…

समाचार – उत्तरांचल और हिमाचल में बारिश का कहर जारी। इतने लोगों की मृत्यु, इतने घर नष्ट वगैरह वगैरह।

पहाड़ो पर बारिश के महीनों में केदारनाथ आपदा जैसे समाचार आम हैं। लेकिन इन पहाड़ों के जो असल समाचार है उसकी कभी आपको खबर नही लगने दी जाती।

पहाड़ों के बारे में असल खबर कुछ ऐसी है….पहाड़ों पर इंसान का कहर जारी। पहाड़ इंसानी विकास तले कराह रहे हैं।

क्या ये खबर आपने कहीं सुनी। दरअसल इस बात को खबर बनने ही नही दिया जाता। पहाड़ों पर कुदरत के कहर के समय मनुष्य त्राहिमाम करता है। अपने ईश्वर को याद करता है। लेकिन ये किसी ईश्वर का कहर नही ये प्रकृति का बदला जो मनुष्य की अपनी करनी का फल है।

1900 में भारत की आबादी 23 करोड़ थी। उस वक्त आवागमन के साधन इतने सुगम भी नही थे। तीर्थ यात्रा मतलब जान हथेली पर लेकर निकलना। लोग बाग परिवार सगे सम्बन्धियों से मिलकर लम्बी तीर्थ यात्रा पर निकलते थे। वैसे ये लक्जरी भी बहुत कम लोगों को हासिल थी। आम लोग तो कमाने खाने में ही जीवन खर्च कर डालते थे।

इसलिए पहाड़ों पर कोई अतिरिक्त बोझ नही था। आज 145 करोड़ की आबादी, आवागमन के सुगम साधन और सम्पन्नता ने तीर्थ यात्रा को मौज मस्ती में बदल दिया है। आज अगर आपके पास पैसा है तो आप सीधे ऊपर वाले की गोद में उतर सकते हैं।

पहाड़ों पर स्थित धर्म स्थल के बाशिंदों ने भी इसे आमदनी का आसान जरिया समझ लिया और सरकारी नीतियों ने भी इसे प्रश्रय दिया। एक पूरा तन्त्र खड़ा हो गया ऊपरवाले के नाम पर कमाने खाने वालों का। उत्तरांचल में आल वेदर रोड इसी तन्त्र की देन है। वैज्ञानिकों द्वारा चेतावनी देने के बावजूद सरकार इस परियोजना को आगे बढ़ा रही है। पहाड़ी नदियों पर बांध बना कर हमने पहले ही उसके पारिस्थिकी तन्त्र को नुकसान पहुंचाया है। उस पर पैसे के लालच में हुए बेतरतीब विकास ने इन कच्चे पहाड़ों पर बोझ बढ़ा दिया। आज हालत ये है कि गर्मियों में पहाड़ी क्षेत्रों में हाउस फुल का बोर्ड लग जाता है। जोशीमठ के घरों में पड़ती दरारें इसी अंधाधुंध विकास की परिणीति है। शिमला कुल्लू मनाली में बाढ़ से हुई तबाही कुदरत का कहर नही बदला है।

तीर्थ यात्रा और पर्यटन मिल कर पहाड़ों को खा जाएंगे। बाहरी लोगों के लिए तो पहाड़ दो पल की मौज मस्ती की जगह है। पहाड़ों और पहाड़ी लोगों की दुर्गति से उन्हें क्या मतलब। ये तो वहां के रहने वाले बाशिंदों को समझना होगा कि किस सीमा तक पहाड़ों का दोहन किया जाए। ताकि प्रकृति भी नाराज न हो।

लेकिन धर्म को धंधा बनाने वालों से मुझे कोई उम्मीद नही कि वो इन पहाड़ों की कोई सुध लेंगे। उन्हें तो मतलब अपने धंधे से है।

Tajinder Singh
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नौ नगद या तेरह उधार….
एक कैदी को जेलर रोज दो जूते मारता था। बहुत दिनों तक रोज दो जूते खाते खाते कैदी दुखी हो गया। अगले दिन जब जेलर जूते मारने लगा तो कैदी बोला “सर आप दो की जगह तीन जूते मार लीजिए। लेकिन प्लीज दो जूते मत मारिये। रोज दो जूते खाते खाते मैं बोर हो गया हूँ।”

ये जो एकरूपता है, इससे आदमी बहुत जल्दी ऊब जाता है। इंसान को हमेशा कुछ नया चाहिए। भले वो दो की जगह तीन जूते ही हों। एक घर, एक जगह, एक कपड़ा, एक खाना, एक गाड़ी, एक मोबाइल और कहा जाए तो एक पत्नी भी…इंसान की बोरियत की वजह है। स्वभाव से इंसान को विविधता पसंद है। और इसी विविधता के कारण लंबे जीवन के प्रति उसका उत्साह भी बना रहता है।

दुख की अधिकता से इंसान का दुखी होना स्वभाविक है। लेकिन सुख की अधिकता भी इंसान को दुखी कर देती है। एक सरल रेखा के समान जीवन मे कोई रस ही नही। रस तो तब है जब थोड़े उतार चढ़ाव आएं।

अब ऐसे में ये कौन लोग है जो कहते हैं कि जन्नत में 72 हूरें होंगी, शराब की नदियां बहती होंगी। सब तरफ बस मौज ही मौज होगी। ये जिंदगी तो बस एक इम्तिहान है। पास करने वाले को आख़िरात में 72 हूरों का गिफ्ट हैम्पर मिलेगा।

भाई अपनी बात कहूँ तो ऐसी बढ़िया गिफ्ट और इतनी मौज मस्ती के आफर के बावजूद मैं तो ये इम्तिहान ही न दूं। क्या करना इम्तिहान पास कर के जब जन्नत में मौज करते करते बोर ही होना है। आखिर कोई कितनी दारू पियेगा और कितनी मौज मस्ती करेगा। अंततः इन सबसे भी ऊब हो ही जानी है। मैं अगर कभी ऐसी जन्नत में गया भी तो हो सकता है 72 हूरों को कम करवा कर दो चार राक्षसियों की डिमांड करने लगूँ।

खैर….ऐसे आख़िरात के लालच मे भाई मैं तो नही आने का। मुझे तो जो करना है इसी जीवन मे करना है। मुझे तो ऐसी जन्नत चाहिए जहां दिन भी हो और रात भी। जहां बोरियत भी हो और मस्ती भी। जहां सुख भी हो और दुख भी। जहां प्यार भी हो और नफरत भी। यही विविधता ही इस धरती की जन्नत की USP है।

और सबसे बड़ी बात नौ नगद या तेरह उधार में….. मुझे तो भाई नौ नगद ही चाहिए। 13 उधार के चक्कर मे मैं तो नही आने का….और आप भी मत आइयेगा।