साहित्य

”नए आये साहब” ने जैसे ही दफ़्तर में प्रवेश किया वो वहाँ के हालात देखकर आग बबूला हो गये

चित्र गुप्त
==============
नए आये साहब
************
नए आये साहब ने जैसे ही दफ़्तर में प्रवेश किया वो वहाँ के हालात देखकर आग बबूला हो गये। साहब का आग बबूला होना ही उनके बड़े पद का परिचायक होता है। पहले तो सब कर्मचारियों ने यही सोचा था लेकिन थोड़ी देर बाद ही उनको अपनी गलती का एहसास हो गया कि उन्होंने ग़लत सोचा था। साहब ने आते ही पाँच से सात मिनट में दस से बारह बार ये बता दिया था कि वो अलग टाइप के आदमी हैं।

अलग टाइप के आदमी वाली बात पर सब कर्मचारियों ने उन्हें गौर से देखा। उनका मुँह आँख नाक कान आदि सब अपनी अपनी जगह पर ही थे। हाथों और पैरों की स्थिति भी आम इंसानों जैसी ही थी। एक खोजी कर्मचारी ने उनके वाशरूम में चोरी से कैमरा लगा कर इस बात की भी तस्दीक की कि उनके आउट गोइंग वाले पुर्जे भी अपनी मानवीय स्थिति में ही थे। सब जांच पड़ताल कर लेने के बाद एक पुराना कर्मचारी इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि साहब का बाकी सब तो अपनी जगह में ही है बस दिमाग ही ऐसा है जो उनकी खोपड़ी में न होकर घुटनों में फिट हो गया है इस तरह से वो अलग टाइप के आदमी हैं।

साहब लोग जब तक अपने कर्मचारियों पर बिन बात ही गुस्सा नहीं दिखाते तब तक उन्हें साहब होने की फीलिंग नहीं आती। वो राम सिंह की गलती के लिए श्याम सिंह को भी धमका सकते हैं और अगर श्याम सिंह प्रोमोशन जोन में हुआ तो वह सहर्ष उस गलती को भी अपनी ही गलती मान भी लेता है जो उसने कभी किया ही नही होता है। लेकिन साहब ने कहा है तो जरूर उसी की गलती होगी ये बात उसे राम सिंह (जिसने गलती की है) के समझाने के बाद उसे समझ आती है।

वो दफ़्तर में परिवर्तन चाहते थे इसलिए सबसे पहले उन्होंने अपनी कुर्सी बदली। फिर मेज, मेजपोस, पेन, पेन स्टैंड, साइड टेबल, कॉल बेल आदि। इतना परिवर्तन हो चुकने के बाद वो दफ्तर की दीवालों के रंग-रोगन फिर उसपर टंगी तश्वीरों की स्थिति को बदलवाने में लगे… कुछ फूलों के गमलों को भी इधर से उधर किया गया। कुछ रजिस्टरों को बदली किया गया फिर कुछ पंजिकाओं के कवर बदली हुए। स्टाम्प के डिब्बे और स्टाम्प पैड भी उनके आने के कुछ रोज बाद ही बदली हो गया।

इतना सब हो चुकने के बाद उनका ध्यान अन्य कर्मचारियों के काउंटर पर गया। यहाँ पर उन्होंने सबसे पहले तो अपने दफ्तर से आउट किये पुराने सामानों का समायोजन करवाया फिर वास्तुदोष निवारण के लिए उनकी स्थिति में भी थोड़ा-थोड़ा परिवर्तन करने में लग गये।

कुछ रोज बड़े बाबू दाहिने कोने में बैठे फिर बाएं कोने में फिर बीच में और फिर दाहिने कोने में। यही हाल छोटे बाबू, मोटे बाबू, खोटे बाबू आदि का भी हुआ।
नए आये साहब को कुछ रोज चौबीसों घंटे इस तरह के भाव आते रहे कि उनसे पहले वाले साहब ने अपने टाइम में कुछ नहीं किया था और इन कर्मचारियों ने भी काम के नाम पर सिर्फ मौज मस्ती ही की है। इसलिए उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि और कुछ हो या न हो लेकिन कर्मचारियों के नाक में दम बराबर बना रहना चाहिए।

इतने परिवर्तन कर लेने के बाद अब साहब का ध्यान पत्राचार पर गया। वो तमाम चिट्ठियों को निकलवाकर उसमें कई जगह कॉमा और फुलस्टाप में अदला-बदली करवाते हैं। कहीं-कहीं पेपर साइज फॉन्ट साइज और टाइप ऑफ फॉन्ट में भी तब्दीली होती है। लंच टाइम स्नैक्स टाइम आदि में भी फटाफट परिवर्तन का आदेश जारी कर दिया जाता है।

अकड़कर चलने की कोशिश में वो पहले थोड़ा सा दाहिनी ओर को टेढ़े होते हैं फिर दिन गुजरने के साथ वो और टेढ़ा होते हुए पूरा धनुष बन जाते हैं। उनके तरकस से बाण और तेजी से निकलने लगते हैं। जिसे नित्य प्रति उनके अधीनस्थों को झेलना पड़ता है।

अपने पूर्ववर्ती अन्य साहबों की तरह इन्हें भी इस बात का बराबर एहसास बना रहता है कि इनके कर्मचारी निकम्मे हैं और इनके कर्मचारी इनके पीठ पीछे इनकी बेवकूफियों के चर्चे किया करते हैं। साहब सब कर्मचारियों को बेवकूफ समझते हैं और सारे कर्मचारी साहब को एकदम उल्लू… इसी बेहतरीन जाना-समझी में कार्यालय फलता फूलता रहता है।

परिवर्तन करते-करते साहब के जाने का समय आ जाता है। विदाई समारोह में भाषण देते समय उन्हें विभागीय कमजोरियों पर दुःख होता है। कर्मचारियों की उत्पादकता पर भी वे आँसू बहाते हैं फिर माला पहनकर चले जाते हैं।
#चित्रगुप्त