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नए संसद भवन में लगे नक़्शे में नेपाल और पाकिस्तान के क्षेत्र को अखंड भारत का हिस्सा दिखाने पर नेपाल और पाकिस्तान ने जतायी आपत्ति!

भारत में नए संसद भवन की इमारत का विवादों से पीछा नहीं छूट रहा है। अब इसमें लगी एक ग्रैफ़िटी या भित्ति चित्र पर न सिर्फ़ भारत में बल्कि पड़ोसी देशों में भी विरोध हो रहा है।

कथित अखंड भारत के भौगोलिक मानचित्र में वर्तमान पाकिस्तान के तक्षशिला और मानसेहरा, और नेपाल के लुंबिनी और कपिलवस्तु को भी दिखाया गया है।

इस मानचित्र की आलोचना करते हुए नेपाल के एक इतिहासकार का कहना है कि अखंड भारत का कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक आधार नहीं है।

भित्ति चित्र का उद्घाटन भारतीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को नए संसद भवन में किया था।

इसमें भारत के राष्ट्रीय प्रतीक, कुछ क्षेत्रों की सीमाएं और मूर्ति जैसी आकृतियां भी शामिल हैं। इसके अलावा पाकिस्तान और नेपाल के कुछ ऐतिहासिक स्थानों के नाम भी इसमें शामिल हैं।

पाकिस्तान की ओर से इस बारे में अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन नेपाल में विपक्षी दल के युवा संगठन ने कहा है कि वह काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे।

नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में क़रीब 40 साल तक इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर त्रिरत्न मानंधर का कहना है कि यह कदम ग़लत है और इससे नेपाल और भारत के रिश्तों के बीच संदेह पैदा होगा।

उन्होंने कहा कि अगर भारत ख़ुद को अखंड कहता है तो हम भी अखंड नेपाल का दावा कर सकते हैं। अगर हम प्राचीन काल की बात भी करें तो समुद्रगुप्त के धर्मशास्त्र के एक अभिलेख में कहा गया है कि नेपाल नामक देश कामरूप और कार्तिपुर के बीच स्थित है। कामरूप असम बन गया और कार्तिपुर कुमाऊं गढ़वाल बन गया। इसका मतलब यह है कि आज नेपाल जितना बड़ा है, वास्तव में वह उससे कहीं ज़्यादा बड़ा था।

नेपाल की संसद में नेता प्रतिपक्ष केपी शर्मा ओली का कहना है कि नेपाली ज़मीन को अपने नक्शे में लगाना और संसद भवन में तस्वीरें टांगना उचित नहीं है।

भारत के संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट कियाः संकल्प स्पष्ट है, अखंड भारत।

वहीं, द हिंदू अख़बार ने नए संसद भवन में कला सामग्री के चयन में शामिल अद्वैत गडनायक के हवाले से लिखा हैः प्राचीन काल में भारत के सांस्कृतिक प्रभाव को दिखाने के लिए कला सामग्री का चयन किया गया है।

यानी उनका कहना है कि इस मानचित्र को सांस्कृतिक रूप से देखा जाना चाहिए न कि इसे राजनीतिक रंग दिया जाना चाहिए।

हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दावा है कि अखंड भारत, विभाजन से पहले के प्राचीन काल के भारत के भूगोल को कवर करता है और यह आज के अफ़ग़ानिस्तान से थाईलैंड तक फैला हुआ था।