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नमक़ की क़ीमत….By _ सरदार तेजेन्द्र सिंह

Tajinder Singh
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नमक की कीमत….संडे स्पेशल
नमक बड़ी साधारण और सस्ती सी चीज है लेकिन जीवन के लिए उतनी ही जरूरी भी। इतनी जरूरी की एक बार इसकी कमी की अफवाह ने इसे इतना बिकवाया की ये बाज़ार से गायब ही हो गया।

इस साधारण सी चीज को बनाने का अधिकार भी जब अंग्रेजों ने हम से छीन लिया तो गांधी जी को इसके लिए नमक सत्याग्रह करना पड़ा और खुले आम नमक बना कर अंग्रेंजों के कानून को धत्ता बताना पड़ा।

मुझे याद है बचपन मे जब भी नमक लेने दुकान जाता था तो दुकानदार एक ठोंगा (लिफाफा) देकर दुकान से बाहर रखे बोरे से खुद ही नमक भरने के लिए कहता था और फिर ठोंगे को अंदाज से ही देखकर वो तीन से पांच पैसे तक कीमत ले लिया करता था। उस वक्त नमक थोड़ा मोटा होता था। कभी कभी तो ढेले की शक्ल में भी। इस साधारण से नमक को कोई भी दुकानदार दुकान के भीतर नही रखता था। रात को भी ये बाहर खुले में ही पड़ा रहता था। मगर मजाल है कि कोई इसे चोरी कर ले


इतने सस्ते और साधारण से नमक की एक बात बहुत असाधारण है। वो आपको फ़िल्म शोले का डॉयलाग तो याद होगा?

“सरदार मैंने आपका नमक खाया है….”
नमक की यही सबसे बड़ी खासियत है कि एक बार चटा देने के बाद आप उम्मीद करते हैं कि दूसरा इसका हक जरूर अदा करेगा। मेरे एक सहयोगी विकास अधिकारी थे। उनका उसूल यही था कि वो आफिस के कर्मचारियों को अक्सर नमक (चाय पानी) चटाते रहते है। उसका फायदा उन्हें ये मिलता था कि आफिस में उनका काम कभी रुकता नही था। वो गर्व से कहते भी थे कि ये हमारे भारतीय संस्कार हैं। हम नमक का हक जरूर अदा करते हैं। जैसे राजपूतों ने मुगलों का नमक खाया। राजा महाराजाओं ने अंग्रेजो का नमक खाया।
मुझे पता नही भारतीय संस्कार क्या हैं। मुझे ये भी नही पता कि मेरे सहयोगी सही हैं या गलत। लेकिन नमक चाटना और फिर उसका हक अदा करना यहां बड़ी सामान्य सी बात है। यहां इसे बुरा नही कहा जाता बल्कि इसकी उम्मीद की जाती है। अधिकतर सरकारी दफ्तरों में नमक चटा कर ही काम होता है। वैसे मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नमक का दरोगा” में तो दरोगा साहब ने नमक चाटने से इनकार कर दिया था।

खैर…इस साधारण से नमक की यही असाधारण बात मुझे चुभती रहती है। भाई क्यों हर कोई नमक का हक अदा करने की उम्मीद करता है। माता पिता, भाई बन्धु, समाज, संस्थान, देश सभी नमक के हक की बात करते हैं।

नमक खाया है तो हक जरूर अदा करना चाहिए। लेकिन कई बार नमक का हक आपके सिद्धांतों के आड़े आ जाता है। आपसे गलत का पक्ष लेने की उम्मीद करने लगता है।
अब यहां सवाल उठता है कि क्या नमक की कीमत आपके सिद्धांतो की कीमत से ज्यादा है?

मेरे ख्याल में बिल्कुल नही…….
नमक तो विभीषण ने भी खाया था लेकिन उसने राम जी का साथ देना पसंद किया?

अमरीकी नमक तो विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन पॉल असांजे ने भी खाया था। लेकिन उसने सारी दुनिया के प्रति अपनी जिम्मेवारी समझी?
नमक तो मोहम्मद अली ने भी खाया था। लेकिन उसने अमेरिका द्वारा वियतनाम के विरुद्ध युद्ध मे भाग लेने से मना कर दिया था।

इस कड़ी में आप गुजरात कैडर के अधिकारी संजीव भट्ट का नाम भी ले सकते हैं। जिन्हें अपने सिद्धांत और सत्य बोलने के कीमत चुकानी पड़ रही है।

बहरहाल इतना कहूंगा कि नमक जीवन के लिए जरूरी है, बहुत कीमती है।

लेकिन आपके सिद्धांतो से ज्यादा कीमती नही। सत्य के साथ खड़े होने से ज्यादा कीमती नही।