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नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है गंगा स्नान के बराबर पुण्य, इसलिए कुंवारी रहीं नर्मदा!

मध्यप्रदेश को सुफलाम और गुजरात को सुजलाम बनाने वाली नर्मदा नदी की जयंती आज नर्मदा के सभी घाटों पर धूमधाम से मनाई जा रही है। कहते हैं कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा का धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए इस दिन को नर्मदा जयंती या नर्मदा प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।

नर्मदा के धरती पर आगमन को लेकर कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार नर्मदा शिव की पुत्री हैं, जिन्हें अविनाशी होने के वरदान के साथ स्वयं भगवान शिव ने धरती पर भेजा था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार अमरकंटक की पहाड़ी पर ध्यान में लीन भगवान शंकर के पसीने की बूंदों से नर्मदा नदी का जन्म हुआ। एक तीसरी कहानी है, जिसके अनुसार राजा पुरूरव ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए भगवान शंकर की तपस्या की। पुरूरव की तपस्या के प्रसन्न होकर जब भगवान ने वरदान मांगने के लिए कहा तो राजा ने नर्मदा को धरती पर भेजने का वरदान मांग लिया। भगवान शंकर के निर्देश पर नर्मदा स्वर्ग से धरती पर उतर गईं। यही कारण है कि नर्मदा को शंकरी नदी भी कहा जाता है।

मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमा पर बसे आदिवासी अंचलों में नर्मदा को मोठी माई यानी बड़ी मां के नाम से पुकारा जाता है। मध्यप्रदेश के लोकजीवन में नर्मदा पर रचे गए अनेक लोकगीत प्रचलित हैं। नर्मदा के उद्गम से लेकर सागर के संगम तक के सफर को जानने के बाद मेरा मन नर्मदा के लिए एक अलग ही कहानी बुनता है।

मुझे नर्मदा एक मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की की तरह दिखाई देती है, जिसके पास ग्लेशियर की पैतृक संपत्ति नहीं है। फिर भी वो जिंदगी की राह पर आगे बढ़ती है, जो पत्थर, पहाड़ उसे रोकते हैं, उन्हें तोड़कर अपना रास्ता बना लेती है। वहीं जो धाराएं, झरने, वन, वृक्ष उसका साथ देते हैं, उनसे दोस्ती निभाते हुए बढ़ती चली जाती है।

भारत की ज्यादातर विशाल नदियों से नर्मदा की यात्रा एकदम अलग है। हिमालय और उसकी तराई से निकलने वाली नदियों को सालभर बर्फ से पानी के रूप में पॉकेटमनी मिल जाती है, नर्मदा जैसी नदियों के पास यह पॉकेटमनी नहीं है।

मध्यप्रदेश के अमरकंटक से निकलकर गुजरात में खंभात की खाड़ी तक पहुंचने में यह नदी 1312 किलोमीटर का रास्ता पार करती है। इस पूरे रास्ते में कई पर्यटन स्थल और तीर्थस्थल बसे हुए हैं।

God Shiva Temple on the bank of Narmada river Maheshwar, MP

इसलिए कुंवारी रहीं नर्मदा
एक कथा के मुताबिक नर्मदा और सोन का उद्गम ब्रह्माजी की अश्रु बूंदों से हुआ है। एक अन्य कथा के मुताबिक नर्मदा का विवाह सोनभद्र (सोन नदी ) से होने वाला था, लेकिन सोनभद्र नर्मदा की दासी जुहिला (जुहिला नदी) पर रीझ गए, जब नर्मदा को इस बात का भान हुआ तो उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया और उल्टी दिशा में चल निकली इसलिए देश की अन्य नदियों की तरह बंगाल की खाड़ी में ना मिलते हुए नर्मदा अरब सागर में जाकर मिलती हैं।

नर्मदा के संबंध में मध्यप्रदेश के अंचलों में कई किस्से कहानियां हैं, एक कहानी के मुताबिक महेश्वर के नजदीक सहस्त्रभुज नामक राक्षस ने नर्मदा को पकड़कर उसका रास्ता रोकने की कोशिश की, तब नर्मदा उसके हजारों हाथों से सहस्त्रधारा बनकर छलांग मार कर आगे बढ़ गई। महेश्वर के नजदीक ही सहस्त्रधारा नामक स्थल को लेकर यह कथा सुनाई जाती है।

Maheshwar located at the bank of Narmada River.

बहरहाल कहानी से हकीकत की दुनिया में लौटें तो चिरकुंवारी नर्मदा रोज पाईपलाईन में समाकर मध्यप्रदेश के लाखों घरों में पहुंचती है और जीवनदायिनी मां बन जाती है। हमारी तेज दौड़ती जिंदगी में बिजली की कमी ना हो इसलिए यह क्रोधित नवयुवती बांधों में बंध गई और उसका उफनता वेग शांत प्रवाह में तब्दील हो गया।

हमें इतना कुछ देने वाली नर्मदा के सामने आज कई चुनौतियां हैं, सहायक नदियां सूख रही हैं, जंगल खत्म हो रहे हैं और नर्मदा से लेना और लेते ही चले जाना हमारी प्रवृत्ति बन गया है। वैसे तो कई दिनों से नर्मदा का सामीप्य नहीं मिला है, लेकिन खबरों की मानें तो अमरकंटक से खंभात तक नर्मदा के सामने चुनौतियां ही बढ़ रही हैं।

आमतौर पर हम रोशनी से जगमग घाटों को नदी की भलाई का पैमाना मान लेते हैं, यदि नदी के भीतर समस्याएं है तो बाहर की जगमगाहट वैसी ही है, जैसे किसी बीमार व्यक्ति को महंगे वस्त्र पहनाकर मान लेना कि सब कुछ सही है। उम्मीद है कि आने वाले वक्त में सबकुछ ठीक होगा और चिरकुंवारी नर्मदा कभी वृद्धावस्था या रूग्णावस्था में नहीं जाएगी।

नर्मदा की इतनी विशेषताएं हैं कि एक पोस्ट में सबकुछ लिख पाना संभव नहीं हैं पर ये भारत की एकमात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। पुराणों के अनुसार गंगा में स्नान से जो पुण्य मिलता है, वह नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है। आपको एक बात और बता देते हैं कि नर्मदा बेसिन में बसे जंगल, वर्तमान में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में ही रूडयार्ड किपलिंग को जंगल बुक लिखने की प्रेरणा मिली थी और अंग्रेजी साहित्य को एक कालजयी रचना मिल गई, इसी पर आधारित किरदार मोगली आज भी बच्चों और बड़ों के बीच लोकप्रिय है।

– नुपुर दीक्षित दुबे

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए तीसरी जंग हिंदी उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें teesrijungnews@gmail.com पर भेज सकते हैं।