विशेष

नाश होने से पहले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहले नम्रता होती है

सुलैमान के नीतिवचनों से बुद्धि
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नीतिवचन 18:12
नाश होने से पहले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहले नम्रता होती है।
विनाश या महिमा एक चुनाव है। घमण्ड विनाश की निश्चयता होती है, और नम्रता महिमा लाती है। यह अहंकार और दंभ के नकारात्मक पहलुओं के बारे में मानवीय चिंतन नहीं है। यह परमेश्वर और मनुष्य के सामने स्वयं को नम्र न करने के कुछ परिणामों का प्रेरित ज्ञान है।
इस नीतिवचन में प्रस्तुत नियम गुरुत्वाकर्षण से अधिक निश्चित है। यदि आप स्वयं को बड़ा समझते हैं, तो आप नीचे जा रहे हैं (नीतिवचन 16:18)। यदि तुम स्वयं को छोटा समझते हो, तो तुम ऊंचे उठाए जाओगे (नीतिवचन 15:33)। केवल एक ही हस्ती है जिसे स्वयं को ऊंचा उठाने का अधिकार है, और वह हस्ती आप नहीं हैं, इसलिए स्वयं को दीन बनाएं ।
आपको क्या लगता है कि आप कितने मज़बूत हैं? परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है, जिसका अर्थ है यदि आप अहंकारी हैं तो वह आपके विरुद्ध लड़ता है। क्या आप उसे हराकर सफल हो सकते हैं? आप एक मूर्ख हैं। बाइबल में पढ़ो कि परमेश्वर ने फिरौन, सन्हेरीब और नबुकदनेस्सर के साथ क्या किया।
परमेश्वर कितना सामर्थ्यशाली है? वह दीन लोगों की मदद करता है, जिसका अर्थ है कि वह आपके लिए उन चीजों के विरुद्ध लड़ता है जो आपको पीछे रोके रहती हैं। परमेश्वर से कहें कि आप इसे स्वयं नहीं कर सकते या आप नहीं जानते कि क्या करना है; वह आपके लिए वो कर देगा। यहोशापात की महान विजय के बारे में बाइबल में पढें (2 इतिहास 20:12)!
इस दोहरी व्यवस्था की गारंटी देने के लिए तीन ताकतें काम करती हैं। पहली, परमेश्वर की ईर्ष्या और न्याय की अलौकिक ताकत। प्रभु यहोवा किसी भी मनुष्य को यह अनुमति नहीं देगा कि वह अपने आप को बहुत बड़ा समझे। वह घमंड से नफरत करता है (नीतिवचन 6:16-17)। और वह विशेष रूप से पापी मनुष्य के घमंड से घृणा करता है। वह अलौकिक रूप से एक अभिमानी व्यक्ति को नीचे लाएगा, या एक नम्र व्यक्ति को ऊपर उठाएगा।
फिरौन ने कहा,”यहोवा कौन है कि मैं उसका वचन मानकर इज़राइलियों को जाने दूँ? मैं यहोवा को नहीं जानता, और न मैं इज़राइलियों को जाने दूंगा” (निर्गमन 5:2)। निश्चित रूप से, ये उसके प्रसिद्ध अंतिम वचन थे, क्योंकि परमेश्वर ने उसके राष्ट्र, संपत्ति, पहिलौठे, रथ, और फिर उसे ही नष्ट कर दिया! परमेश्वर ने उस मनुष्य पर प्रबल रूप से अपनी संप्रभु इच्छा उस पर लाद दी और उसे विनाश की ओर ले आया।
लेकिन एक अन्य राजा पर विचार करें। सुलैमान ने कहा, “और अब, हे मेरे परमेश्वर यहोवा तू ने अपने दास को मेरे पिता दाऊद के स्थान पर राजा किया है, परंतु मैं छोटा लड़का सा हूं जो भीतर या बाहर आना-जाना नहीं जानता” (1 राजाओ 3:7)। यह है बड़ी नम्रता, क्योंकि इस युवा राजा ने अपनी अज्ञानता को स्वतंत्र रूप से स्वीकार किया। इस विनम्र प्रार्थना के परिणामस्वरूप परमेश्वर ने उसे बुद्धि, धन, शांति और लंबी आयु दी!
दूसरी, मनुष्य के न्याय की मानवीय ताकत। यहां तक कि सामान्य पुरुष भी एक अभिमानी, अहंकारी या घमंडी पुरुष को पसंद नहीं करते हैं। वे उससे बचने, उसे अस्वीकार करने या उसे नीचे गिराने के लिए जो कुछ भी हो सके वह करते हैं, और करेंगे। वे उसके आडंबरपूर्ण और ऊँची नाकवाले व्यवहार और अहंकारी भावना से नाराज़ रहते हैं। लेकिन वे अक्सर एक ऐसे व्यक्ति को बढ़ावा देने और पुरस्कृत करने में काफी खुश होते हैं जो विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता है कि वह कुछ भी नहीं है‌।
यहां तक की राजा लोग भी ऐसे लोगों से मित्रता करेंगे जिनके मनोहर वचन शुद्ध हृदय से निकलते हैं (नीतिवचन 22:11)। अनुग्रह-सहित बोलना असंभव होता है, यदि तुम्हारे हृदय या दिमाग में अहंकारी श्रेष्ठता का कोई भी विचार हो तो। दाऊद ऐसा ही एक व्यक्ति था, और राजा शाऊल, राजकुमार योनातन, और पूरी जाति उसके मन, वचन और कार्य में दीनता के कारण उससे प्रेम करती थी। उसके द्वारा गोलियत को मार डालने पर भी, उसने परमेश्वर और मनुष्यों के सामने अपने बारे में उसके सही निम्न दृष्टिकोण को कभी नहीं बदला।
तीसरी, आत्म-छल की व्यक्तिगत विनाशकारी ताकत। एक अहंकारी मनुष्य स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता। उसका अत्यधिक आत्मविश्वास उसके गलत निर्णय लेने का कारण बनता है। वह जल्दीबाज़ी के उत्साह में आगे बढ़ जाता है और उसका अहंकार उसके एक गंभीर खतरे में फसने का कारण बनता है। लेकिन एक विनम्र व्यक्ति, जो खुद पर लगभग उतना भरोसा नहीं करता, कार्य करने से पहले मामलों का अच्छी तरह से विश्लेषण करेगा।
हामान के घमंड पर विचार करें जिसके कारण उसने फारसी साम्राज्य में यहूदियों का विनाश करने की अपनी योजना में जल्दबाज़ी की। यदि उसने थोड़ी खोजबीन की होती तो उसे पता चलता कि एस्तेर, क्षयर्ष की नई रानी, एक यहूदी थी! वह अपने अहंकारी षडयंत्र पर पूर्ण विचार कर पाता। इसके बजाय, इस तथ्य को नजरअंदाज करना उसका अहंकार ही था जो उसके विनाश का कारण बना।
टाइटैनिक के मालिकों और कप्तान के अहंकार पर विचार करें, जब वह 15 अप्रैल,1912 को उत्तरी अटलांटिक के हिमखंड से भरे पानी में सबसे उच्च गति से आगे बड़ा। अंधेरे में छिपे खतरे के बारे में अन्य जहाजों द्वारा पूर्णतया चेतावनी मिलने के बावजूद, इस ‘न डूबने वाले’ जहाज़ को डूबने में केवल दो घंटे और चालीस मिनट लगे और 1,500 से अधिक लोगों की जाने चली गई।
घमंड, शैतान का पाप था (1 तीमुथियुस 3:6)। उसके घमंड के कारण, परमेश्वर ने उसके लिए विश्व में सबसे निचला स्थान, अर्थात् नरक की गहराई आरक्षित कर दी! वह हमेशा के लिए अनंत विनाश और सबसे भयानक पीड़ा को सहेगा। दीनता नासरत के यीशु का महिमामय चरित्र था, जिसे परमेश्वर ने सर्वदा के लिए सब प्राणियों से ऊंचा किया है ( फिलिप्पियों 2:5-11)।
इस पर विचार करें। शैतान परमेश्वर के स्वर्गदूतों में सर्वोच्च था; बुद्धि, शक्ति और महिमा में किसी भी मनुष्य से बहुत ऊपर। यीशु का जन्म एक गरीब बढई की पत्नी से हुआ था, एक अस्तबल में पैदा हुआ और एक चरनी में कपड़े से लिपटा हुआ था। लेकिन वहाँ अति विस्मयकारी परिवर्तन हुआ! नासरत का यीशु अब शैतान और उसके दूतों से कहीं ऊपर परमेश्वर के दाहिने ओर विराजमान होकर विश्व पर शासन करता है। यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने यीशु के लिए शैतान के विरुद्ध ऐसा किया तो वह निश्चित रूप से आपको बाधाओं से ऊपर उठा सकता है।
आप जानते हैं कि शेखी बघारने वाले अपने उच्च, दीर्घ , आडंबरी और आत्म-प्रेमी वक्तत्य से अभिमानी और दंभी होते हैं। आप दूसरों के हावभाव और बर्ताव को पहचान सकते हैं जो अहंकार, घमंड या आत्म-धार्मिकता का संकेत देते हैं। उम्मीद है कि आप इनमें से किसी भी प्रत्यक्ष पाप के दोषी नहीं हैं। लेकिन परमेश्वर गहराई में देखता है। वह तुम्हारे हृदय में देखता है, इसलिए यह नीतिवचन तुम्हारे हृदय के अहंकार से तुम्हें आगाह करने के लिए लिखा गया था। आपको अपनी भावनाओं और विचारों को दीन करना चाहिए!
दुनिया आत्म-प्रेम, आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास का अहंकार और अज्ञानता सिखाती है। यह अपधर्म बाइबल और इस नीतिवचन में सिखाए गए परमेश्वर की बुद्धि का खंडन करता है। आपका प्रेम पहले प्रभु के लिए, फिर दूसरों के लिए और अंत में अपने लिए होना चाहिए। आपका सम्मान पहले परमेश्वर के लिए, दूसरा उसके वचन के लिए, तीसरा अन्य लोगों के लिए और अंत में अपने लिए होना चाहिए। तुम्हारा विश्वास अपने आप में नहीं बल्कि केवल उस पर होना चाहिए जो परमेश्वर आपके द्वारा, आपके साथ या आपके लिए कर सकता है (भजन संहिता 127:1-2)।
स्वयं को जाचें! हर घमंडी विचार से घृणा करें! प्रभु को और जो कोई भी सुनेगा, उसे बताओ कि तुम कुछ नहीं हो और कुछ नहीं से भी कम हो, और इसे ईमानदारी से करो। प्रभु से कहें की आप एक छोटे बच्चे हैं जिन्हें सरल कार्यों के लिए उसकी सहायता की आवश्यकता है। अपने उत्कृष्ट होने के रवैये को छोड़ो और उन लोगों के साथ आ जाओ जिन्हें संसार निम्न वर्ग के रूप में मानती है (रोमियो 12:16)। स्वयं की रक्षा करना और खुद को आश्रय देना बंद करें। निम्न बनो और परमेश्वर तुम्हें ऊपर उठाएगा। यदि तुम स्वयं को ऊपर उठाओगे तो परमेश्वर तुम्हें रौंद देगा।
प्रेरित पतरस की प्रेरित सलाह को सुनें: “परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है, परंतु दीनों पर अनुग्रह करता है। इसलिए परमेश्वर के बलवंत हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिससे वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाएं” (1 पतरस 5:5-6) । परमेश्वर का प्रतिरोध या अनुग्रह, आप किसे चुनते हैं? किससे आपके जीवन को सबसे अधिक लाभ होगा? उसका बलवंत हाथ उचित समय पर आपको ऊंचा उठाए।