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#पाकिस्तान का #दारा आदमखेल हथियारों का पुराना बाजार, लेकिन अब यहां एक लाइब्रेरी लोगों के जीवन को बदल रही है : रिपोर्ट

पाकिस्तान का दारा आदमखेल हथियारों का पुराना बाजार है लेकिन यहां एक लाइब्रेरी लोगों के जीवन को बदल रही है.

दारा आदमखेलका शहर एक अति रूढ़िवादी आदिवासी बेल्ट का हिस्सा है जहां आसपास के पहाड़ों में दशकों से चरमपंथ और मादक पदार्थों की तस्करी ने इसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच “वाइल्ड वेस्ट” मार्ग के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई.

जब हथियार के बाजार में ग्राहकों की भीड़ बढ़ने लगती है तो हथियारों के डीलर मोहम्मद जहांजेब धीरे से अपनी दुकान से निकल कर स्थानीय लाइब्रेरी में पढ़ चले जाते हैं.


28 साल के जहांजेब समाचार एजेंसी एएफपी को पुरानी राइफलों, चाकू और कई अन्य तरह के हथियार दिखाने के बाद लाइब्रेरी में कहते हैं, “यह मेरा शौक है, मेरा पसंदीदा शौक है, इसलिए कभी-कभी मैं चुपके से पढ़ने चला जाता हूं.” वह कहते हैं, “मैं हमेशा से चाहता था कि हमारे यहां एक पुस्तकालय हो और मेरी इच्छा पूरी हो गई है.”

दारा आदमखेल, पेशावर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. छोटा सा कस्बा दशकों से हथियारों की कालाबाजारी के लिए मशहूर है. यहां दर्जनों हथियार कारखाने हैं, जहां चीनी पिस्तौल की सस्ती नकलों से लेकर अमेरिका की एम 16 ऑटोमैटिक राइफल और क्लाशिनिकोव राइफल तक बनती हैं. इन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार से बेहद कम कीमत में बेचा जाता है.

दारा आदमखेल में इस लाइब्रेरी की स्थापना 2018 में कस्बे के शिक्षा प्रेमियों के जीवन में क्रांति लाने के लिए की गई थी. 36 साल के मोहम्मद राज नाम के एक व्यक्ति ने इस पुस्तकालय को क्षेत्र के मुख्य बाजार में बंदूक की सैकड़ों दुकानों में से एक के ऊपर एक कमरे में बनाया. वह एक स्थानीय शिक्षाविद, मशहूर कवि और शिक्षक हैं. मोहम्मद राज कहते हैं, “आप कह सकते हैं कि हमने पुस्तकालय को हथियारों के ढेर पर बनाया है.”

पुस्तकालय परियोजना की सफलता
परियोजनाने तेजी से एक कमरे की सीमा को एक मंजिला इमारत में बदल डाला. इस छोटी अवधि के दौरान, स्थानीय समुदाय की सहायता से दान की गई जमीन पर एक मंजिला इमारत का निर्माण किया गया.

जमीन दान करने वाले परिवार के मुखिया 65 साल इरफानउल्लाह खान के अनुसार, “एक समय था जब हमारे युवा गहनों के रूप में हथियारों से खुद को सजाते थे, लेकिन ज्ञान रत्न से सजे पुरुष कहीं अधिक सुंदर दिखते थे. खूबसूरती हथियारों में नहीं बल्कि शिक्षा में है.”

खान अपने बेटे अफरीदी के साथ इस अनूठी परियोजना के लिए अपना अधिकांश समय देते हैं.

नजरिए में बदलाव
33 साल के वॉलंटियर लाइब्रेरियन शफीउल्लाह अफरीदी का मानना ​​है, “रवैये में बदलाव विशेष रूप से युवा पीढ़ी के बीच ध्यान देने योग्य है, जो अब हथियारों के बजाय शिक्षा में रुचि रखते हैं.”

अफरीदी आगे कहते हैं, “जब लोग अपने मोहल्ले के युवाओं को डॉक्टर और इंजीनियर बनते देखते हैं तो दूसरे भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगते हैं.”

बंदूक बनाने और हथियार परीक्षण के शोर की पृष्ठभूमि में और गोलियों और बारूद से धूल भरे आसपास के वातावरण में पढ़ने के शौकीन पाठक ग्रीन टी की चुस्की लेने जाते हैं और अपनी रुचि की किताब या लेख पढ़ते हैं. लाइब्रेरी में पढ़ते लोगों को देख लगता है कि वे ज्ञान की गंगा में डूबकी लगा रहे हो. हालांकि, अफरीदी अपनी पारियों के दौरान “नो वेपंस अलाउड” नीति को सख्ती से लागू करने के लिए संघर्ष करते हैं.

राज मोहम्मद उस समय को याद करते हैं जब उन्होंने इस लाइब्रेरी को अपने निजी संग्रह से भरना शुरू किया था. वे कहते हैं, “शुरुआत में हम निराश थे. लोगों ने पूछा, दारा आदमखेल जैसी जगह पर किताबों का क्या काम? उन्हें यहां कौन पढ़ेगा? अब हमारे पास 500 से अधिक सदस्य हैं.”

आम जनताके लिए एक लाइब्रेरी कार्ड की कीमत 150 रुपये प्रति वर्ष है, जबकि छात्र साल भर की सदस्यता के लिए 100 रुपये का भुगतान करते हैं और युवा स्कूल की छुट्टियों के दौरान भी लाइब्रेरी जा सकते हैं.

पुस्तकालय के प्रत्येक दस सदस्यों में से एक महिलाहै. आदिवासी क्षेत्रों के लिए यह संख्या बहुत अधिक है. यहां लड़कियां जब थोड़ी बड़ी हो जाती है तो उन्हें घर तक ही सीमित रहना पड़ता है. वे मिश्रित माहौल में नहीं रह सकती हैं, इसलिए उनके घर के पुरुष उनकी ओर से पुस्तकालय से किताबें लाते हैं.

नौ साल की मनाहिल जहांगीर और पांच साल की हरीम सईद सुबह के दौरान स्कूल से ब्रेक मिलने पर लाइब्रेरी जा कर पढ़ाई करती है. सईद शर्माते हुए कहती है, “मेरी मां का सपना मुझे डॉक्टर बनाना है और अगर मैं यहां पढ़ता रहूंगा तो मां का सपना पूरा कर सकूंगा.”

एए/वीके (एएफपी)