साहित्य

पुस्तक चर्चा में, प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार रवींद्रकांत त्यागी जी के कहानी संग्रह ”लंपट” की बात!

Ravindra Kant Tyagi
==============
पुस्तक चर्चा
पुस्तक चर्चा में आज हम उपस्थित हैं,प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार रवींद्रकांत त्यागी जी के कहानी संग्रह लंपट की बात।
लंपट शीर्षक के साथ संग्रह में 18 कहानियाँ संकलित हैं, यूँ तो हर मानव के पास कोई न कोई कहानी है,कभी कहानी स्वयं की है,तो कभी दूसरों की, लेकिन कहानी सभी के पास है,उसके बाद भी सभी कहानियाँ कहने में लिखने में समर्थ नहीं हैं।

जहाँ तक मैं समझती हूँ,कहानी लिखना भी कला है, जिसमें कहानीकार को पाठक की मनोदशा और समाज की यथार्थ स्थिति और मुख्य समस्या को ध्यान में रखते हुए कहानियाँ गढ़नी होती हैं,ताकि कहानियाँ सर्वग्राह्य तो हों हीं, साथ ही उनका असर अनंत काल तक बना रहे।

कहानियाँ लोगों के जहन में ही न होकर लोगों की जुबान पर भी होती हैं त्यागी जी की कहानियों से गुजरते हुए मैंने यह देखा कि आपके भीतर एक कुशल शिल्पी तो है, ही जबरदस्त किस्सागो भी है, आपकी कहानियाँ विविधता से भरी हुई हैं। कहानियाँ अपने समयकाल, परिवेश की व्यंजना के साथ-साथ एक सार्थक संदेश देने में पूर्णतया सफल हैं।
दुलाईवाली,इंदुमती और एक ग्यारह वर्ष का समय से लेकर आज तक कहानी ने लंबी यात्रा की,कहीं-कहीं विश्राम भी किया फिर भी कहानी कहने का सातत्य और पढ़ने की इच्छा में कमी नहीं आई।

त्यागी जी ने अपनी कहानियों में समाज में व्याप्त प्रेम,घृणा,हिंसा और कूटनीति के साथ ही गाँव,शहर मानवता के उत्थान और पतन का भरपूर चित्रण किया है।

कहानी के अनुरुप पात्र चयन और सशक्त पात्रों का गठन कहानी पर आप की पकड़ की मजबूती को बताता है, आप की कहानी के कमजोर नायक
तथा निम्न से निम्न पात्र भी किसी के सहयोग से या स्वयं के प्रयास से अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर रहे हैं ,जो समाज और पाठक को एक सकारात्मक संदेश देने में समर्थ है।
जब आपकी पहली कहानी प्रतिघात में एक निस्सहाय बूढ़ी औरत की बलात्कार पीड़िता बेटी को न्याय पुलिस महकमे का एक अधिकारी दिलाता है, यह बात इस बात की द्योतक है कि मानवता अभी जिंदा है। तो वहीं सारा जग मेरा परिवार में परिवार के लोगों की धन लोलुपता का आपने सुंदर चित्रण किया है, परिवार के लोग संपत्ति के लालच में कुछ भी करने को तत्पर हैं, यह कहानी आज घर-घर की कहानी है।

घर-घर में धन्सू जैसा पात्र ग्रामीण इलाकों में मिल जाएगा।

किसी भी कहानी की ग्राह्यता तब अधिक बढ़ जाती है,जब वह कहानी हम अपने आस-पास घटित होती हुई देखते हैं।

कहने में कोई अत्युक्ति नहीं है कि इस पतनोन्मुख समाज में यह सब घटनाएँ आम हो गई हैं।

एक और कहानी रक्त संबंध में आपने अति आवश्यक विषय को उठाया है वर्तमान समय में बलात्कार एक बड़ी समस्या है,और तमाम बलात्कार पीड़िताएँ बलात्कार से संतान उत्पत्ति की समस्या से भी दो चार होती हैं। बलात्कार की शिकार हुई स्त्री यदि जीवित बच जाती है; और भरी हुई कोख के साथ होती है, तो उसके पास गर्भपात के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है ,कदाचित मामलों में वह लड़कियाँ संतान को जन्म देती है संतान को जन्म न देने के पीछे सबसे बड़ा कारण एक तो यह है कि उस भयावह और घृणास्पद बात से मुक्ति सामाजिक निन्दा से मुक्ति;दूसरा ऐसे घृणित लोगों का बच्चा भी शायद वैसा ही हो,तीसरी लड़की अकेले बच्चे का पालन पोषण कैसे करेगी।

आप के नायक ने कहानी में न ही बलात्कार पीड़िता को सहर्ष स्वीकारा है, बल्कि बलात्कार से उत्पन्न बच्चे को भी अपना बच्चा मानकर लालन-पालन किया है, जो अपने आप में एक बड़ा संदेश है।

इसी कहानी का एक वाक्य–‘
प्रथम मिलन की रात्रि वह फूट-फूटकर रोई और देर तक रोती रही। स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर उसके मन में एक वितृष्णा ने जन्म ले लिया था ।

मैं अपने मधुर प्रेम से उसके तन और मन पर लगे जख्मों को भर देना चाहता था।

मैं उसे अनियंत्रित, पाशविक,
शारीरिक भूख से दूर हृदय की अंधेरी दुरुह सुरंग के
उस पार मधुर नैसर्गिक अंतर्मिलन तक ले जाना चाहता था। उसके मानस में छुपी शीतल रसगंगा का स्वाभाविक प्रवाह फूट पड़े और मरुस्थल को सिंचित कर सुंदर उपवन का मार्ग प्रशस्त हो।

मन पुस्तक के अतीत में लिखे कलुषित पृष्ठ प्रेम प्रवाह में धुलकर धवल चाँदनी में तब्दील हो जाएँ और हम दोनों चलें एक सपनीले सुखद सफर की ओर।
प्रस्तुत वाक्य आपके कथा नायक को एक श्रेष्ठ और उदात्त पति के रुप में प्रतिष्ठित करता है,साथ ही यह भी बताता है,कि जीवन में सकारात्मक परिवर्तन कभी भी आ सकता है,दुनियाँ में कुत्सित लोगों के बाहुल्य के साथ अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है,आपके नायक में प्रेम को लेकर कितना धैर्य और निर्मलता है,उपरोक्त वाक्य से जाना जा सकता है।

एक और कहानी मरुस्थल में बरसात में आपने सन्19 84 में इंदिरा जी की हत्या के बाद उपजे विद्रोह का वर्णन करते हुए मनुष्य की समयपरता तथा विपरीत परिस्थितियों में उसके खुलकर दानवीय रुप में आने का और मानवीय रुप दोनों का सुंदर चित्रण किया है, जब आप कहानी के माध्यम से यह प्रश्न करते हैं, और उत्तर भी देते हैं कौन हैं ,यह लोग ?कहाँ से आए हैं? क्या हमारे साथ हमारे बाजारों में, दफ्तरों में,कालेजों में,और पड़ोस में वही सफेदपोश छुपे हुए हैं, जो एक आदमी को जिंदा जलता देख कर खुशी से चीख सकें, किसी की छाती में छुरा घोंप बहते रक्त को देखकर आनंदित हो सकें, उत्सव मना सकें। क्या यह किसी दूसरी दुनिया से आए लोग हैं ?नहीं यह हमारे बीच हमारे सामने वाइट कालर के साथ मौजूद हैं।

हालाँकि कहानी में मानवता के उदात्त रुप का चित्रण करते हुए आपने कहानी को सुखांत दिया है।

इस तरह से आपकी सभी कहानियाँ एक सार्थक संदेश और आदर्श समाज की कल्पना करती हुई, जान पड़ती हैं। मैं यह कह सकती हूँ कि आप एक आदर्शवादी कहानीकार हैं।
आपका संवेदनशील मन अपनी कहानियों के माध्यम से एक आदर्श समाज की संरचना में संलग्न है।

कहानी सिर्फ तुम प्रेम के एकनिष्ठ रूप का जबरदस्त आलेख है, तो लंपट में आपने जिस तरह से ढ़ोंग का पर्दाफाश करते हुए उसे उसके आखिरी मकाम तक पहुँचाया है,वह सराहनीय है।

इसी तरह ठोकर कहानी में एक भ्रष्ट महिला अधिकारी के माध्यम से अधिकारियों और सरकार की साठगाँठ का चित्रण करते हुए वर्तमान समय के सच को उजागर किया है।
कुल मिलाकर मैं कह सकती हूँ कि आप की कहानियाँ यथार्थ से उत्पन्न होकर और आदर्श तक पहुँचने वाली कहानियाँ हैं।

आपने कहानी के वातावरण और चरित्र के अनुसार भाषा को भी बड़े ढंग से बरता है,जहाँ जरुरत हुई है, आपने अंग्रेजी,पंजाबी ),उर्दू शब्दों का प्रयोग तो किया ही है, विभिन्न तरह के मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया है —
जैसे सारा जग मेरा परिवार में आप लिखते हैं—जिसके घर में चार लाठी वह चौधरी,जिसके घर में पांच लाठी पंच और जिसके घर में दस लाठी वह अंच गिने ना पंच।
पुस्तक पठनीय है,मनोरंजन,यथार्थ और संदेश से भरपूर।

प्रियंवदा