बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के ख़िलाफ़ साल 1995 के एक डबल मर्डर केस में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उम्र क़ैद सी सज़ा सुनाई है.
शीर्ष अदालत ने इस केस में प्रभुनाथ सिंह को कुछ दिनों पहले दोषी क़रार दिया था. कोर्ट ने इस हत्याकांड में अभियुक्त बनाए गए बाक़ी लोगों को बरी कर दिया था.
आरोपों के मुताबिक़, प्रभुनाथ सिंह ने दूसरी पार्टी को वोट देने वाले दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
हालांकि साक्ष्यों के अभाव में प्रभुनाथ सिंह को निचली अदालत और फिर पटना हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था.
यह हत्याकांड सारण ज़िले के मशरख विधानसभा इलाके में हुआ था. उस वक़्त प्रभुनाथ सिंह बिहार पीपल्स पार्टी (बिपीपा) के टिकट पर मशरख से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे.
मशरख का इलाका
छपरा, सिवान, महाराजगंज, गोपालगंज और मुज़फ़्फरपुर जैसे इलाके के बीच ही मशरख भी मौजूद है. यह पूरा इलाका साल 1980 के दशक के अंत से लेकर साल 1990 के दशक तक कई वजहों से सुर्खियों में रहा है.
इस दौर में बिहार में जातिवाद, अपराध और राजनीति की ख़बरों से अख़बारों के पन्ने भरे रहते थे. यह इलाका लालू प्रसाद यादव, प्रभुनाथ सिंह, शहाबुद्दीन, आनंद मोहन और काली पांडे जैसे नेताओं की ज़मीन रही है. यानी राजनीति के बड़े ख़िलाड़ियों से लेकर राजनीतिक बाहुबलियों का ताल्लुक इस इलाक़े से रहा है.
साल 1990 के दशक में वीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने की बात पर बिहार समेत पूरे देश में बड़ा हंगामा शुरू हो गया था.
मंडल बनाम कमंडल का यह दौर बिहार में राजनीतिक उथल-पुथल से भरा रहा था.
इसी दौर में प्रभुनाथ सिंह जनता दल से अलग होकर बिपीपा के टिकट पर मशरख सीट से साल 1995 का विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे. इससे पहले प्रभुनाथ सिंह साल 1985 में निर्दलीय और साल 1990 में जनता दल के टिकट पर मशरख से विधानसभा चुनाव जीत चुके थे.
क्या था मामला?
साल 1995 में बिहार विधानसभा चुनावों के लिए 25 मार्च को सारण ज़िले की मशरख सीट पर मतदान हो रहा था.
इसमें मुख्य मुक़ाबला जनता दल के उम्मीदवार अशोक सिंह और बिपीपा के उम्मीदवार प्रभुनाथ सिंह के बीच था.
आरोपों के मुताबिक़, वोटिंग के दिन प्रभुनाथ सिंह अपने कार्यकर्ताओं के साथ पानापुर प्रखंड के धेनुकी इलाके से गुज़र रहे थे और तभी दूसरे प्रत्याशी को वोट देकर लौट रहे कुछ युवकों पर प्रभुनाथ सिंह ने गोली चला दी थी.
इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी.
प्रभुनाथ सिंह को दोषी क़रार दिए जाने के बाद बीबीसी ने छपरा के मशरख में उन परिवारों से बात करने की कोशिश की, जिन्होंने इंसाफ़ के लिए 28 साल से ज़्यादा लंबा इंतज़ार किया है.
मशरख गोलीकांड के पीड़ित परिवारों से बात करने के लिए जब हम पानापुर प्रखंड से आगे बढ़े, तो यहां एक बुज़ुर्ग ने हमें बताया कि इस गोलीकांड में तीन लोगों को गोली लगी थी.
एक थे राजेंद्र राय, दूसरे दरोगा राय और तीसरी एक दलित महिला थीं, जिनके हाथ में गोली लगी थी. इन महिला की पिछले साल ही मौत हुई है.
हालांकि इस बुज़ुर्ग ने हमें न तो अपना नाम बताया और न ही परिचय दिया.
धेनुकी पूर्वी टोले के राजेंद्र राय उस समय महज़ 18 साल के थे.
राजेंद्र राय की भाभी गिरिजा देवी बताती हैं, “घर में सबने उनको मना किया था कि वोट डालने मत जाओ लेकिन वो दूसरी तरफ से चले गए, जबकि हमारे ससुर दूसरे रास्ते से गए थे.”
गिरिजा देवी के मुताबिक़ राजेन्द्र राय पहली बार वोट डालने जा रहे थे, इसलिए ज़्यादा उत्साहित थे.
उनका कहना है कि उस वक़्त कई गवाह थे जिसने देखा था कि प्रभुनाथ सिंह ने ख़ुद गोली चलाई थी.
गिरिजा देवी के बेटे और राजेन्द्र राय के भतीजे शैलेंद्र यादव उस समय महज़ 6-7 साल के थे.
उनका कहना है कि चाचा जी की मौत इलाज के दौरान हुई थी और उन्होंने भी बयान दिया था कि प्रभुनाथ सिंह ने ख़ुद गोली चलाई थी.
शैलेंद्र का कहना है, “हम लोगों ने लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ी है, इसलिए सारी बातें पता हैं. चाचा जी जब वोट डालकर लौट रहे थे तो प्रभुनाथ सिंह ने पूछा कि किसे वोट दिया? उस वक़्त यहां हवा दूसरी पार्टी की थी तो चाचा ची और साथ के लोगों ने दूसरे कैंडिडेट का नाम ले लिया. इसी बात पर गोली मार दी थी.”
गिरिजा देवी कहती हैं इंसाफ़ की लड़ाई लड़ते-लड़ते पहले 2012 में उनके ससुर रामा राय की मौत हो गई थी. जवान बेटे को इंसाफ़ दिलाने के लिए कोर्ट का चक्कर लगाते-लगाते पिछले साल यानी 2022 में उनकी सास लालमुनि देवी का भी निधन हो गया.
उनका आरोप है कि इस मामले में गवाहों को धमकाया गया, उन्हें रोकने की कोशिश की गई. भागलपुर में जब यह केस निचली अदालत में चल रहा था, तब परिवार के साथ मारपीट भी की गई थी.
शैलेंद्र यादव आरोप लगाते हैं कि इस केस के गवाहों को न केवल डराया गया, कुछ को ख़रीद भी लिया गया और एक बार तो उनके दादा-दादी का अपहरण तक कर लिया गया था ताकि वो कोर्ट न पहुंच सकें.
शैलेंद्र का दावा है कि उनके पिताजी सरकारी कर्मचारी हैं. इस केस की वजह से उन्हें एक बार कई महीनों के लिए नौकरी से निलंबित भी करवा दिया गया था.

मशरख में ख़ामोशी
मशरख गोली कांड पर धेनुकी के ज़्यादातर लोग आज भी ख़ामोश नज़र आते हैं. यह ख़ामोशी आम लोगों में तो दिखी ही, इस गोली कांड में मारे गए एक अन्य व्यक्ति दरोगा राय का परिवार भी इस मामले पर बात करने से बचता दिखा.
काफ़ी देर तक आवाज़ लगाने के बाद धेनुकी तख़्त में मौजूद उनके घर से एक महिला निकलीं. हमने उनसे जो भी सवाल किए उसका एक ही जवाब मिला कि “हमें नहीं पता.”
इसके अलावा उनके घर के आसपास और गांव के बाक़ी लोगों ने भी इस मामले पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.
उन्हीं के घर के बाहर की मुख्य सड़क पर एक स्कूल है. अब इलाके का मतदान केंद्र इसी स्कूल में है, जो साल 1995 में स्कूल के सामने की तरफ़ था.
स्कूल के बार की सड़क पर ही उस वक़्त गोलीबारी हुई थी, जिसका आरोप प्रभुनाथ सिंह पर लगा था और अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रभुनाथ सिंह को दोषी क़रार दिया है.
हमने प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह से इस मामले में बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर बात करने से मना कर दिया.
वहीं प्रभुनाथ सिंह से भतीजे सुधीर सिंह का कहना है, “यह न्यायालय की प्रक्रिया है, इस पर हमलोगों को ज़्यादा कुछ नहीं कहना है. न्यायालय का सम्मान है. लेकिन इतना हम लोग जानते हैं कि बड़े पिता जी निर्दोष हैं.”
मशरख की इस ख़ामोशी पर वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का कहना है कि आज भी इलाके के लोगों में प्रभुनाथ सिंह का ख़ौफ़ है, जो दिखता भी है.
कन्हैया भेलारी कहते हैं, “इस इलाके में राजपूत और यादवों के बीच का पुराना संघर्ष है. लालू प्रसाद यादव शुरू से चाहते थे कि प्रभुनाथ सिंह उनको अपना नेता मान लें.”
कन्हैया भेलारी का मानना है कि अब प्रभुनाथ सिंह के परिवार के ज़्यादातर लोग सत्ता के साथ हैं और हो सकता है कि इस बार महाराजगंज से उन्हीं के परिवार के किसी व्यक्ति को आरजेडी लोकसभा चुनावों का टिकट भी दे दे.