साहित्य

प्रतिवाद : यह क़विता ज़रुर पढी जानी चाहिए…..By – अजय दुर्ज्ञेय

भारद्वाज दिलीप
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[ यह कविता ज़रुर पढी जानी चाहिए]
प्रतिवाद
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ओ मेरे दोस्त!तुम्हारी सलाह है
कि मुझे कम आक्रामक होना चाहिए।
सब भूल जाना चाहिए,
सबसे प्यार करना चाहिए और
अतीत के चंगुल से बाहर आना चाहिए
ख़ैर!मैं तुमसे सिर्फ यह पूछता हूँ कि
क्या तुम्हारे लिए कभी प्रगति प्रतिबंधित हुई है?
क्या तुम्हारी नियति पैदा होने से पूर्व अनुबंधित हुई है?
क्या तुम्हारे लिए कभी गढ़ी गई सबसे गंदी गाली?
क्या तुम कभी भी उतरे हो कोई गटर,नाला,नाली?
क्या तुम्हारा स्वेद कभी मूड़ से नितंब तक आया है?
क्या तुमसे ग़लती से छू जाने के बाद कोई नहाया है?
क्या तुम्हारे मस्तक ने कभी किसी दूसरे का मैला ढ़ोया है?
क्या बेगार में भरी दुपहरी कभी किसी का खेत बोया है?
क्या कभी जूठन से अपना पेट भरे हो?
क्या मरने से पहले एक बार भी मरे हो?
क्या तुम्हारी माँ/बहन सार्वजनिक संपत्ति घोषित हुई है?
क्या तुम्हारी एक भी पीढ़ी ऐसे शोषित हुई है?
क्या कभी तुम्हारे किसी पुरखे ने पिया है मूत?
क्या तुम्हारे किसी पुरखे ने चाटा है अपना ही थूक ?
क्या तुम्हारी जीभ पर चढ़ा है ऐसा कोई भी स्वाद?
क्या तुम्हें याद है ऐसी एक भी घृणित याद?
अब तुम कहोगे मैं फिर से आक्रामक हो रहा हूँ…
तो माफ़ करना दोस्त!मेरा स्वर ऊँचा नहीं है बल्कि
तुम खुद खुद एक निष्क्रिय चुप्पी के आदी हो चुके हो-
तुम्हारे कान विरोध के स्वर से वंचित रह गए हैं।
लेकिन अब उन्हें मजबूत करो,तैयार करो
क्योंकि तुम्हारे अनुसार मैं आक्रामक हो चुका हूँ,
शोषित आक्रामक हो चुके हैं।
– अजय दुर्ज्ञेय