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प्राण साहब….सुनहरे परदे का ”शेर ख़ान”….को मुंबई में पहला काम पाने के लिए 8 महीने तक संघर्ष करना पड़ा!


बात है 1947 की अजीब सा माहौल था देश के विभाजन को लेकर बहुत तनाव बना हुआ था ।उन दिनों प्राण साहब लाहौर में रहा करते थे वह लाहौर फिल्म इंडस्ट्री के एक स्तब्लिश्ड जाने-माने कलाकार थे। प्राण साहब की उस वक्त शादी भी हो चुकी थी और एक बेटा भी था अरविंद ।

Indian actor Pran Krishan Sikand (R) Manoj Kumar (C) and Dev Anand (L) take part in a ceremony in Mumbai on April 30, 2010, held to commemerate the birth anniversary of Indian film director Dadasaheb G. Phalke. AFP PHOTO/STR (Photo credit should read STRDEL/AFP via Getty Images)

पार्टीशन की वजह से जो माहौल बिगड़ रहा था उसे देखते हुए प्राण साहब ने अपनी पत्नी शुक्ला जी और बेटे को लाहौर से इंदौर भेज दिया था। इंदौर में प्राण साहब की साली रहा करती थी , अगर कहीं यह हुआ कि यहां से भागना पड़ा तो कहीं तो ठिकाना होना चाहिए। प्राण जी की पत्नी शुक्ला जी और बेटा सकुशल इंदौर पहुंच गए तो शुक्ला जी ने प्राण साहब को फोन किया, कहा कि बेटे का जन्मदिन मनाने के लिए तो इंदौर आ जाइए यह बेटे की पहला जन्मदिन था 11 अगस्त 1947 । प्राण साहब ने कहा कि उनका आना मुश्किल होगा बहुत सारे काम है माहौल भी ठीक नहीं है लेकिन शुक्ला जी ने जिद पकड़ ली उन्होंने कहा कि आप नहीं आएंगे तो बच्चे का यह जन्मदिन भी नहीं बनाएंगे।अब प्राण साहब मजबूर हो गए उन्होंने फैसला किया कि वह इंदौर जाएंगे सोचा 1 हफ्ते के लिए इंदौर चलते हैं , बच्चे का जन्मदिन मना कर वापस आ जाएंगे ।तो एक हफ्ते की पैकिंग करने के बाद वह निकल गए इंदौर के लिए ।

11 अगस्त को बच्चे का जन्मदिन धूमधाम से मनाया ।जन्मदिन के दो दिन बाद ही लाहौर सहित उत्तर भारत के बहुत सारे शहरों में दंगे शुरू हो गए खबरें आने लगी कि लाहौर खून में सन गया है और सैकड़ों लोग इन दंगों में अपनी जान गवा चुके हैं, लाहौर में भारी तबाही हुई है खबरें सुनकर प्राण ने अपने देवता मुरली वाले का स्मरण किया और हाथ जोड़े और कहा कि अगर बीवी इंदौर नहीं बुलाती और इतनी जिद नहीं करती तो वह शायद दंगों के चपेट में आ जाते और शायद जिंदा नहीं होते अपने बीवी और बच्चों को देखने के लिए । तो बीवी की जिद ने प्राण साहब को दिया नया प्राण दान ।

अब दूसरी बात प्राण साहब मुंबई आए तो साथ में बहुत सारी उमंगे थी बहुत सारे सपने थे जो जल्दी ही टूटने लगे । लाहौर में वह नाम कमा चुके थे वहां उन्होंने 20 फिल्में भी की थी, उन्हें उम्मीद थी कि मुंबई में भी वैसा ही होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ प्राण साहब को मुंबई में पहला काम पाने के लिए 8 महीने तक संघर्ष करना पड़ा और यह संघर्ष बहुत कड़ा था ।अपनी पत्नी शुक्ला जी और बेटे पप्पू के साथ प्राण साहब आ गए मुंबई । उन्होंने सबसे पहले अपना ठिकाना बनाया होटल ताज, एट गेटवे ऑफ इंडिया, इन दिनों होटल ताज में स्वीट का रेट हुआ करता था ₹55 इंक्लूडेड ब्रेकफास्ट एंड लंच डिनर ।

उस टाइम पर 1947 में यह बहुत बड़ा अमाउंट था वह भी ऐसे आदमी के लिए जिसके पास मुंबई में कोई काम भी नहीं है । प्राण साहब को जल्दी ही बात समझ में आ गई यह ताज का स्वीट बहुत भारी पड़ जाएगा तो कुछ दिन रुकने के बाद इससे आधी कीमत की एक होटल में शिफ्ट कर लिया। दिनभर स्ट्रगल करते हर जगह टका सा जवाब होता कोई काम नहीं है ।प्राण साहब के दिन बहुत खराब चल रहे थे उम्मीदें टूटती जा रही थी ,होटल बदलना पड़ रहा था ताज से वह पहुंच गए होटल स्टैंट जो कि रेडियो क्लब के पास था फिर उसको चेंज किया वहां से होटल फ्रेडरिक्स होटल आ गए होटल वहां से डेलामार होटल आ गए, डेलामार में वह सबसे ज्यादा वक्त तक रुके 10 महीने तक ,इस होटल तक आते-आते कंडीशन इतनी खराब हो चुकी थी कि उन्होंने अपने बेटे को इंदौर में उसकी मासी के घर भेज दिया । लेकिन शुक्ला जी उनके साथ मुश्किल के इस दौर में सहारा बनी रहे जो लगातार उन्हें हौसला देती रहती। होटल में रहते हुए प्राण साहब को हर हफ्ते होटल का बिल चुकाना पड़ता था, काम नहीं था और एक दिन हालात ऐसे हो गए कि पैसा भी खत्म हो गया पास का। बिल देना था पर पैसे नहीं थे,  अब क्या करें ??

वापस लौटने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, इसी उधेड़बुन में थे, कि शुक्ला जी ने हाथ में से सोने के कंगन उतारे और पति को दिए अपनी पत्नी पर बरस पड़े नहीं यह नहीं होगा मैं तुम्हारे जेवर बेचकर अपने सपने पूरे नहीं कर सकता ,प्राण साहब गुस्सा उस समय अपनी पत्नी पर नहीं अपने आप पर उतार रहे थे ,मजबूरी थी वह इतने नाकारा हैं कि वह अपने परिवार के लिए अपनी पत्नी के गहने बेचने पड़ेंगे । उन्होंने पत्नी से कहा कि हम वापस चले जाएंगे लेकिन तुम्हारे जेवर नहीं बेचेंगे, पत्नी ने समझाया कि यह चीजें ऐसे ही वक्त के लिए होती हैं जेवर ही तो है अब अच्छा वक्त आएगा तो फिर से ले लेंगे इनसे ज्यादा जरूरी मुंबई में रहना है और काम ढूंढना है और काम पाना है ।

प्राण साहब के बार-बार मना करने पर भी शुक्ला जी उन्हें समझाती रही कि इस तरह हिम्मत नहीं हारते एक चांस और लो शायद कुछ हो जाए ,जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। इन्हीं दिनों में जगी आशा की एक किरण प्राण साहब को एक टेलीफोन आया फिल्म मिल गई मुंबई टॉकीज की फिल्म जिद्दी इस इस फिल्म के लिए उनको ₹500 महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर रख लिया गया , प्राण साहब ने ₹100 एडवांस में लिए और जाकर मियां बीवी ने रात में पार्टी मनाई जब पार्टी करके वापस होटल लौटे तो आप यकीन नहीं मानेंगे, एक फिल्म का और ऑफर आ गया था, जिंदगी ने दरवाजे खोलने शुरू कर दिए किस्मत के,  प्राण साहब को 4 दिनों के अंदर ही चार फिल्में मिल गई जो संघर्षों से टूट कर वापस लाहौर जाना चाहते थे, उन्हें अपनी धर्मपत्नी शुक्ला जी ने फिर से नया प्राण दान दिया।

((साभार मल्टी मीडिया/ गूगल ))