साहित्य

**प्रीत की सब रीत झूठी** और **गूँज उठी शहनाई**….कुसुम सिंह सुनैना की दो कवितायेँ पढ़िये!

Kusum Singh

अध्यापिका दिल्ली सरकार

Lives in Delhi, India

From Gaya, India
==========
प्रीत की सब रीत झूठी
—–———————–
पीर पारावार भरो प्रिय!
हृदयतल विस्तृत में,
कुछ नयन मग से बहायो,
कुछ रच बहायो काव्य में।
सासों संग सौरभ समाया,
तेरे सुवासित देह का,
कुछ दौड़े हैं धमनियां,
कुछ हुआ मधुमास का।
अँचरा भरा प्रिय, प्रीत से,
अब दियो मोती वेदना,
संताप घन मानस दियो,
कल्पांत सब संवेदना ।
प्रीत घट सूखा पड़ा,
हिय रोये तेरी प्रवंचना,
प्रीत की सब रीत झूठी,
अब है हृदय का मानना।
कुसुम सिंह सुनैना
नई दिल्ली✍️✍️

Kusum Singh
=============
” गूँज उठी शहनाई”
शरद ऋतु की गूंज उठी,
देखो चहुँ ओर शहनाई।
दिनकर थोड़े सहम गए,
गुन – गुनी धूप है छाई।
धवल चांदनी की चादर में,
प्रकृति हुई विभोर।
स्वच्छ श्वेत हिम चादर में,
सुशोभित हुए महीधर।
जम गई सारी ताल-तलइया,
अमराई है अलसाई।
खग -गण छिपकर बैठ गए,
चले मन्द – मन्द पुरवाई।
शीतल समीर का झोंका,
है सबका दिल दहलता।
अब तपिस अनल की,
जन – जन को कितना भाता।
कुसुम सिंह”लता”
नई दिल्ली