धर्म

फिर जो गुनाहों का रास्ता छोड़ चुका हो उस को उन गुनाहों पर आ़र दिलाना बहुत ही बुरा है

Muhammad Tauhid
==============
(तौबा के बा’द गुनाहों पर आ़र दिलाना)

👉गुनाहों की आदत बहुत बुरी और इन से तौबा कर लेना बहुत अच्छा है फिर जो गुनाहों का रास्ता छोड़ चुका हो उस को उन गुनाहों पर आ़र दिलाना बहुत ही बुरा है।
कल तक तुम चोरियां करते थे आज बड़े नेक बने फिरते हो।

कल ख़ुद नमाज़ नहीं पढ़ते थे आज इमाम बन बैठे हो।
जैसे जुम्ले बोल कर त़न्ज़ करना सख़्त दिल आज़ार है।

🌹सरकारे आ़ली वक़ार मदीने के ताजदार ﷺ ने इरशाद फ़रमाया: जो अपने भाई को किसी गुनाह पर आर दिलाए तो वोह न मरेगा ह़त्ता कि ख़ुद भी करेगा।
📕तिर्मिज़ी शरीफ़)
📗तक़्लीफ न दिजिये’ पेज़ नं 101)

✒️मुफ़स्सिरे शहीर ह़कीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार ख़ान कुद्दिसा सिर्रुहू’ इस हदीसे पाक के तह़त लिखते हैं गुनाह से वोह गुनाह मुराद है जिसे वोह तौबा कर चुका है, या वोह पुराना गुनाह जिसे लोग भूल चुके या खुफ़्या गुनाह जिस पर लोग मुत्त़लअ़ न हों और आ़र दिलाना तौबा कराने के लिये न हो मह़ज़ ग़ुस्सा और जोशे गज़ब से हो येह क़ुयूद ख़याल में रहें।

वोह न मरेगा ह़त्ता कि ख़ुद भी करेगा? की वज़ाह़त में मुफ़्ती साहिब लिखते हैं या’नी अपनी मौत से पहले येह गुनाह ख़ुद करेगा और उस में बदनाम होगा, मज़लूम का बदला ज़ालिम से ख़ुद रब तआ़ला’ लेता है।

मुफ़्ती साहिब मजीद लिखते हैं: यहां गुनाह से मुराद वो गुनाह है जिस से गुनाहगार तौबा कर चुका है ऐसे गुनाह का ज़िक्र भी नहीं चाहियें, जिस गुनाह में बन्दा गिरफ़्तार है उस से आ़र दिलाना ताकि तौबा करें येह तो तब्लीग़ है इस पर सवाब है।
📕मिरआतुल मनाजीह़’ 6/473)

👉शिहाब भाई पहले किया थे या अजमेर शरीफ़ के खादीम पहले किया थे इसका ज़िक्र करके साबीत क्या करना चाहते हो सुनो अल्लाह के रसूल ﷺ ने क्या फ़रमाया: आदम की तमाम की तमाम औलाद खताकार है, लेकिन बेहतर खताकार वो है जो तौबा कर ले।
📕सुनन इब्ने माजाह’ हदीस 4392)

🖕इस हदीस से साबित हुवा कि हम में से कोई दुध के धुले नहीं है फ़िर हम इन के या किसी मुसलमान के ऐब बता कर उनपर क्यों हंसे।
अल्लाह तआला’ क़ुरआने करीम में इर्शाद फ़रमाता है तर्जमए कन्ज़ुल ईमान: ऐ ईमान वालो न मर्द मर्दों से हंसें अ़जब नहीं कि वोह उन हंसने वालों से बेहतर हों।
📖पारा 26, सूरह हुजरात’ आयत 11)

👉मैं पुछना चाहता हूं मुसलमानों से आप क्यों बे वजह कि बातों में अपनी आख़िरत बर्बाद कर रहे हो न शिहाब भाई की तारीफ़ करके आपके नामे अमल में कुछ नेकियां लिखी जाएंगी नं अजमेर शरीफ़ के खादीम की बुराई करके फिर क्यों इनके छिपी हुई चीज़ की टटोल में लगे हो।

🌹रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: ऐ उन लोगों के गिरोह! जो ज़ुबान से ईमान लाये और ईमान उनके दिलों में दाख़िल नहीं हुआ मुसलमानों की ग़ीबत न करो और उनकी छिपी हुई बातों की टटोल न करो इसलिए की जो शख़्स मुसलमान भाई की छिपी हुई चीज़ की टटोल करेगा अल्लाह तआला’ उसकी पोशीदा चीज़ की टटोल करेगा।
और जिसकी अल्लाह टटोल करेगा उसको रूसवा कर देगा, अगरचे वह अपने मकान के अन्दर हो।
📗अबू दाऊद शरीफ़)
📕क़ानूने शरीअत’ भाग-2, पेज़ नं 275)
🌹और फ़रमाया: जो शख़्स मुस्लिम की पर्दा पोशी करेगा अल्लाह तआला’ क़यामत के दिन उसकी पर्दापोशी करेगा।
📕क़ानूने शरीअत’ भाग-2, पेज़ नं 289)
🌹रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि: आदमी के इस्लाम की अच्छाई में से यह है कि ला- यानी चीज़ छोड़ दे यानी जो चीज़ कारआमद न हो उसमें न पड़े।
📕क़ानूने शरीअत’ भाग-2, पेज़ नं 273)

👉मुझे बताएं शिहाब चतुर की तारीफ़ और अजमेर शरीफ़ के खादीम की बुराई करके हमें किया फायदा होने वाला है सिवाए गुनाह के।
🌹हज़रत अबूज़र रज़ियल्लाहो तआला अन्हु’ कहते हैं कि मैंने अर्ज़ की या रसूलुल्लाह ﷺ वसियत कीजिये फ़रमाया: तुमको दूसरे लोगों से रोके वह चीज़ जो तुम अपने नफ़्स से जानते हो, यानी जो अपने अयूब की तरफ नज़र रखेगा दुसरों के अयूब में न पड़ेगा, और काम की बात यह है कि अपने ऐब पर नज़र की जाये ताकि उसके जायल करने की कोशिश की जाये।
📕क़ानूने शरीअत’ भाग-2, पेज़ नं 273)
📝ना थी अपने ऐ़बों की जब ख़बर,
रहे देखते औरों के ऐ़बो हुनर।
पड़ी अपनी ख़ामियों पर जब नज़र,
तो जहां में कोई बुरा न रहा।

🌹रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने दिल की तरफ़ इशारा कर के फ़रमाया: तक़्वा यहां है, आदमी के बुरे होने के लिये येही काफ़ी है कि वोह अपने मुसलमान भाई को ह़कीर (छोटा) जाने।
📗तिरमिज़ी शरीफ़)
📕कबीरा गुनाह’ पेज़ नं 165)

🌹रसूले करीम ﷺ ने हज़रते सय्यिदुना मुआ़ज़ रज़ियल्लाहो तआला अन्हु’ से इरशाद फ़रमाया: तेरी मां तुझ पर रोए बे फ़ाइदा व फ़ुज़ूल गुफ़्तगू ही लोगों को जहन्नम में औंधे मुंह गिराएगी।
📗 तिरमिज़ी शरीफ़)
📕कबीरा गुनाह’ पेज़ नं 82)

🌹हज़रते सय्यिदुना ईंसा रूहुल्लाह अलैहिस्सलाम’ की ख़िदमते बा अज़मत में लोगों ने अर्ज़ की: कोई ऐसा अमल बताइये कि जिस से जन्नत मिले।
इरशाद फ़रमाया: कभी बोलो मत।
अर्ज़ की: येह तो नहीं हो सकता।
इरशाद फ़रमाया: अच्छी बात के सिवा ज़बान से कुछ मत निकालो।
📕कबीरा गुनाह’ पेज़ नं 221)
❁┄════❁✿❁════┄❁

हाफ़िज मुहम्मद साबिर-उल क़ादरी’