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बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी और धार्मिक ध्रुवीकरण के बावजूद गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत पर अंतरष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट!

गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 182 में से 156 सीटों पर जीत हासिल की है.
प्रदेश में सबसे ज़्यादा नुक़सान कांग्रेस को हुआ है. पार्टी 17 के आंकड़े पर सिमट गई है.
आम आदमी पार्टी ने यहां अपना खाता खोल लिया है. उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है और उसने पांच सीटों पर जीत दर्ज की है.
पिछले विधानसभा चुनावों में गुजरात में बीजेपी को 99 सीटें मिली थी, कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी.
हिमाचल प्रदेश विभानसभा चुनाव में कांग्रेस बड़ी पार्टी बन कर उभरी है. उसे 68 सीटों में से 40 पर जीत मिली है. वहीं बीजेपी को 25 और तीन सीटों पर अन्य उम्मीदवारों को जीत मिली है.
बीते तीन दशक से हिमाचल का इतिहास रहा है कि यहां किसी एक पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता नहीं मिलती.
हालांकि हिमाचल में बीजेपी के मत प्रतिशत पर अधिक असर नहीं पड़ा. पार्टी का मत प्रतिशत 43 फ़ीसदी रहा जबकि कांग्रेस का मत प्रतिशत इससे थोड़ा अधिक 43.9 फ़ीसदी रहा.
कुछ दिन पहले दिल्ली में हुए म्युनिसिपल चुनावों में 15 साल से सत्ता में रही बीजेपी को आम आदमी पार्टी ने हरा दिया. आम आदमी पार्टी को 250 वॉर्डों में से 134 में जीत मिली थी, वहीं बीजेपी को 104 में और कांग्रेस को केवल सौ वॉर्डों में जीत हासिल हुई थी.

गुजरात में बीजेपी की रिकॉर्ड तोड़ जीत और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत की ख़बरों से भारत से छपने वाले आज के अख़बार पटे दिखे. यहाँ तक कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी चुनाव की ख़बरों का ज़िक्र दिखा.

वॉशिंगटन पोस्ट ने ख़बर छापी है कि पीएम मोदी की पार्टी ने एक राज्य में जीत हासिल की तो, एक में हार गई है.

वेबसाइट लिखता है कि मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी ने मोदी के गृह राज्य गुजरात में 27 साल के अपने नियंत्रण को एक बार फिर क़ायम किया है, लेकिन उत्तरी राज्य हिमाचल और दिल्ली शहर में सत्ता से बाहर हो गई है.

1995 से गुजरात में बीजेपी ने किसी चुनाव में शिकस्त नहीं देखी है और प्रधानमंत्री बनने से पहले 13 साल तक मोदी यहाँ से मुख्यमंत्री थे

वेबसाइट ने लिखा है कि अगर पार्टी को गुजरात के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में भी जीत मिलती, तो इससे मोदी और बीजेपी की स्थिति और मज़बूत होती और पार्टी को अधिक जोश से हिंदुत्व के एजेंडे के साथ 2024 के आम चुनावों में उतरने में मदद मिलती.

वेबसाइट लिखता है कि प्रदेश में बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी और धार्मिक ध्रुवीकरण के बावजूद मोदी की पार्टी राज्य में लोकप्रिय है.

वेबसाइट ने एक कांग्रेस नेता के हवाले से गुजरात में मिली हार को ‘बड़ा झटका’ लिखा है. साथ ही लिखा है कि इस साल अक्टूबर में मल्लिकार्जुन खड़गे को ग़ैर-गांधी पार्टी प्रमुख चुनने के बाद सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे पार्टी के बड़े चेहरों ने चुनावी अभियान में सक्रिय भागीदारी नहीं की.

वेबसाइट ने 2002 में हुए गुजरात दंगों का भी ज़िक्र किया और लिखा कि मोदी के आलोचकों ने उन पर ख़ूनख़राबे से मुँह मोड़ने का आरोप लगाया. वेबसाइट लिखता है कि मोदी ने इन आरोपों से इनकार किया था और सुप्रीम कोर्ट को उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले.

‘गुजरात में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण’

अल जज़ीरा ने लिखा है कि 2024 के आम चुनावों से पहले गुजरात में बीजेपी ने भारी जीत दर्ज की है, लेकिन वहीं हिमाचल प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी के हाथों उसे हार मिली है.

वेबसाइट लिखता है कि साल 2002 में हुए गुजरात दंगे आज़ादी के बाद हुए सबसे बुरे सांप्रदायिक दंगे थे. इनमें क़रीब 2000 लोगों की मौत हुई जिनमें से अधिकांश मुसलमान थे. इसके बाद मोदी ने ख़ुद को हिंदुओं के नेता के रूप में स्थापित किया.

वेबसाइट लिखता है कि बीजेपी पर हिंदू वोट पाने के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण करने के आरोप लगाए जाते हैं. 2002 में हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में हिंदू दोषियों को रिहा करने की भी चर्चा वेबसाइट ने की है.

वेबसाइट ने ये भी लिखा है कि भारतीय मीडिया की कई रिपोर्टों के अनुसार गुजरात में महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दे हैं, लेकिन मतदाताओं का फ़ैसला शायद मोदी की शख्सियत और मुसलमान विरोधी भावना से प्रभावित दिखा.

वेबसाइट ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के जानकार अजय गुडवर्ती के हवाले से लिखा कि बीजेपी की जीत दिखाती है कि गुजरात में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो चुका है.

वो कहते हैं कि हिंदू कार्ड के फेंके जाने के बाद विपक्ष के पॉपुलर नेता भी हार का सामना कर रहे हैं. आपको मानना होगा कि ये भावना जनमानस में भीतर तक पैठी हुई है.

वेबसाइट ने दिल्ली के एमसीडी चुनावों में बीजेपी की हार का भी ज़िक्र किया है और साथ ही लिखा है कि गुजरात चुनावों में जीत के बाद मोदी अब लोकसभा चुनावों की तैयारी करेंगे और लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री के कार्यकाल की उम्मीद रखेंगे.

वेबसाइट ने अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता के हवाले से लिखा है कि बीजेपी ने मुसलमान विरोधी अभियान चलाया था और यहाँ पर वोटिंग सांप्रदायिक नज़रिए से हुई है. उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीति में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं है और ध्रुवीकरण के माहौल में सरकार उनकी आवाज़ दबाना चाहती

मोदी का जादू बरक़रार
ब्लूमबर्ग ने बीजेपी की बड़ी जीत को सुर्खियों में रखा है और लिखा है कि महंगाई और बेरोज़गारी के मुद्दों के बीच ये चुनाव कराए गए थे.

वेबसाइट ने लिखा है कि गुजरात में चुनाव जीतकर बीजेपी ने साबित कर दिया है कि महंगाई जैसे मुद्दों के बीच भी मोदी मतदाताओं की पसंद बने हुए हैं.

मोदी अपनी पार्टी के स्टार प्रचारक रहे हैं और उन्होंने गुजरात में दर्जनों रैलियाँ की हैं.

वेबसाइट ने अशोका यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर राहुल वर्मा के हवाले से लिखा है कि ज़मीनी स्तर पर सत्ताधारी बीजेपी की बड़ी मौजूदगी रही है, जिसका मुक़ाबला कोई और पार्टी नहीं कर सकती.

गुजरात में वो एक मज़बूत ताक़त है, जिसके बल पर उसने कमज़ोर और बँटे हुए विपक्ष को प्रदेश में उसकी सत्ता ख़त्म करने से रोक दिया.

वेबसाइट लिखता है कि हिमाचल में कहानी अलग रही, जहाँ कांग्रेस ने बहुमत हासिल कर लिया है.

हालाँकि वेबसाइट ने एक जानकार के हवाले से ये भी लिखा है कि यहाँ मिली हार बीजेपी के लिए बड़ा झटका नहीं है क्योंकि उनका वोट शेयर अभी भी अधिक नहीं बिगड़ा है.

बीजेपी का तगड़ा प्रचार, विपक्ष कमज़ोर

ब्रिटेन से छपने वाले गार्डियन ने भी गुजरात में बीजेपी की बड़ी जीत पर रिपोर्ट की है और लिखा है कि बीजेपी ने यहाँ चुनाव प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. मोदी ने यहाँ 30 से अधिक रैलियां कीं जबकि उनके क़रीबी माने जाने वाले अमित शाह ने भी यहाँ कई रोडशो किए.

वेबसाइट लिखता है कि राष्ट्रीय स्तर पर पहले ही पिछड़ रही कांग्रेस को यहाँ क़रीब 60 सीटों का नुक़सान हुआ है.

वहीं दिल्ली और पंजाब में सत्ता पर काबिज़ आम आदमी पार्टी ने अपनी मौजूदगी बनाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया, लेकिन यहाँ पर पाँच सीटें ही जीत पाई.

वहीं वेबसाइट लिखता है हिमाचल प्रदेश में बीते तीन दशक से कोई एक पार्टी लगातार सत्ता पर क़ाबिज़ नहीं रही है और इस बार बीजेपी को यहाँ हार का सामना करना पड़ा जबकि कांग्रेस के लिए जीत उम्मीद की किरण के रूप में सामने आई.

वेबसाइट ने सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च में फेलो राहुल वर्मा के हवाले से लिखा है कि महंगाई, बेरोज़गारी और कोविड महामारी से निपटने में सरकार की नाकामी का यहाँ बीजेपी की छवि पर अधिक असर पड़ता नहीं दिखा.

उनका ये भी कहना था कि बीजेपी की जीत का एक कारण ये भी रहा कि यहाँ विपक्षी कांग्रेस एकजुट नहीं थी और चुनावों में एक तीसरे खिलाड़ी के रूप में आम आदमी पार्टी ने अपनी क़िस्मत आज़माई और वोट बँटने का कारण बनी.

पाकिस्तान के अख़बार में अलग नज़रिए से विश्लेषण
पाकिस्तान से छपने वाले डॉन अख़बार ने चुनावों से जुड़ी रिपोर्ट की हेडलाइन लगाई है- अहम चुनावों में भारत के विपक्ष ने बाज़ी मारी.

अख़बार लिखता है कि दो राज्यों में विधानसभा चुनाव, राजनीतिक नज़रिए से अहम दिल्ली के एमसीडी चुनाव और कुछ इलाक़ों में हुई उपचुनावों के नतीजों से संकेत मिलता है कि बीजेपी कमज़ोर हो रही है जबकि भारत का बँटा हुआ विपक्ष साथ आ रहा है.

अख़बार के अनुसार गुजरात में मोदी का मैजिक उनकी पार्टी के लिए काम कर गया और पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल की, लेकिन वहीं हिमाचल में सीधी लड़ाई में कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया.

अख़बार ने सवाल किया है कि अगर ये मोदी का मैजिक ही था तो इसने गुजरात में काम किया तो हिमाचल में काम क्यों नहीं किया?

दिल्ली में एमसीडी चुनावों में बीजेपी को बड़ा नुक़सान आम आदमी पार्टी ने पहुँचाया, जिसने एमसीडी में बीजेपी के 15 साल का शासन ख़त्म कर दिया. बीजेपी के बड़े नेताओं ने दिल्ली में चुनावी अभियान किए थे, इस कारण इस हार से उनकी फ़जीहत हुई.

डॉन ने एमसीडी चुनावों के बारे में विस्तार से लिखा है. साथ ही 2002 गुजरात दंगों का ज़िक्र किया और लिखा कि एक विवादित फ़ैसले में आज़ादी के दिन गुजरात में सामूहिक बलात्कार के दोषियों को रिहा किया गया था.

अख़बार लिखता है कि मध्य प्रदेश और कर्नाटक में वहाँ की विपक्ष की सरकारों को अस्थिर करने के बाद बीजेपी सत्ता पर क़ाबिज़ हुई, ये विपक्ष की बड़ी चिंता बन गई है.

‘नतीजे मोदी का हौसला और बढ़ाएंगे’
अरब न्यूज़ ने भी गुजरात चुनावों पर रिपोर्ट छापी है और लिखा है कि 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले ये बड़ी जीत बीजेपी का हौसला बढ़ाएगी.

वेबसाइट ने लिखा है कि बीजेपी को 80 फीसदी से अधिक सीटों पर जीत मिली है और उसने 2002 का अपनी ही जीत का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.

2002 में बीजेपी को 127 सीटों पर जीत मिली थी.

मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद कर रहे हैं और गुजरात चुनावों के लिए उन्होंने चुनाव अभियान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.

वेबसाइट लिखता है कि गुजरात में बीजेपी को मुख्य टक्कर मिली है कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से जो 2012 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से अस्तित्व में आई थी. 137 साल पुरानी पार्टी गुजरात विधानसभा चुनाव के अपने प्रदर्शन से काफी पीछे हो गई है.

वहीं हिमाचल प्रदेश चुनावों की ज़िक्र करते हुए वेबसाइट ने लिखा है कि यहाँ भी बीजेपी को मोदी के आक्रामक चुनाव प्रचार से उम्मीदें थीं लेकिन यहाँ नतीजा उसके पक्ष में नहीं आया.