देश

बांग्लादेश में रूस, चीन की मौजूदगी, इन सब में भारत कहां है?

10 दिसंबर को विपक्षी पार्टी का देशव्यापी प्रदर्शन
सरकार विरोधी रैली में लोगों ने नारे लगाए, ‘शेख़ हसीना वोट चोर हैं’
सरकार से स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से नए चुनाव कराने की मांग
प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प
विपक्ष के कई नेता और प्रदर्शनकारी गिरफ़्तार
14 दिसंबर को अमेरिकी राजदूत की विपक्षी नेता के परिजन से मुलाक़ात
20 दिसंबर को रूसी दूतावास का बयान
रूस और अमेरिका के बीच ट्विटर युद्ध

यूक्रेन को लेकर रूस और अमेरिका तो आमने-सामने हैं हीं, लेकिन अब ऐसा लगता है कि रूस और अमेरिका ने बांग्लादेश में एक दूसरा मोर्चा खोल दिया है.

बुधवार को बांग्लादेश स्थित रूसी दूतावास के आधिकारिक ट्विटर एकाउंट से एक कार्टून पोस्ट किया गया. इस कार्टून के ज़रिए रूस ने अमेरिका और पश्चिमी देशों को निशाना बनाया है.

कार्टून में एक बड़ी चिड़िया को एक पोल के सबसे ऊपर बैठे हुए दिखाया गया है. उसके बग़ल में अमेरिकी झंडा है जिससे पता चलता है कि बड़ी चिड़िया का मतलब यहां अमेरिका से है. अमेरिका के नीचे जो चिड़िया बैठी है उसे ब्रिटेन से दर्शाया गया है, उसके नीचे यूरोपीय संघ और सबसे नीचे यूक्रेन को बैठे हुए दिखाया गया है.

कार्टून में बताने की कोशिश की गई है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ सब मिलकर यूक्रेन पर गंदगी फेंक रहे हैं.

लेकिन इसका अर्थ समझने के लिए हमें यह जानना ज़रूरी है कि बांग्लादेश में पिछले दो हफ़्तों में क्या हुआ है.

क्या है पूरा मामला
बांग्लादेश में प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगियों ने 10 दिसंबर को सरकार के विरोध में प्रदर्शन किया था.

इस दौरान सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों में झड़पें हुईं और सरकार ने विपक्ष के कई नेताओं और प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया.

10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. बांग्लादेश में विपक्ष ने 10 दिसंबर को सरकार विरोधी प्रदर्शन कर यह बताने की कोशिश की थी कि शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार में मानवाधिकार का हनन हो रहा है.

विपक्ष की रैली में मांग की गई कि सरकार स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव करवाए, बढ़ती महंगाई पर क़ाबू पाए और मानवाधिकार हनन के कथित बढ़ते मामलों पर सरकार लगाम लगाए.

हालांकि सरकार का कहना है कि बांग्लादेश में लोगों को अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी है.

बीबीसी से बातचीत में बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन ने कहा कि विपक्ष के सभी आरोप बेबुनियाद हैं.

उनका कहना था, “विपक्ष के इन आरोपों में कोई दम नहीं कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट रहे हैं. 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद एक देश के रूप में बांग्लादेश का गठन ही लोकतंत्र, मानवाधिकार और इंसाफ़ की रक्षा के मक़सद के साथ हुआ था.”

सरकार और विपक्ष का एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप चल ही रहा था कि 14 दिसंबर को बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर डी हास ने विपक्षी पार्टी के एक नेता साजिदुल इस्लाम शुमोन के घर का दौरा किया और वहां उनकी बहन संजीदा से मुलाक़ात की.

साजिद पिछले एक दशक से लापता हैं. अमेरिकी राजदूत जिस समय साजिद के घर पर थे वहां एक भीड़ जमा हो गई.

वहां जमा भीड़ का कहना है कि वे लोग अमेरिकी राजदूत को एक ज्ञापन सौंपना चाहते थे जिनमें उन लोगों का नाम शामिल था जो कि 1977 में बीएनपी के संस्थापक ज़ियाउर रहमान की सरकार की कार्रवाई में मारे गए थे. सुरक्षा कारणों से अमेरिकी राजदूत को फ़ौरन वहां से निकलना पड़ा.

इसके बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने बांग्लादेश के राजदूत मोहम्मद इमरान को बुलाकर राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई.

बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन और गृहमंत्री असदउज़्ज़मा ख़ान का भी बयान आया जिसमें कहा गया कि बांग्लादेश सभी राजनयिकों की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है और 14 दिसंबर को अमेरिकी राजदूत की सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई थी. लेकिन मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ.


रूस की एंट्री

यहां से इस मामले में रूस की एंट्री होती है.

मंगलवार (20 दिसंबर) को बांग्लादेश में स्थित रूसी दूतावास ने एक बयान जारी किया.

इसमें उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों पर ब्लैकमेल करने और दूसरे देशों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया.

Embassy of Russia in Bangladesh
@RussEmbDhaka

RUSSIAN EMBASSY’S STATEMENT ON INTERFERENCE IN DOMESTIC AFFAIRS

रूसी दूतावास ने बयान जारी कर कहा, “दुर्भाग्य से हाल के वर्षों में ख़ासकर शीत युद्ध की समाप्ति के बाद किसी भी देश में हस्तक्षेप नहीं करने के सिद्धांत के उल्लंघन की समस्या बढ़ती जा रही है. वो देश जो ख़ुद को विकसित लोकतंत्र कहते हैं वो ना केवल दूसरे स्वतंत्र देशों के आंतरिम मामलों में हस्तक्षेप करते हैं बल्कि उनको ब्लैकमेल करने और उन पर ग़ैर-क़ानूनी प्रतिबंध लगाते हैं. रूस किसी भी तीसरे देश के अंदरूनी मामलों में नहीं हस्तक्षेप करने के अपने सिद्धांत पर पूरी तरह प्रतिबद्ध है.”

रूस ने अमेरिका या किसी भी देश का नाम नहीं लिया लेकिन उनके बयान से साफ़ है कि उनका निशाना किन देशों पर है. रूस ने अपने बयान में इन देशों को वियना कन्वेंशन का पालन करने और मेज़बान देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचने की अहमियत को भी याद दिलाया.

रूस के इस बयान के जवाब में ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास ने एक ट्वीट कर पूछा कि क्या तीसरे देश में हस्तक्षेप नहीं करने का सिद्धांत यूक्रेन पर भी लागू होता है.

अमेरिकी दूतावास के बाद फिर रूसी दूतावास ने वो कार्टून ट्वीट किया.

रूस और अमेरिका बांग्लादेश में क्या चाहते हैं?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए बांग्लादेश की मौजूदा राजनीति समझना बहुत ज़रूरी है. वहां साल 2008 से शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सत्ता में है.

बांग्लादेश में अब तक यह होता था कि चुनाव के समय एक न्यूट्रल केयरटेकर सरकार होती थी जिसकी देखरेख में चुनाव होता था. शेख़ हसीना ने इस प्रावधान को समाप्त कर दिया.

नतीजा यह हुआ कि 2014 के चुनाव का पूरे विपक्ष ने बहिष्कार कर दिया और अवामी लीग फिर सत्ता में आ गई. अमेरिका समेत कई पश्चिम देशों ने 2014 के चुनाव के कारण बांग्लादेश की आलोचना की लेकिन भारत, रूस और चीन ने शेख़ हसीना का समर्थन किया.

2018 में हुए चुनाव में विपक्ष ने हिस्सा तो लिया लेकिन उस चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ अवामी लीग पर धांधली के गंभीर आरोप लगे.

शेख़ हसीना सरकार पर विपक्ष और मीडिया को प्रताड़ित करने के गंभीर आरोप लगते रहे.

अमेरिका और पश्चिमी देश बांग्लादेश की समय-समय पर आलोचना करते रहे लेकिन भारत, रूस और चीन शेख़ हसीना का साथ देते रहे.

यह सच है कि बांग्लादेश इस समय भारत, रूस और चीन के ज़्यादा क़रीब है लेकिन शेख़ हसीना की सरकार चाहती है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों से उसके संबंध बने रहें.

शेख़ हसीना अब तक संबंधों में संतुलन बनाए रखने में सफल भी रही हैं.

लेकिन यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद स्थिति बदल गई है.

यूक्रेन पर मार्च में संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग में बांग्लादेश ने हिस्सा नहीं लिया था लेकिन फिर उसने संयुक्त राष्ट्र जनरल एसेंबली में रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग की.

अमेरिका में बांग्लादेश के राजदूत रह चुके एम हुमांयू कबीर से मैंने पूछा कि रूस और अमेरिका की इस सक्रियता को कैसे देखा जाए.

‘रूस का बयान ग़ैर-ज़रूरी’
हुमायूं कबीर कहते हैं कि रूस को इस तरह का बयान देने की कोई ज़रूरत नहीं थी.

वो कहते हैं, “यह बांग्लादेश सरकार और अमेरिकी राजदूत के बीच की बात थी और सच कहा जाए तो सरकार भी नहीं अमेरिकी राजदूत और कुछ लोगों के बीच का मामला था. बांग्लादेश के विदेश मंत्री, विदेश सचिव और अमेरिका में हमारे राजदूत ने आश्वासन दिया है कि अमेरिकी राजदूत समेत सभी राजनयिकों की सुरक्षा सरकार की ज़िम्मेदारी है. इसलिए इसमें किसी और देश को हस्तक्षेप करने की या इसका अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोई ज़रूरत नहीं थी.”

राजदूत कबीर के अनुसार बांग्लादेश किसी भी एक ब्लॉक में शामिल नहीं होना चाहता है, बांग्लादेश के सभी देशों से अच्छे संबंध हैं और 1971 में आज़ादी हासिल करने के बाद से यही बांग्लादेश की विदेश नीति रही है.

लेकिन मामला सिर्फ़ 14 दिसंबर की घटना का नहीं है. अमेरिकी राजदूत हास पिछले कई महीनों से सुर्ख़ियों में हैं क्योंकि वो बांग्लादेश में चुनावी पारदर्शिता के लिए अभियान चला रहे हैं.

इसी साल जून में वो बांग्लादेश चुनाव आयोग के दफ़्तर चले गए थे और चुनाव आयुक्त क़ाज़ी हबीबुल अवाल से मुलाक़ात करके कहा था कि बांग्लादेश में पारदर्शी चुनाव होना चाहिए. बांग्लादेश में 2023 के आख़िर में आम चुनाव होने वाले हैं.

यूरोपीय संघ और जापान भी चुनाव को लेकर कई बार बयान दे चुके हैं.

बांग्लादेश का इतिहास
1971- शेख़ मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान बना एक नया देश और नाम रखा गया बांग्लादेश
1972- शेख़ मुजीबुर्रहमान बने प्रधानमंत्री
1975- शेख़ मुजीबुर्रहमान बने राष्ट्रपति लेकिन सैन्य तख़्ता पलट के बाद उनकी हत्या कर दी गई
1977- जनरल ज़िया उर रहमान बने राष्ट्रपति
1982- एक और तख़्ता पलट और जनरल इरशाद सत्ता में आए
1990- जनआंदोलन के बाद जनरल इरशाद सत्ता से हटे
1991- लोकतंत्र की वापसी, जनरल ज़िया उर रहमान की पत्नी ख़ालिदा ज़िया बनीं प्रधानमंत्री
1996- अवामी लगी की सत्ता में वापसी और शेख़ मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख़ हसीना बनी प्रधानमंत्री
2001- ख़ालिदा ज़िया एक बार फिर बनी प्रधानमंत्री
2008- शेख़ हसीना की सत्ता में वापसी और वो अब तक प्रधानमंत्री बनी हुईं हैं
2014- विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया था
2018- चुनाव में विपक्ष ने हिस्सा लिया था लेकिन शेख़ हसीना पर चुनावी धांधली के आरोप लगे थे

जापान के राजदूत ने तो यहां तक कह दिया था कि 2018 के चुनाव में एक रात पहले ही अवामी लीग ने मतपेटियों को भर दिया था.

हसीना सरकार ने इसे पसंद नहीं किया लेकिन सार्वजनिक तौर पर कुछ बोला नहीं था. हालांकि हसीना सरकार और चुनाव आयोग इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से ख़ारिज करते रहे हैं.

बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन के अनुसार अमेरिकी राजदूत की गतिविधियों को लेकर शेख़ हसीना सरकार बहुत ख़ुश नहीं है यह सबको पता है, इसलिए रूस को लगा कि उन्हें कुछ कहने का मौक़ा मिल गया है.

बांग्लादेश की अंदरूनी राजनीति

लेकिन क्या बाहरी शक्तियां बांग्लादेश के मामले में हस्तक्षेप कर रही हैं, इसके जवाब में तौहीद हुसैन कहते हैं, “यह बहुत मुश्किल सवाल है. पश्चिमी देश उस मामले में पहले से बोलते आएं हैं जिन मुद्दों के बारे में उन्हें लगता है कि उन्हें कोई स्टैंड लेना चाहिए.”

तौहीद हुसैन के अनुसार यह बहुत पहले से चला आ रहा है लेकिन चुनाव के क़रीब आने से कई देश ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं.

ढाका यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार प्रोफ़ेसर तंज़ीमउद्दीन ख़ान ने बीबीसी बांग्ला के संवाददाता अकबर हुसैन से बातचीत के दौरान कहा कि रूस ने बांग्लादेश के मामले में अमेरिका के ख़िलाफ़ स्टैंड लिया, इसके दो कारण हो सकते हैं.

उनके अनुसार पहला कारण आर्थिक है. रूस बांग्लादेश के रूपपुर में परमाणु प्लांट बना रहा है.

प्रोफ़ेसर तंज़ीमउद्दीन ख़ान आगे कहते हैं, “रूस के बांग्लादेश की मौजूदा सरकार को समर्थन करने का एक राजनीतिक कारण यह है कि रूस में ख़ुद एक तरह की तानाशाही सरकार है वो दूसरी जगहों पर भी तानाशाही का समर्थन कर रहा है.”

प्रोफ़ेसर तंज़ीमउद्दीन ख़ान के अनुसार इसके लिए सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय राजनीति को ज़िम्मेदार ठहराना सही नहीं है और बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति भी इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है.

वो कहते हैं, “सबसे ज़्यादा दुख की बात यह है कि हमारे राजनीतिक दल, जो सत्ता में हैं वो भी और जो सत्ता हासिल करना चाहते हैं वो भी शक्तिशाली विदेशी ताक़तों से समर्थन हासिल करना चाहती हैं.”

इन सब में भारत कहां है?
भारत और बांग्लादेश के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं. 1971 में उस समय के पूर्व पाकिस्तान में सशस्त्र आंदोलन कर रही मुक्ति सेना की भारतीय सेना ने मदद की और पाकिस्तानी सेना को हराया. 16 दिसंबर को ढाका के पतन के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ.

बांग्लादेश के पिता कहलाने वाले शेख़ मुजीबुर्रहमान की पार्टी अवामी लीग का भारत से इसी कारण विशेष संबंध है. शेख़ मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख़ हसीना उस ऐतिहासिक रिश्ते को आगे बढ़ा रही हैं.

2008 में सत्ता में आने के बाद शेख़ हसीना ने कई ऐसे फ़ैसले किए जिनसे भारत और बांग्लादेश के संबंधों में काफ़ी प्रगति हुई है

बांग्लादेश और भारत के समीकरण
शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग ऐतिहासिक कारणों से भारत के बहुत क़रीब रही है
ख़ालिदा ज़िया की बीएनपी भारत विरोधी मानी जाती रही है
बीएनपी की सरकार के दौरान चीन से संबंध बेहतर रहे हैं
चीन ने पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में काफ़ी निवेश किया है
उधर अमेरिका भी बांग्लादेश को सामरिक दृष्टि से अहम समझता है
पड़ोसी होने के नाते बांग्लादेश की हर घटना का सीधा असर पड़ता है

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में चरमपंथी गतिविधियों में शामिल कई संगठनों के वरिष्ठ नेता बांग्लादेश में पनाह लिए हुए थे. उन्हें बीएनपी सरकार के समय पूरी छूट हासिल थी. लेकिन शेख़ हसीना ने उन सभी चरमपंथियों को पकड़ कर भारत के हवाले कर दिया.

पूर्व राजनयिक तौहीद हसन के अनुसार अमेरिका और चीन ने बांग्लादेश के लिबरेशन वॉर में पाकिस्तान का साथ दिया था लेकिन आर्थिक कारणों से चीन और बांग्लादेश के संबंध हाल के वर्षों में बहुत अच्छे हो गए हैं. चीन ने वहां भारी निवेश किया है.

पश्चिम बंगाल के जाधवपुर यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्यापक प्रोफ़ेसर इमानकल्याण लाहिड़ी कहते हैं कि शेख़ हसीना का सत्ता में बना रहना भारत के लिए ज़्यादा बेहतर है.

बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, “अमेरिका और पश्चिमी देश जिस तरह से यूक्रेन में हस्तक्षेप कर रहें हैं उसी तरह से वो दक्षिण एशिया में हस्तक्षेप करना चाहते हैं. इसीलिए वो विपक्ष (बीएनपी) की मदद कर रहा है. यह भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए अच्छा नहीं है.”

भारत की नीति
उनके अनुसार ख़ालिदा ज़िया की अध्यक्षता वाली बीएनपी की सरकार (1991-96, 2001-2006) के समय भारत और बांग्लादेश के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे.

लेकिन वहां निष्पक्ष चुनाव हो और मानवाधिकार का ख़याल रखा जाए क्या एक मित्र देश और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते क्या यह भारत की नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं हैं, इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर लाहिड़ी कहते हैं, “भारत भी चाहता है कि वहां निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव हों लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों के बजाए यह दबाव या सलाह भारत की ओर से बांग्लादेश को दिया जाना चाहिए.”

वो कहते हैं कि जमात-ए-इस्लामी जैसे भारत विरोधी संगठन और दूसरी चरमपंथी संगठनों से मुक़ाबला करना भी भारत की ज़िम्मेदारी है.

उनके अनुसार, अगर आने वाले आम चुनाव में बीएनपी जीत जाती है तो पश्चिमी देशों के साथ-साथ चीन का भी हस्तक्षेप बढ़ेगा.

लेकिन भारत यह कैसे तय कर सकता है कि किसी देश में कौन सी पार्टी जीते या हारे, इसका जवाब देते हुए प्रोफ़ेसर लाहिड़ी कहते हैं, “जो भी जीतकर आएगा भारत को उसी से बातचीत करनी होगी लेकिन अगर शेख़ हसीना हार जाती हैं बांग्लादेश में ख़ून-ख़राबे के इतिहास को देखते हुए भारत को उनको सुरक्षा देना चाहिए.”

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इक़बाल अहमद
बीबीसी संवाददाता