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बिहार के उप मुख्यमंत्री @yadavtejashwi ने कहा- प्राइवेट सेक्टर में भी रिज़र्वेशन लाएँगे!

Shyam Meera Singh
@ShyamMeeraSingh
बिहार के उप मुख्यमंत्री
@yadavtejashwi
ने कहा है कि वे प्राइवेट सेक्टर में भी रिज़र्वेशन लाएँगे। मुझे लगता है इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। समावेशी विकास के लिए प्राइवेट सेक्टर में भी प्रतिनिधित्व की तरफ़ बढ़ना चाहिए। मीडिया में बहुत एवरेज लोगों को भी नौकरियों मिल जाती हैं। लेकिन यादवों, दलितों को बहुत मुश्किल होती है। मिलती भी है तो उन्हें जो बहुत अधिक बोलते नहीं। अगर वे अपने राजनीतिक विचार ज़ाहिर कर दें तो उनके लिए दरवाज़े लगभग बंद हो जाते हैं। कुछ लोग सवाल करते हैं कि क्या आरक्षण प्राप्त डॉक्टर से इलाज करवाओगे? तो मेरा जवाब ये है दोस्त अपने देशवासियों, भाइयों पर विश्वास करना सीखो। इस तरह का सवाल पूर्वाग्रह से ही भरा नहीं हुआ बल्कि घोर जातिवादी और नस्लवादी है। जो इस विचार पर आधारित है कि दलित और पिछड़े वर्ग के लोग कमतर हैं और आप अधिक योग्य हैं। ऐसे विचार अगर आपके दिल में हैं तो आप इस देश की एकता और समावेशी विकास के विरोधी हैं। और घोर नस्लवादी और इग्नोरेंट तो आप हैं हीं।

प्राइवेट क्षेत्र में आरक्षण आने से अलग अलग वर्गों के लोग आगे आ सकेंगे। अलग अलग विचार आएँगे। अलग अलग स्किल आएँगे। अलग अलग वर्गों में संपन्नता आएगी। जो अभी तक एकरूपी हैं। जहां विविधता होती है वहाँ अधिक स्थायित्व आता है।

सवाल नौकरियों के क्रिएशन पर होना चाहिए। और इस पर भी कि हमारा कोई भाई पीछे नहीं छूटे। प्राइवेट सेक्टरों से लेकर शैक्षिक जगत में अभी बहुत अधिक भेदभाव और पूर्वाग्रह व्याप्त हैं। उन्हें कुछ कम करने के लिए प्राइवेट सेक्टर में रिज़र्वेशन एक बेहतर कदम है।

सिर्फ़ दलित पिछड़ों को ही नहीं मुस्लिम वर्ग और महिलाओं को भी बराबर प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्थाएँ होनी चाहिए। मुस्लिमों की हालत वर्तमान में किसी भी वर्ग से अधिक नाज़ुक है। लेकिन उनके आरक्षण को बहुसंख्यक समाज पूर्वाग्रह से देखता है। ये सही नहीं है। इस देश में बराबरी और समावेशिता लाने के लिए सबको साथ लेने का भाव होना चाहिए। सिर्फ़ अपने अधिकारों की बात करने और दूसरे के अधिकारों से मुँह मोड़ लेने से न्याय सुनिश्चित नहीं होगा।

न्याय वही है जो एक एक व्यक्ति को बराबरी और प्रतिनिधित्व का अधिकार दे।

डिस्क्लेमर : लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है, लेख सोशल मीडिया से प्राप्त हैं