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बीजेपी के जिन नेताओं के दामन पर दाग़ और भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं उन बीजेपी नेताओं पर कार्रवाई नहीं, क्यों?

बीजेपी के जिन नेताओं के दामन पर दाग और भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं उनमें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के अलावा असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा कर्नाटक के ही रेड्डी बंधु शामिल हैं. रेड्डी बंधुओं पर तो 16 हजार करोड़ से ज्यादा के खनन घोटाले में शामिल होने का आरोप है.

हिमंता बिस्वा सरमा के कांग्रेस में रहते बीजेपी ने उन पर अमेरिकी कंपनी लुइस बर्गर को ठेके सौंपने के आरोप लगाए थे. उनके बीजेपी में शामिल होते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

बहुचर्चित व्यापम घोटाले का अब कहीं जिक्र भी नहीं होता. सीबीआई इस मामले में शिवराज सिंह चौहान को क्लीन चिट दे चुकी है. इसी तरह उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और शिवसेना नेता नारायण राणे के खिलाफ भी कई मामले थे. लेकिन राणे के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब उनके खिलाफ मामलों की चर्चा नहीं होती.

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, “दोनों केंद्रीय एजेंसियों की हाल की कार्रवाइयों से साफ है कि बीजेपी और गैर-बीजेपी दलों के नेताओं के खिलाफ जांच के मामले में उनका रवैया अलग-अलग है. यही वजह है कि विपक्ष इन एजेंसियों के कामकाज को राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप लगा रहा है.”

विपक्षी दल साझा स्वर में केंद्र सरकार पर इन एजेंसियों के राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप लगा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला, कांग्रेस प्रमुख सोनिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी और उनके करीबी मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी जैसे मामलों ने विपक्ष को इन एजेंसियों के साथ केंद्र और बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने का मौका दे दिया है.

विपक्ष के खिलाफ मुहिम
विपक्षी दलों का सवाल है कि क्या यह महज संयोग है कि इन दोनों एजेंसियों की सबसे ज्यादा सक्रियता उन मामलों में ही देखने को मिल रही है जिसमें गैर-बीजेपी दलो के नेता या मंत्री शामिल हैं? क्या यह भी संयोग है कि पार्टी बदल कर बीजेपी का दामन थामने वाले दागी नेताओं के मामले में इन एजेंसियों की धार कुंद पड़ जाती है?

हाल के कई मामलों को ध्यान में रखें तो विपक्ष के आरोपों में दम नजर आता है. तो फिर विपक्ष इन एजेंसियों के खिलाफ अदालत की शरण में क्यों नहीं जाता? बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “इन एजेंसियों को विपक्ष के खिलाफ हथियार बनाने की केंद्र व बीजेपी की मंशा किसी से छिपी नहीं है. लेकिन इस मामले में अदालतें भी कुछ काम नहीं कर सकतीं. इसलिए उनकी शरण में जाना समय की बर्बादी है. इसका मुकाबला राजनीतिक तौर पर ही किया जा सकता है.”

केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर रहे नेताओं की सूची काफी लंबी है. फारुख अब्दुल्ला से मनी लांड्रिंग मामले में पूछताछ के बाद उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है. नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से लंबी पूछताछ हो चुकी है. इसके खिलाफ बीते सप्ताह कांग्रेस और साझा विपक्ष ने बयान जारी कर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया था. तीन साल पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार को भी ईडी ने समन भेजा था. हाल में शिवसेना सांसदों संजय राउत और अनिल परब से भी पूछताछ की गई है. आम आदमी पार्टी (आप) के सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में ईडी की हिरासत में हैं.