साहित्य

बुढ़ापे का दर्द——-और—-‐—-खुशियों की तलाश….ये भगवान का शुक्र है…!


Prem Bansal
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बुढ़ापे का दर्द———–‐—-
रामादेवी मेरी मित्र नहीं है पर पास के ही फ्लैट में रहती हैं। कभी-कभी रास्ते में मिल जाती हैं। अक्सर नमस्ते, कैसे हो? बच्चे कैसे हैं? तक ही उनसे मेरी दोस्ती है। उनके घर में उनका इकलौता पुत्र और पुत्रवधू है। उनकी स्वयं की उम्र करीब 65 वर्ष। 2 दिन पूर्व ही मुझे रास्ते में मिली नमस्ते के बाद मैंने अपनी आदतानुसार कहा और बच्चे ठीक हैं? उन्होंने खिन्नता भरे शब्दों में कहा कैसे बच्चे किसके बच्चे? मैं हतप्रभ थी। ऐसे उत्तर की कल्पना नहीं की थी। मैंने पूछा क्या हुआ कैसे परेशान हो? उन्होंने मुझे अपने घर चलने का आग्रह किया मैं टाल नहीं पाई।

उनकी कहानी उनके ही शब्दों में—– मेरे पति की मृत्यु आज से 13 वर्ष पूर्व 55 वर्ष की आयु में ही हो गई थी, सरकारी नौकरी थी उनकी। पढ़ी-लिखी होने के बावजूद मैंने उनकी नौकरी अपने पुत्र को दिलवा दी थी। फंड के करीब 40, 42 लाख मिले।

मैंने पुत्र का विवाह किया साथ ही 30,00000 में यह फ्लैट खरीदा। पुत्र की सैलरी 70,000 है। करीब 6 महीने से उसका व्यवहार काफी बदल गया था, बार-बार कहता था माँ तुम्हे पेंशन के 24,000 मिलते हैं वह हमें क्यों नहीं देती? आप का खर्चा है ही क्या ? रोटी तो हमारे पास खा ही रही हो, कपड़े वगैरा भी हम दिलवा देंगे। मैंने कहा कि मैं पेंशन नहीं दूंगी मेरे भी खर्च है। पीहर जाती हूँ , मंदिर वगैरह में भी जाती हूं, थोड़ा बहुत खर्च करना पड़ता है। और फिर तुझे 70,000 मिलते हैं, मैं तो तुझ से कभी नहीं मांगती। कुछ दिन बाद बेटा धमकी देने लगा “हम चले जाएंगे कहीं और। देखते हैं बुढ़ापे में कौन देखेगा तुम्हे?मैंने भी दिल पर पत्थर रख लिया, होगा जो देखा जाएगा। कल ही सामान लेकर किराए के फ्लैट में चला गया। वहाँ ₹10,000 महीना देना मंजूर है, पर एक मां को रोटी देना भारी पड़ गया। कोई किसी का नहीं है सब स्वार्थी है। मैंने भी बाई (दीदी) लगा ली है। 5000 महीने लेगी,सब काम करेगी, मैं क्यों सुनूं उनकी। साथियों मुझे लग रहा है बुजुर्ग महिला ने सही किया। आपकी क्या राय है?


Sukhpal Gurjar
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एक महिला की आदत थी कि वह हर रोज रात में सोने से पहले अपनी दिन भर की खुशियों को एक काग़ज़ पर लिख लिया करती थीं।
एक रात उसने लिखा…”मैं खुश हूं कि मेरा पति पूरी रात ज़ोरदार खर्राटे लेता है क्योंकि वह ज़िंदा है और मेरे पास है ना…भले ही उसकी खर्राटो की आवाज़ मुझें सोने नहीं देते…ये भगवान का शुक्र है”…!

“मैं खुश हूं कि मेरा बेटा सुबह सवेरे इस बात पर झगड़ता है कि रात भर मच्छर-खटमल सोने नहीं देते यानी वह रात घर पर गुज़रता है, आवारागर्दी नहीं करता…इस पर भी भगवान का शुक्र है”…!

“मैं खुश हूं कि हर महीना बिजली, गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का अच्छा खासा टैक्स देना पड़ता है, यानी ये सब चीजें मेरे पास, मेरे इस्तेमाल में हैं ना… अगर यह ना होती तो ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती…? इस पर भी भगवान का शुक्र “…..!

“मैं खुश हूं कि दिन ख़त्म होने तक मेरा थकान से बुरा हाल हो जाता है….यानी मेरे अंदर दिनभर सख़्त काम करने की ताक़त और हिम्मत सिर्फ ऊपरवाले के आशीर्वाद से है”…!

“मैं खुश हूं कि हर रोज अपने घर का झाड़ू पोछा करना पड़ता है और दरवाज़े -खिड़कियों को साफ करना पड़ता है शुक्र है मेरे पास घर तो है ना… जिनके पास छत नहीं उनका क्या हाल होता होगा…?इस पर भी भगवान का शुक्र है”…!

“मैं खुश हूं कि कभी कभार थोड़ी बीमार हो जाती हूँ यानी कि मैं ज़्यादातर सेहतमंद ही रहती हूं।इसके लिए भी भगवान का शुक्र है”..!
“मैं खुश हूं कि हर साल दिवाली पर उपहार देने में पर्स ख़ाली हो जाता है यानी मेरे पास चाहने वाले मेरे अज़ीज़ रिश्तेदार, दोस्त हैं जिन्हें उपहार दे सकूं…अगर ये ना हों तो ज़िन्दगी कितनी बे रौनक हो…?इस पर भी भगवान का शुक्र है”…..!

“मैं खुश हूं कि हर रोज अलार्म की आवाज़ पर उठ जाती हूँ यानी मुझे हर रोज़ एक नई सुबह देखना नसीब होती है…ज़ाहिर है ये भी भगवान का ही करम है”…!

जीने के इस फॉर्मूले पर अमल करते हुए अपनी भी और अपने से जुड़े सभी लोगों की ज़िंदगी संतोषपूर्ण बनानी चाहिए…..छोटी-छोटी परेशानियों में

खुशियों की तलाश..

खुश रहने का अजीब अंदाज़…औऱ हर हाल में खुश रहने की कला ही जीवन है…….!!
‘दोस्त, कठिन है यहाँ किसी को भी
अपनी पीड़ा समझाना…दर्द उठे, तो सूने पथ पर पाँव बढ़ाना, चलते जाना…बस चलते जाना !!’ 🚩🙏😊