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बैटरी सबसे पहले भारत मे बनी 🌷महर्षि अगस्त ने सबसे पहले बैटरी बनाई थी, उसका फ़ार्मूला ये है!

Udayan Mahant
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बैटरी सबसे पहले भारत मे बनी। 🌷
बैटरी बनाने की जो विधि है,जो आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार कर रखी है,वो महर्षि अगस्त द्वारा दी गयी विधि है।
महर्षि अगस्त ने सबसे पहले बैटरी बनाई थी और उसका विस्तार से वर्णन भी किया है अगस्तसंहिता मे। पूरा बैटरी बनाने की विधि या तकनीक उन्होंने दी है.माने जो सभ्यता बैटरी बनाना जानते हो वो विद्युत् के बारे मे भी जानते होंगे क्योंकि बैटरी ये ही करता है, कर्रेंट फ्लो के लिए ही हम उसका उपयोग करते है। ये अलग बात है के वो डायरेक्ट करेंट है और आज की दुनिया मे हम जो उपयोग करते है वो अल्टरनेटिव करेंट है। लेकिन डायरेक्ट कर्रेट का सबसे पहले जानकारी दुनिया को हुई तो वो भारत मे महर्षि अगस्त को ही है।

अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैः
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercuryamalgamated zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।

यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।

अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैः
अनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।

फिर लिखा गया हैः
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।
अर्थात् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।


Sarvesh Kumar Tiwari
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भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किये गए युद्धों के बारे में पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि उन्होंने अधिकांश युद्ध तब किया, जब किसी ने उनपर आक्रमण किया था। उन्होंने कभी भी स्वयं आगे बढ़ कर किसी पर युद्ध थोपने का प्रयास नहीं किया था। शायद यही कारण है कि सभ्यता उन्हें शान्तिदूत के रूप में स्मरण रखती है।
पर रुकिये! एक युद्ध उन्होंने स्वयं आगे बढ़ कर किया था, और वह युद्ध था दैत्य नरकासुर के विरुद्ध। नरकासुर पर श्रीकृष्ण का कोप इतना अधिक था कि जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उसका वध किसी स्त्री के हाथों ही सम्भव है, तो वे स्वयं अपनी पत्नी देवी सत्यभामा को युद्धभूमि में ले गए, पर उसका वध कर के ही रुके।

जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? नरकासुर ने ऐसा क्या अपराध किया था कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सामान्य व्यवहार के विपरीत जा कर उसके राज्य पर आक्रमण किया? नरकासुर का अपराध यह था कि वह बालिकाओं पर अत्याचार करता था। उसने असँख्य कुमारियों का अपहरण किया था।

बल या छल से किसी कन्या की इच्छा के विपरीत उनका अपहरण करना और उनसे जबरन राक्षस विवाह करना एक ऐसा अपराध है जिसके लिए कभी क्षमा नहीं मिल सकती। ऐसे दुराचारियों का वध होना ही न्याय होता है। यही भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा है।

नरकासुर का भगवान श्रीकृष्ण से कोई सीधा बैर नहीं था। उसने उनका कुछ अहित नहीं किया था। पर उस अत्याचारी के अंत के लिए उन्होंने कोई कारण ढूंढने की आवश्यकता नहीं समझी। इसे उन्होंने अपना सामाजिक कर्तव्य माना और निकल पड़े।
अब प्रश्न यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को पूजने वाला समाज उनसे निर्णय लेना कब सीखेगा? हाथ में कलावा और गले में रुद्राक्ष पहन, गलत पहचान के साथ हिन्दू बालिकाओं को छल से फँसाने निकले ये ट्रेंड आतंकी नरकासुर के ही कलियुगी स्वरूप हैं। कृष्ण के भक्त ऐसे आतंकियों को पत्थर मारना कब सीखेंगे?
लड़कियां यदि फँस जाती हैं तो जीवन भर घुट घुट कर मरती हैं। कुछ तो दो चार वर्ष तक बलात्कार की पीड़ा भोगने के बाद काट कर फेंक दी जाती हैं। और जो नहीं फँसती उन्हें राह चलते चाकुओं से गोद कर मार दिया जाता है। और दुर्भाग्य यह कि भारतीय लोकतंत्र के यशश्वी वोटर चाकू मारते देखते हैं और आगे बढ़ कर निकल जाते हैं। और वही चुपचाप निकल जाने वाले कायरों की फौज इधर उधर कहती मिल जाती है कि लड़की इसी लायक थी, अच्छा हुआ जो मर गयी…
एक लड़की जो केवल इसलिए मार दी जाती है कि वह किसी राक्षस के जाल में फँसना नहीं चाहती, क्या उसकी हत्या जायज है? अपनी कायरता छुपाने के लिए कितने अधम तर्क गढ़ेंगे लोग?

इस आतंक के विरुद्ध सोशल मीडिया में होने वाली चर्चा अभी पूरी नहीं है। यह सच है कि अब भी टीन एज की अधिकांश बच्चियों को इस आतंक के बारे में किसी ने बताया नहीं होता है। और यदि दो लोग बताने वाले होते हैं तो दर्जनों यह कहने वाले भी होते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता, यह सब प्रोपगेंडा है। फिर वे कैसे बचेंगी?

साक्षी और साक्षी जैसी अन्य लड़कियों की हत्या पर हल्ला होना ही चाहिये। तबतक होना चाहिये, जबतक हर लड़की यह जान न जाय कि उसकी ओर बढ़ने वाला हर विधर्मी नरकासुर ही है। तभी हल निकलेगा। इस शहरी हो चुके समाज से श्रीकृष्ण की तरह आक्रमण की आशा तो नहीं ही है मुझे…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।