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ब्राज़ील के सिनेमा का इतिहास : ब्राज़ील का आधुनिक सिनेमा

डॉ. विजय शर्मा

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दुनिया के अन्य देशों की भांति ब्राजील के लोगों को भी जल्द ही सिनेमा का चस्का लग गया। तीस के दशक में वहां के छोटे-छोटे शहरों में सिनेमा थियेटर थे और वे मजे में हॉलीवुड की फिल्में दिखा रहे थे। भौगोलिक और जनसंख्या की दृष्टि से लैटिन अमेरिका के इस सबसे बड़े देश ब्राजील में वैसे तो लुमियर भाइयों के पेरिस शो के छ: महीने बाद ही फिल्म दिखाई गई। जल्द ही 1898 में वहां फिल्में बनने लगीं।

फ्रांस में नवअन्वेषित ‘सिनेमाटोग्राफ’ का प्रदर्शन 1896 में रिओ-ड-जानेरिओ में हुआ। शीघ्र ही इस तिपाई पर रखे लकड़ी के बक्से से लघु चलचित्रों का प्रदर्शन किया जाने लगा। 1908 में यहां पहली बॉक्स ऑफिस फिल्म बनी। इस फिल्म का नाम था ‘एस्ट्रान्गुलाडोर्स’ था जिसमें अपराधियों के गलत होते चले जाने को दिखाया गया था और जिसे देखने के लिए दर्शक टूट पड़े। 35 मिनट की इस फिल्म ने ब्राजील में क्राइम ड्रामा की नींव डाल दी। अखबार की सुर्खियों से कथानक उठा कर फिल्म बनने लगीं।

शुरू में, मूक फिल्मों के दौर में वहां भी ज्यादातर न्यूजरील और डॉक्यूमेंट्री बन रही थी। लेकिन कुछ लोग फीचर फिल्म भी बना रहे थे। 1908-1912 का काल ब्राजील सिनेमा का स्वर्णयुग कहलाता है। इस समय प्रतिवर्ष 100 शॉर्टफिल्म बन रही थीं। फिर यह उद्योग उत्तरी अमेरिका के व्यापारियों के हाथ में चला गया।

दक्षिण अमेरिका में शुरू से ब्राजील का सिनेमा विविधतापूर्ण, आश्चर्यजनक तथा प्रयोगात्मक रहा है। जब सिनेमा सवाक हुआ तो ब्राजील में भी भाषा की समस्या हुई। अधेमर गोन्जागा ने रिओ में ‘सिनेडिआ स्टुडिओ’ की स्थापना की, यहां ब्राजील की अपनी पहचान की, म्युजिकल, ब्राजील के कॉमिक थियेटर तथा कार्नीवाल को मिश्रित कर फिल्में बनने लगीं।

कारमेन मिरान्डा इस दौर की प्रसिद्ध सिने तारिका थी, परंतु वह शीघ्र ही हॉलीवुड चली गई। इस बात से ब्राजील में खूब हलचल मची। 1943 में मोआसिर फेनेलोन ने ‘अटलान्टिडा स्टुडियो’ बनाया जहां ओसकारिटो तथा ग्रैन्ड ओटेलो की एक कॉमिक टीम विकसित हुई।

इसके पहले 1930 में एक 18 साल के लड़के मारिओ पिशोतो ने ‘द बाउंड्री’ बना दी, जो उस समय तो उतनी नहीं सराही गई, पर आज उसकी गिनती ब्राजील की 30 प्रमुख फिल्मों में होती है। इसी तरह लीमा बैरेटो निर्देशित फिल्म ‘द बैन्डिट’ ने बॉक्सऑफिस पर खूब सफलता पाई। 1953 की इस फिल्म को 22 देशों में दिखाया गया था।


ब्राजील में सिनेमा नोवो
इटली के नव यथार्थवादी तथा फ्रांस की नव लहर फिल्मों की चाल पर ब्राजील में सिनेमा नोवो बना। नेल्सन परेरा डोस सैन्टोस को इस आंदोलन का जनक और पोप कहा जाता है। कम बजट, लोकेशन पर शूटिंग, गैर पेशेवर अभिनेता सिनेमा नोवो की विशेषताएं थीं।

‘हाऊ टेस्टी वाज माई लिटिल फ्रैंचमैन’, ‘द गॉड एंड द डेड’ (निर्देशन: गुरेरा), ‘एंटोनिओ डास मोर्टेस’ (ग्लौबेर रोसा) ऐसी ही फिल्में हैं। ग्लौबेर को ब्राजील का सबसे महान निर्देशक का दर्जा हासिल है। उसने 1962 में अपनी पहली फिल्म ‘द टर्निंग विन्ड’ बनाई थी। यह फिल्म अफ्रो-ब्राजील मछुआरों के समुदाय की कहानी कहती है, साथ ही मछली पकड़ने की नई और पुरानी पद्धति को प्रस्तुत करती है।

‘द बिग सिटी’, ‘लैंड इन एन्गुइश’ इस समय की अन्य प्रमुख फिल्में हैं। ‘लैंड इन एन्गुइश’ एक राजनैतिक फिल्म है, यह ब्राजील समाज में कलाकार की भूमिका को रेखांकित करती है।

अस्सी के दशक का सिनेमा
सत्तर और अस्सी के दशक में ब्राजील में खूब सारी अच्छी फिल्में बनीं। ब्रूनो बेरेटो की 1980 की फिल्म ‘डोना फ्लोर एंड हर टू हजबैंड्स’ ने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई की। इस फिल्म ने सोनिया ब्रागा को सिने-जगत में स्थापित कर दिया। इसी समय एना कारोलीना ने ‘सी ऑफ रोजेज’, सुजाना एमराल ने ‘द आवर ऑफ द स्टार’ तथा टिजुका यामासाकी ने ‘गैजिनीए: ए ब्राजीलियन ओडिसी’ बनाई। इस तरह सिने-संसार को तीन नायाब महिला निर्देशक प्राप्त हुईं।

इस बीच ब्राजील में वीडियो उपकरणों की सहायता से खूब सारी शॉर्ट फिल्म भी बनीं। फिर आना मुय्लएर्ट ने ‘स्मोक गेट्स इन योर आईज’, ‘द सैकेंड मदर’ तथा ‘डुर्वाल रिकॉर्ड्स’ बनाई। मगर 1989 में ब्राजील सिने उद्योग का भट्टा बैठ गया मात्र 25 फीचर फिल्म वहां बनीं।

अगले साल मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर को बंद कर दिया गया। रातों रात ब्राजील फिल्म उद्योग भहरा गया। 1991 में केवल 9 फीचर फिल्में बनीं और उसके अगले साल मात्र 6। मगर 1998 में फिल्मों का भाग्य फिर पलटा और साल में 40 फीचर फिल्में बनीं।

1997 में ब्रूनो बेरेटो ने ‘फोर डेज इन सेप्टेम्बर’ बनाई जिसमें ब्राजील के गुरिल्ला फाइटर्स अमेरिकी राजदूत का अपहरण कर लेते हैं, राजदूत का जीवन अधर में लटका हुआ है। सरकार सहायता को राजी नहीं है। अपहरणकर्त्ता बदले में 15 राजनैतिक कैदियों को रिहा कराना चाहते हैं।

अगले साल वॉल्टर सैलेस के निर्देशन में ‘सेंट्रल स्टेशन’ आई। इस फिल्म ने बर्लिन फिल्म समारोह में गोल्डेन बेयर जीता। यह फिल्म एक स्कूल टीचर तथा एक युवक की भावात्मक कहानी है। स्कूल टीचर अनपढ़ लोगों के लिए पत्र लिखता है और लड़के की मां हाल में गुजर गई है। दोनों मिल कर लड़के के पिता को खोज रहे हैं जिसे उन लोगों ने देखा नहीं है। इसमें फेर्नान्डा मोन्टेनेग्रो, विनिसिउस डे ओलिवेइरा, मैरिलिआ पेरा ने मुख्य भूमिकाएं की हैं।

ब्राजील का आधुनिक सिनेमा
नई सदी ब्राजील के सिनेमा के लिए बड़ी मुफीद साबित हुई है। आज विश्व, ब्राजील सिनेमा की चर्चा करता है और वहां बनी फिल्मों का बेसब्री से इंतजार करता है। 2002 में बनी फेर्नान्डो मेरेल्लेस तथा कैटिआ लैंड द्वारा निर्देशित ‘सिटी ऑफ गॉड’ ने कमाल कर दिया। इसमें दो लड़के बिल्कुल भिन्न राहों पर चल रहे हैं। इस हार्डहिटिंग थ्रिलर ने 4 ऑस्कर का नामांकन पाया, तरह-तरह के 75 पुरस्कार जीते। एलैक्जेंडर रोड्रिक, लीनड्रो फर्मीनो ने गजब का अभिनय किया है। यह फिल्म अवश्य देखी जानी चाहिए।

नोबेल पुरस्कृत साहित्यकार होसे सारामागो के उपन्यास पर आधारित ‘ब्लाइंडनेस’ फिल्म भी फेर्नान्डो मेरेल्लेस ने 2008 में निर्देशित की। 121 मिनट की इस फिल्म में एक विचित्र बीमारी शहर को घेर लेती है। यह अंधत्व है, मगर श्वेत अंधत्व है। इसमें मुख्य भूमिकाएं जुलिआन मूर, मार्क रुफैलो, एलिस बर्गा ने की हैं। इस फिल्म को 15 पुरस्कार प्राप्त हुए।

आज ब्राजील में करीम ऐनौज (‘मैडम साटा’, ‘दि इनविजिबल लाइफ ऑफ एउरिडिस गुनाओ’), क्लेबर मेन्डैम फिल्हो (‘नेबरिंग साउंड’, ‘इक्वारियस’), गुटो परेन्टे (‘कैनिबाल क्लब’, ‘एंड इन्फेर्निन्हो’), जुलिआनो डोर्नेल (‘कोल्ड ट्रॉफीज’) जैसे कई निर्देशक सक्रिय हैं। इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में ब्राजील के दर्शक और विश्व सिने-दर्शक बेसब्री से ब्राजील से आने वाली फिल्मों का इंतजार करते हैं।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए तीसरी जंग हिंदी उत्तरदाई नहीं है।

 

all pics are from brazilian movie ”BOCA”