कुछ महिने पहले ब्रिटैन के प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आये थे, वो गुजरात में बुलडोज़र की सवारी करते, फोटो खिंचवाते नज़र आये थे, ये वो समय था जब भारत में एक समुदाय को निशाना बना कर उनके घरों पर बुलडोज़र चलाया जा रहा था, बोरिस जॉनसन उस वक़्त गुजरात में बुलडोज़र की सवारी करते नज़र आये थे, उसके बाद उनकी अंतरष्ट्रीय मंच पर आलोचना हुई थी, ब्रिटैन के विपक्षी नेताओं ने उन की इस हरकत के लिए आलोचना की थी
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने दिया इस्तीफ़ा, क्या भारतीय मूल का नेता बनेगा यूके का अगला पीएम?
ब्रिटेन में जारी राजनीतिक उठापटक के बीच आख़िरकार बोरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, ब्रिटेन में लंबी जद्दोजहद के बाद बोरिस जॉनसन ने आख़िरकार अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। इससे पहले ख़बर आई थी कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने गुरुवार को कंज़रवेटिव पार्टी के मुखिया के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार नए नियुक्त किए गए मंत्रियों ने भी उनका साथ छोड़ दिया था और उनकी कैबिनेट से 50 से अधिक सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया था। इनमें 8 मंत्री और दो सेक्रेट्री ऑफ स्टेट ने पिछले 2 घंटों में इस्तीफा दिया। इससे जॉनसन बेहद अलग-थलग पड़ गए और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, जॉनसन को अब बाग़ी नेताओं की मांग के आगे झुकना पड़ा और बाद में घोषणा की कि वह इस्तीफा दे रहे हैं। कंज़रवेटिव पार्टी बहुमत से जीती थी इस कारण इस पार्टी के नेता को ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री के पद पर रहने का अधिकार होता है।
ऋषि सुनक भारतीय मूल ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद के दावेदार
वहीं दूसरी ब्रिटेन में जारी राजनीतिक खींचतान के बीच चर्चा है कि बोरिस जॉनसन के इस्तीफ़े के बाद ऋषि सुनक इस देश के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं। बताते चलें कि ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं और अगर वह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह पहले भारतीय होंगे जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनेंगे। बता दें कि हाल ही में उन्होंने वित्त मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था।
चर्चिल के नक़्शे क़दम पर चलने की कोशिश और ट्रम्प सा अंजाम…जान्सन की घातक ग़लतियां जो उन्हें राजनैतिक पाताल में ले गईं
ब्रितानी अपनी ख़ास तसवीर बनाने में कामयाब हुए उनके चर्चे ब्रिटेन से बाहर तक फैले। उनका ख़ास हेयर स्टाइल और बेतुके बयान उन्हें अलग पहचान दिलाने में सफल रहे।
उनकी क़िस्मत ने साथ दिया और अमरीका में ट्रम्प जैसे व्यक्ति को वाइट हाउस में जगह मिली। बहुत से लोग जान्सन को छोटा ट्रम्प कहते थे। वैसे दोनों में बुनियादी फ़र्क़ भी हैं। जान्सन का क़लम अच्छा है और वे प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके लेख काफ़ी पढ़े जाते थे।
जान्सन और ट्रम्प की समानताओं की बात करें तो एक समानता यह थी कि दोनों ही हार मानने वाले नहीं थे। जान्सन की सरकार गिर गई। उनके बहुत सारे सहयोगियों ने इस्तीफ़ा दे दिया मगर जान्सन आख़िरी लम्हे तक इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार नहीं थे वह यही रट लगाए रहे कि मुझे 14 मिलियन ब्रितानी नागरिकों ने वोट दिया है और इतने वोट आज तक किसी भी ब्रितानी राष्ट्राध्यक्ष को नहीं मिले हैं।
जान्सन अपने राजनैतिक कैरियर का वैभव बचा नहीं पाए जिसे उन्होंने कई बर्सों की मेहनत से बनाया था। उनके प्रधानमंत्री काल के तीन बर्सों ने चर्चिल के नक़्शे क़दम पर चलने के उनके सपने को चकनाचूर कर दिया। वो त्यागपत्र पर मजबूर होने और अलग थलग पड़ जाने वाले नेता बन गए।
बोरिस जान्सन के राजनैतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ आए जिन्होंने उन्हें बुलांदी से पाताल में पहुंचा दिया। जान्सन ने कुछ बड़े क़दम उठाकर अपना राजनैतिक जीवन नई बुलंदी पर ले जाने की कोशिश की थी। उन्होंने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकालने की ज़ोरदार वकालत की और उन्होंने ब्रितानी वोटरों को समझाया। उस समय कहा जाता था कि जान्सन के पास यह क्षमता है कि वह जनता को अपने विचार से संतुष्ट कर सकते हैं।
दूसरा बड़ा क़दम उन्होंने टेरेज़ा मे की सरकार में विदेश मंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद उठाया। उन्होंने इसके बाद टेरेज़ा मे के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल लिया और 2019 में मध्यावधि चुनाव के लिए ज़ोर लगाया नतीजा यह हुआ कि कंज़रवेटिव पार्टी को एतिहासिक कामयाबी मिली। यहीं से यह सोच आम होने लगी कि जान्सन के पास संसदीय बहुमत जुटाने की क्षमता है और वे जैसा क़ानून चाहें पास करवा सकते हैं।
तीसरी कामयाबी ब्रिटेन का कोरोना के लिए आक्सफ़ोर्ड वैक्सीन बनाने में सफल होना था। ब्रिटेन ने व्यापक स्तर पर टीकाकारण का अभियान शुरू किया जबकि यूरोपीय संघ के दूसरे देशों के पास ज़रूरी मात्रा में वैक्सीन की डोज़ नहीं थी। उस समय कुछ लोग तो इसे दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन की जीत जैसी कामयाबी बताने लगे और कुछ ने जान्सन को विन्स्टन चर्चिल जैसा नेता कहना शुरू कर दिया।
जो चीज़ें जान्सन के उत्थान का कारण बनीं वही उनके पतन की वजह भी बन गईं। ब्रेक्ज़िट पर रेफ़रेंडम के पांच साल बाद भी ब्रिटेन इस मामले में उलझा हुआ है और यह मुद्दा अब इस देश की अखंडता के लिए बड़ी चुनौती में बदल गया है।
ब्रिटेन में विदेशी निवेश में गिरावट आई और यूरोपीय देशों के साथ ब्रिटेन का विदेशी व्यापार भी कम हो गया। इसका भयानक साइड इफ़ेक्ट तब नज़र आया जब ब्रिटेन में ईंधन का संकट पैदा हो गया और पेट्रोल पम्पों पर लंबी लंबी लाइनें लग गईं।
इन चीज़ों ने ब्रेक्ज़िट के बारे में ब्रितानी नागरिकों की सोच को बदला और ब्रेक्ज़िट का समर्थन कम होकर 37 प्रतिशत ही रह गया और यूरोपीय संघ के साथ बने रहने के पक्ष में 53 प्रतिशत लोग हो गए। इस तरह ब्रेक्ज़िट नेमत से मुसीबत बन गया।
कोरोना की महामारी आई तो बोरिस जान्सन अपनी तक़रीरों से ब्रितानी नागरिकों को महामारी के ख़तरों के बारे में बताते थे, कहते थे कि बहुतों को अपने प्रियजनों को खोना पड़ेगा। लोगों से कहते थे कि वे घरों में ही रहें मगर बाद में पता चला कि जान्सन ख़ुद पार्टी कर रहे थे वो भी प्रधानमंत्री कार्यालय में। जब यह ख़बरें लीक हुईं तो पहले तो जान्सन ने यह कहना शुरू कर दिया कि वे इन पार्टियों में नहीं थे मगर बाद में उनकी तसवीरें भी लीक हुईं। इससे साबित हुआ कि कोरोना महामारी के बारे में जो भावुक तक़रीरें वे करते थे वह सब ड्रामा था।
जान्सन ने अपने कार्यालय की दीवारों पर सोने का पानी चढ़वाया और उसे सजाने के लिए ख़ूब पैसे ख़र्च किए तो इस बारे में भी सवाल उठने लगे कि इन पैसों का स्रोत क्या है? बात यहां तक पहुंच गई कि उनके सहयोगी डोमिनिक कामिंग्ज़ ने बयान दिया कि जान्सन को ख़ुफ़िया तौर पर डोनेशन मिला है जिसे वह छिपा रहे हैं और यह चीज़ क़ानून के ख़िलाफ़ है। जांच से पता चला कि बोरिस जान्सन ने डोनेशन का ग़लत इस्तेमाल किया है।
बोरिस जान्सन एविट पैटरसन जैसे नैतिक और पेशावराना ग़लतियां करने वाले अपने साथियों की हिमायत में आगे आगे नज़र आए। इससे भी जान्सन की छवि बहुत ख़राब हुई।
NDTV India
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