इतिहास

*भारत की आज़ादी के लिये सब कुछ कुर्बान करने वाले स्वतंत्रता सेनानी मोहम्मद उमर सुभानी*

Ataulla Pathan
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6 जुलै – पुण्यतिथी
*भारत देश आजादी के लिये सब कुछ कुर्बान करणे वाले स्वतंत्रता सेनानी मोहम्मद उमर सुभानी*

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📕आपने तिलक स्वराज फण्ड के लिए *गांधीजी को ब्लैंक चेक* दिया था-
📒 आपने अपने *बंगले सुभानी विला को ख़िलाफ़त व नान काआपरेटिव मूवमेंट के दफ्तर के लिए दान* कर दिया
📘 साथ ही *1,00,000 रुपये बम्बई कांग्रेस कमेटी के खर्च* के लिए नगद दिये।

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*मोहम्मद उमर सुभानी* साहब की पैदाइश सन् 1890 में बाम्बे में हुई थी। आपके वालिद का नाम *मोहम्मद युसुफ़ सुभानी* था।
*आपके वालिद साहब की कपड़ों की कई मिलें* थीं। उस ज़माने में आपके वालिद साहब को *कॉटन किंग के नाम से जाना जाता* था। उमर सुभानी साहब अपने कारोबार की परवाह किये बिना इण्डियन नेशनल कांग्रेस के मेम्बर बने और जंगे-आज़ादी की जद्दोजहद में लग गये। कुछ ही दिनों में आप आंदोलनो के जुलूसों और मीटिंगों को आर्गेनाइज़ करने में माहिर हो गये। *जिस पर गांधीजी ने एक मीटिंग में आपको स्टेज मैनेजर कहकर सम्मानित किया*। आपने होमरूल मूवमेंट में एनी बेसेन्ट के साथ बहुत मेहनत व हिम्मत से प्रोग्रामों को कामयाब कराया। उसके बाद आप कांग्रेस के हर छोटे-बड़े प्रोग्राम और आंदोलन में एक मज़बूत नेता बनकर सामने आये।

*आपने ख़िलाफ़त और नान कापरेटिव मूवमेंट में भी सन् 1921 में हिस्सा लिया और जेल गये*।

विदेशी सामानों और कपड़ों के बहिष्कार आंदोलन में *आपने अपनी कम्पनी के जितने भी कपड़े विदेशो से आये थे, उसे खुद आग लगा दी जिसमें करोड़ों रुपयों का नुकसान हुआ*, जिसे आपने हंसते-हंसते सह लिया।

आंदोलन के लिए जब भी फण्ड की कमी हुई और फण्ड इकट्ठा करने की मुहिम चली तो आप हमेशा आगे रहे। *सबसे पहले आपने तिलक स्वराज फण्ड के* *लिए गांधीजी को ब्लैंक चेक* *दिया*
यही नहीं, *आपने अपने बंगले सुभानी विला को ख़िलाफ़त व नान काआपरेटिव मूवमेंट के दफ्तर के लिए दान कर दिया*
और साथ ही *1,00,000 रुपये बम्बई कांग्रेस कमेटी के खर्च के लिए नगद दिये*।

आपकी इन कार्यवाहियों की वजह से *मिल का काम आहिस्ता-आहिस्ता ख़राब होने लगा*। दूसरी तरफ अंग्रेज़ नौरकशाहों ने *मिल का कॉटन मुल्क के बाहर भेजने पर रोक भी लगा दी*।

*अंग्रेज़ों की तरफ़ से मिल चलाने के लिए आपको जंगे-आज़ादी के आंदोलनों से अलग होने और मदद न करने की शर्त रखी गयी, जिसे आपने ठुकरा दिया*।
अब आपके सामने *खुद पैसों की दिक़्क़तें* सामने आ गयी *मील के काम बन्द होने से फौरी तौर पर आपको तीन करोड़ चालीस लाख रुपयों का नुक़सान हुआ*। इसके बाद आप खुद मेंटली डिप्रेशन में चल गये।

*आपने अपनी सारी पूंजी इण्डियन इण्डिपेंस मूवमेंट में लगा दिया और ख़ुद बीमारी की हालत में मोहताजी की ज़िन्दगी गुज़ारने लगे*।
एक दिन अचानक *6 जुलाई सन् 1926* को लोगों ने आपको मृत्यू पाया।

*मुल्क की आज़ादी के लिए मादरे-वतन का यह जांबाज़ सिपाही हालात की बेबसी में शहीद* हो गया।

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*इनकी कुर्बानियो को जमाना भूल गया, लेकीन हम ने भी कहा इनकी यादो को जिंदा रखा?*
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आईये इनके कुर्बानियो को सलाम करते है

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संदर्भ :1)THE IMMORTALS
– syed naseer ahamed
+91 94402 41727
2) *लहू बोलता भी है*
– *सय्यद शहनवाज अहमद कादरी,कृष्ण कल्की*

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संकलन तथा अनुवादक लेखक- *अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी तालुका संग्रामपुर जिल्हा बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726