इतिहास

भारत की जंग ए आज़ादी में रेडियो का रोल

Ataulla Pathan
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12 फेब्रुवारी वर्ड रेडिओ डे
भारत की जंग ए आज़ादी में रेडियो का रोल

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आज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापकों में से एक *कर्नल एहसान क़ादिर आज़ाद हिंद रेडियो के निदेशक थे।*
*कर्नल इनयतुल्लाह हसन* ने फ्री हिंदी रेडियो के लिए देशभक्त ड्रामे लिखने का काम किया था, उनके लिखे हुए ड्रामे इतने शानदार होते थे के ऑल इंडिया रेडियो को उनके समानांतर अपना अलग प्रोग्राम लिखना पड़ा।

चुंके आज वर्ल्ड रेडियो डे और हम आज़ादी का अमृत उत्सव भी मना रहे हैं तो वैसे में जंग ए आज़ादी में रेडियो के रोल पर भी चर्चा हो जानी चाहिए।
आपको मालूम होना चाईए की 17 जून, 27 जुलाई और 17 अगस्त 1942 को *नेताजी सुभाष चंद्रा बोस को रेडियो* से भारतवासियो को भेजा गया था; इनमें से भारतवासीयों को अंग्रेजों के खिलाफ होने की बात कही थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस उस समय जर्मनी की राजधानी बर्लिन में भारत की आज़ादी के लिए सैन्य सहायता हासिल करने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन देश से उनके संबंध आजाद हिन्द रेडियो के ज़रिये जारी किया गया था।

जाफर मेहर अली द्वारा दिए गए भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने 9 अगस्त 1942 तक गांधी समेत ज्यादातर कांग्रेसियों को गिरफ़्तार कर लिया था। तब उषा मेहता द्वारा 27 अगस्त 1942 को बॉम्बे के चौपाटी इलाक़े के किसी मंदिर को बांधकर कांग्रेस के गुप्त रेडियो का प्रसारण शुरू किया गया था।

अंग्रेजों से बचाते बचाते उषा मेहता द्वारा संचालित कांग्रेस का यह गुप्त रेडियो कुल 88 दिनों तक ही चालू रह सका। इस रेडियो स्टेशन के पहले प्रसारण की उषा मेहता ने इन शब्दों के साथ शुरुआत की: “यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रेडियो है, 42.34 मीटर बैंड पर आप हमें भारत में किसी स्थान से सुन रहे हैं।” उस अंधकार मे उन कांग्रेसी गुप्त रेडियो ने भारतीयों के बीच पंथ निरपेक्षता, अंतर्राष्ट्रीयता, भाईचारा और स्वतंत्रता की भावना का प्रसार किया।

बर्लिन से प्रसारित होने वाले नेताजी सुभाष चंद्रा बोस के भाषणों को लोग ध्यान से सुनते और बाक़ी देशवासियों तक पहुंचाते थे। 31 अगस्त 1942 को जो भाषण उनका प्रसारित हुआ, उसमें उन्होंने कहा था कि भारत छोड़ो आंदोलन से अंग्रेज़ शासन की नींव हिल गयी है। उन्होंने इस आंदोलन को अहिंसात्मक गुरिल्ला युद्ध की संज्ञा दी थी। इसी भाषण में उन्होंने पिछले रेडियो प्रासारण का हवाला देते हुए देशवासियों को ये आंदोलन कैसे आगे बढ़ाना है इसकी कुंजी भी दी थी। उनके अनुसार गाँधी एवं अन्य नेताओं का जेल में जाना प्रेरणास्त्रोत था। और देशवासियों को उनके सिद्धांतों का पालन कर आंदोलन आगे बढ़ाना था।

उन्होंने अपील की कि लोग टैक्स न दें, सरकारी नौकरियों पर काम की रफ़्तार धीरे हो, कॉलेज में पढ़ाई बाधित की जाये, महिलाएं संदेशवाहक का काम करें, सरकारी नौकरी में लोग नौकरी न छोड़े बल्कि उस नौकरी का इस्तेमाल देश के लिए महत्वपूर्ण जासूसी के लिए करें, घरों में नौकरी करने वाले ख़राब खाना परोसें। रेडियो स्टेशन का आईडिया भी इस भाषण में ही दिया गया था। थानों और सरकारी स्थानों पर प्रदर्शन की अपील भी जारी की गयी। पास से देखने पर पता चलता है कि यही रास्ता भारतीय जनता ने अपनाया और आंदोलन को मज़बूती दी। तो आंदोलन की शुरुआत भले ही गाँधी जी ने की थी पर अंजाम तक पहुँचाया सुभाष बोस ने।

इधर 1941 में *मुहम्मद इक़बाल शैदाई ने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ रेडियो हिमालया की शुरुआत इटली* में की थी, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी *सरदार अजीत सिंह* के काँधे पर थी, जो *भगत सिंह के चाचा थे*। इनलोगों ने रेडियो का उपयोग अंग्रेज़ों के लिए लड़ रहे भारतीय सिपाहियों को अपनी तरफ़ करने में किया। वैसे नेताजी सुभाष चंद्रा बोस BBC को “the Bluff and Bluster Corporation, of London” कह कर ख़िताब किया करते थे।

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Heritage times
Md umar ashram
संकलन अताउल्लाखा पठाण सर
टू नकी,संग्रामपूर, बुलडाणा, महाराष्ट्र