मध्य प्रदेश राज्य

मध्यप्रदेश में बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को किया किनारे, कौन चुनेगा मध्य प्रदेश का नया मुख्यमंत्री? !!रिपोर्ट!!

बात इसी साल 21 अगस्त की है, जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह भोपाल के दौरे पर आए हुए थे. इस दौरान उन्होंने शिवराज सरकार का ‘रिपोर्ट कार्ड’ भी जारी किया.

इसी आयोजन के दौरान पत्रकारों से हुई बातचीत में जब उनसे पूछा गया कि आगामी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? उन्होंने इसके जवाब में जो कहा उसके बाद से ही अटकलें लगाई जाने लगीं कि क्या अब शिवराज सिंह चौहान की राजनीति अब ढलान पर है?

इसके जवाब में अमित शाह ने कहा था, “शिवराज जी अभी मुख्यमंत्री हैं ही . चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा, ये पार्टी का काम है और पार्टी ही तय करेगी.”

बस यहीं से संकेत मिलने लगे थे कि भारतीय जनता पार्टी के अब तक के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान का विकल्प ढूंढ रही है.

शिवराज सिंह चौहान का ज़िक्र भूले पीएम नरेंद्र मोदी

इसके बाद 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल में ‘कार्यकर्ता महाकुम्भ’ में शामिल होने के लिए आए. जम्बूरी मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने 40 मिनट तक भाषण दिया.

इस दौरान उन्होंने न तो शिवराज सिंह चौहान का ज़िक्र किया, न मध्य प्रदेश सरकार की ‘महत्वकांक्षी योजनाओं’ का ही ज़िक्र किया.

मोदी, भोपाल से दिल्ली वापस लौटे. उसी दिन शाम को भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने 39 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी.

इसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों के अलावा चार सांसदों के नाम भी थे. इसके साथ ही, प्रदेश के एक और कद्दावर नेता और भारतीय जनता पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का भी नाम था.

तीनों केंद्रीय मंत्री– नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रह्लाद सिंह पटेल और पार्टी महासचिव कैलाश विजवार्गीय का राजनीतिक क़द शिवराज सिंह चौहान के समकक्ष ही रहा है. किसी ज़माने में उनका नाम भी प्रदेश के मुख्यमंत्री की दौड़ में गिना जाता रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई इसके कई कारण बताते हैं. वो कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण कारण ये है कि पिछला विधानसभा का चुनाव भी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा गया था मगर भारतीय जनता पार्टी की हार हुई थी.

वो कहते हैं, “भले ही बाद में बीजेपी की सरकार बनी लेकिन वो सेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिर पर बंधा, जिनके साथ 22 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे. साफ़ है, 2018 का जनादेश शिवराज सिंह चौहान के साथ नहीं था. इस बार भी सत्ता विरोधी लहर पिछली बार की तुलना में कहीं ज़्यादा दिख रही है. ऐसे में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का यह रुख़ अपने जनाधार को बचाने के लिए ही अपनाया गया दिखता है.”

भारतीय जनता पार्टी के हलकों में भी इसको लेकर काफ़ी सुगबुगाहट दिख रही है क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के क़रीबी माने जाने वाले उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी या विधायक भी आशंकित हैं कि “कहीं उनके टिकट ना कट जाएँ.” ऐसे प्रयोग भारतीय जनता पार्टी गुजरात और कुछ अन्य राज्यों के विधानसभा के चुनावों में कर चुकी है.

वैसे भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि जिन 79 सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा की गई है उनमें से 77 सीटों पर पिछले विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस के विधायक चुनकर आए थे. कई ऐसी सीटें हैं जिन्हें भाजपा के लिए जीतना बड़ी चुनौती है.

इसलिए जानकार मानते हैं कि संगठन ने ये फ़ैसला इसलिए भी लिया है ताकि वो इन 77 सीटों में से आधी भी जीतने में कामयाब हो जाए. यही कारण है कि पार्टी ने दिग्गजों को मैदान में उतारा गया है.

कौन चुनेगा मध्य प्रदेश का नया मुख्यमंत्री?

पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने बीबीसी से कहा कि शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सबसे कद्दावर नेता भी हैं और पार्टी में उनका स्थान काफ़ी ऊँचा है. वो ये भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री कौन होगा ये हमेशा से ही विधायक दल ही करता है. इसमें वो कुछ नया नहीं मानते.

उन्होंने कहा, “इसमें कोई दो राय नहीं है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की अपार लोकप्रियता है. उनके नेतृत्व में लगभग दो दशकों तक सरकार चल रही है. उन्होंने जो काम किया है वो मील का पत्थर है. लेकिन पार्टी में सबकी अपनी-अपनी भूमिका निर्धारित है. समय-समय पर पार्टी तय करती है कि किसकी क्या भूमिका होगी, सभी पहले पार्टी के कार्यकर्ता हैं बाद में कुछ और. मुख्यमंत्री कौन होगा ये महत्वपूर्ण नहीं ह,. महत्वपूर्ण ये है कि किसकी क्या भूमिका होगी और दायित्व क्या होंगे.”

कुछ जानकार कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ‘चुनावी राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी वरिष्ठ’ हैं. उनका कहना है कि जब 2014 के लोकसभा में बीजेपी ने पार्टी के पीएम पद के दावेदार का नाम ज़ाहिर नहीं किया था तो शिवराज सिंह चौहान के नाम की ख़ासी चर्चा थी.

उनके बाद छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम थे, जो भाजपा के सबसे ज़्यादा लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री थे.

वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान 1990 में विधायक बन गए थे जबकि लगभग 11 साल बाद यानी 2001 में नरेंद्र मोदी पहली बार विधानसभा में जीतकर आए थे.

उनका कहना था कि 2014 में पार्टी के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के नाम का प्रस्ताव प्रधानमंत्री पद के संभावित चेहरों के रूप में की थी. लेकिन उनको दरकिनार करने के कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं जिसे लोग अलग-अलग नज़रिए से देखते हैं.

दीक्षित कहते हैं, “मुझे लगता है कि शिवराज व्यक्तिगत प्रचार और इमेज बिल्डिंग के मामले में मोदी की ही राह पर चले. उन्होंने भी मध्य प्रदेश में मठ मंदिरों के पुनर्निर्माण की शुरुआत की. उन्होंने काशी की ही तरह उज्जैन में महाकाल के महालोक का निर्माण शुरू कराया. इनमें सबसे ज़्यादा अहम है ओंकारेश्वर में नर्मदा के तट पर आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा की स्थापना.”


शिवराज सिंह चौहान का कौशल
मध्य प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय से नज़र रखने वालों का कहना है कि हो सकता है कि कई दशकों के बाद अब शिवराज सिंह चौहान की राजनीति की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी हो मगर वो भारतीय जनता पार्टी के ऐसे नेता रहे हैं जो ख़ुद को ‘री-इन्वेंट’करते रहे हैं यानी वो बदलते राजनीतिक परिवेश में ख़ुद को ढालते रहे हैं.

रशीद किदवई कहते हैं कि भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष से लेकर प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष और सांसद की भूमिका में भी उन्होंने अपने आपको ख़ूब ढाला. किदवई के अनुसार, “बदलती भूमिकाओं के बावजूद उन्होंने अपनी छवि एक उदारवादी नेता के रूप में ही बनाए रखी. वो उसमे कामयाब भी हुए. लेकिन हो सकता है कि अब का राजनीतिक परिवेश जिस तरह बदल रहा है उसमें वो ख़ुद को ढाल नहीं पाए.”

राजनीतिक विश्लेषकों का ये भी मानना है कि जैसे-जैसे मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान का कद बढ़ता गया उनके समकक्ष रहे पार्टी के नेता उनके सामने फीके पड़ने लगे. यही कारण है कि प्रदेश की राजनीति में कोई दूसरा बड़ा चेहरा उनके बराबर नहीं रहा. इसी वजह से पार्टी को, देर या सवेर से ही, दूसरे चेहरों या नेताओं को भी प्रासंगिक बनाए रखना था.

कुछ जानकारों को ये भी लगता है कि इस कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान ने अपनी कार्यशैली भी बदली जो सबको स्पष्ट रूप से दिखने भी लगी. यही वजह है कि केन्द्रीय नेतृत्व को उनका विकल्प ढूंढ़ने की आवश्यकता दिखने लगी.

कई लोग यह भी मानते हैं कि पिछला जनादेश चूँकि शिवराज सिंह के साथ नहीं था, फिर भी उन्होंने सरकार बना ली इसलिए जनता के बीच भी इसका सही संदेश नहीं गया और सत्ता विरोधी लहर और तेज़ हो गई है.

क्या मध्य प्रदेश भाजपा में सब ठीक है?
जसविंदर सिंह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के सचिव हैं. कई दशकों तक उन्होंने सूबे की राजनीति को क़रीब से देखा है और भारतीय जनता पार्टी के साथ उन्होंने ‘विचारधारा की लड़ाई’ भी लड़ी है.

वो भाजपा की राजनीति पर भी नज़र रखते आए हैं. उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों में जो उन्होंने फर्क देखा है कि पहले भाजपा या संघ से जुड़े नेता विचारधारा को प्राथमिकता देते थे. मगर वो मानते हैं कि अब ऐसा नहीं है.

बीबीसी से जसविंदर सिंह ने कहा, “अब भाजपा में सबको अपनी-अपनी चिंता है. सब ख़ुद की लड़ाई लड़ रहे हैं इसलिए अब उनकी राजनीति में काफ़ी अंतर दिखने लगा है. पहले ‘टीम वर्क’ दीखता था. अब गुट दिखने लगे हैं इसलिए ये तो होना ही था.”

उनके अनुसार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को तब से संदेश साफ़ मिलने लगे थे कि मध्य प्रदेश में कुछ गड़बड़ है जब से सरकार ने यात्राएं निकालनी शुरू कीं.

वो कहते हैं, “पहले विकास यात्रा निकली, फिर जन आशीर्वाद यात्रा. लेकिन इन यात्राओं का उतना असर ज़मीन पर नहीं दिखा. इन यात्राओं को बंद भी करना पड़ गया. उसका कारण है कि लोग उन्हीं चेहरों से ऊब चुके हैं. इसी को सत्ता विरोधी लहर कहते हैं जिससे उबरने के लिए बीजेपी ने मंत्रियों और सांसदों को मैदान में उतारने का निर्णय लिया है. शिवराज सिंह चौहान की डगर अब कठिन दिख रही है. कोई ताज्जुब नहीं होगा कि अगर इस बार उनको पार्टी चुनाव न लड़ने की सलाह भी देती है.”

शिवराज सिंह चौहान का भाग्य

शिवराज सिंह चौहान के बारे में कहा जाता है कि वो मध्य प्रदेश की राजनीति में ‘भाग्यशाली’रहे हैं, क्योंकि उन्होंने वो सब कुछ हासिल कर लिया जो प्रदेश में पार्टी के कई दिग्गज नेता भी हासिल नहीं कर पाए थे.

भोपाल से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘संध्या प्रकाश’ के संपादक संजय सक्सेना कहते हैं कि उमा भारती भी न सिर्फ़ मध्य प्रदेश बल्कि देश में भारतीय जनता पार्टी की सबसे प्रमुख नेताओं में से रहीं. 2003 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक जीत दिलवाई थी. मगर अदालती कार्रवाई के चलते उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.

फिर बाबूलाल गौड़ मुख्यमंत्री बने लेकिन वो भी नहीं चल पाए थे.

सक्सेना कहते हैं, “शिवराज सिंह को सुन्दरलाल पटवा के गुट का माना जाता था. वो 2003 में प्रदेश अध्यक्ष थे जब मुख्यमंत्री के लिए उनके नाम का प्रस्ताव लालकृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन ने किया था. उसके बाद से शिवराज सिंह चौहान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.”

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सलमान रावी
पदनाम,बीबीसी संवाददाता, भोपाल से