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महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले ने कहा-मणिपुर जल रहा है और देश के प्रधानमंत्री विदेश घूम रहे हैं : मणिपुर में हिंसा थम नहीं रही है!

मणिपुर में हिंसा थम नहीं रही है। वहां पर पहाड़ हो या इंफाल घाटी, हर जगह से एक ही बात कही जा रही है कि केंद्र और राज्य सरकार, यहां के हालात को काबू करने में नाकाम हो रही है। आरक्षण की लड़ाई अब हिंसा तक जा पहुंची है। ऐसे आरोप तो हिंसा शुरू होने के दूसरे दिन से ही लगने लगे थे कि लोगों की भीड़, सुरक्षा बलों या पुलिस का रास्ता रोक रही है। उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया जा रहा। मतलब, डेढ़ माह बाद भी रोड क्लीयर नहीं हो सके हैं।

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मणिपुर जल रहा है और देश के प्रधानमंत्री विदेश घूम रहे हैं। राज्य के केंद्रीय मंत्री का भी घर जलाया गया है। इससे हालात और ख़राब होंगे। विधेश जाने से पहले प्रधानमंत्री मणिपुर जाएं और वहां के माहौल को शांत करवाएं: महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले, मुंबई

‘वॉयस ऑफ मणिपुर’ से हुई बातचीत में लोगों ने उक्त खुलासा किया है। हैरानी की बात है कि लोगों की भीड़, सड़कों और गलियों में नाका लगा रही है। गाड़ियों में बैठे लोगों से पहचान पत्र मांगे जा रहे हैं। वहां पर लोगों के बीच बहुत अधिक नफरत बढ़ चुकी है। हिंसा के लिए जिम्मेदार मुद्दों की परतें दर परतें जमा होती गईं। लोग बताते हैं कि किसी ने उनके स्थायी हल की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। दशकों से मिलनसार रहे और सुख-दुख के साथी मैतेई और कुकी समुदाय के लोग अब दुष्प्रचार के जरिए ही एक दूसरे से अलग हो चुके हैं।

इंफाल पूर्व की स्थिति

मणिपुर में आदिवासी और गैर आदिवासी समुदाय, इस बात को लेकर आत्मविश्वास खो चुके हैं कि सरकार उनकी सुरक्षा करेगी। दोनों समुदायों के लोगों के पास लूटे गए या फिर लाइसेंसी हथियार हैं। मौजूदा परिस्थितियों में देखने को मिला है कि मणिपुर में शांति के लिए बहुत कम प्रयास किए गए हैं। लोगों ने कहा, हिंसा में धर्म का मुद्दा भी प्रवेश कर चुका है। जान-माल को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। अब लोगों के बीच बहुत अधिक नफरत बढ़ चुकी है।

कैंपों में भी चर्च और मंदिर की बात हो रही

दोनों समुदायों के मन में एक दूसरे प्रति द्वेष बढ़ता जा रहा है। कैंपों में ठहरे लोगों ने एक दूसरे पर धार्मिक स्थलों को जलाने का आरोप लगाया। इंफाल की एक महिला का कहना था कि अब तो व्यापार और पढ़ाई-लिखाई सब चौपट हो रही है। मणिपुर हिंसा अब एक ऐसे दौर में पहुंच गई है, जहां जीभ पर नियंत्रण करना, सबसे जरूरी है। जरा सी कोई जीभ फिसली नहीं कि हिंसा शुरू। हर कोई सावधानी बरत रहा है।

चुराचांदपुर की स्थिति

अरुणाचल प्रदेश में नीति आयोग में काम कर रही एक महिला बताती हैं, हम बहुत चिंतित हैं। परिवार में फोन पर एक दूसरे की हिम्मत बढ़ा रहे हैं। हमारे गांव में कई पड़ोसियों के घर जला दिए गए। राज्य पुलिस या सुरक्षा बल, कोई कुछ नहीं कर सका। रोजाना सुबह उठते हैं, तो यही खबर पढ़ने को मिलती है कि फलां व्यक्ति मारा गया है। उक्त महिला के दादा, गांव के संस्थापक रहे हैं। वे सोचते हैं कि गांव को सुरक्षित करने की आवश्यकता है। जितना हो सकता है, वे कर रहे हैं, लेकिन गांव छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते। हालांकि महिला ने अपने दादा व दूसरे परिजनों से कहा है कि मणिपुर के हालात सामान्य होने तक वे उसके भाई के पास मुंबई चले जाएं। इस तरह की हिंसा, मणिपुर में पहले कभी नहीं देखी गई। अब तो रोजमर्रा की वस्तुओं की किल्लत होने लगी है। दाम बढ़ रहे हैं।

कमजोंग की स्थिति

एक निजी स्कूल में पढ़ाने वाली महिला, जो न तो मैतेई है और न ही कुकी, बताती हैं, स्कूल को शुरू करना है। ये विवाद तो पता नहीं कब तक चलेगा। हमने निर्णय लिया है कि 9वीं और दसवीं कक्षा को शुरू करेंगे। इस मकसद से पीछे नहीं हटेंगे कि हमें इन बच्चों को उच्च शिक्षा के पायदान तक ले जाना है। कमजोंग में स्थिति ठीक है, लेकिन इंफाल में टेंशन है। यात्रा के दौरान हमें रोका गया। लोगों की भीड़ ने पहचान पत्र मांगा। वे लोग अपने हाथों में बैट और चाकू लिए हुए थे। कुछ देर बाद वे समझ गए थे कि मैं न तो मैतेई हूं और न ही कुकी। मुझे जाने दिया गया।

इंफाल वेस्ट और कंगपोकपी की स्थिति

एक युवक, जिसने अपने एक करीबी रिश्तेदार को मणिपुर की हिंसा में खो दिया है, कहता है कि इस स्थिति में सरकार ही 33 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर राशन बेच रही है। हमारे किसान अब इस स्थिति में भी नहीं हैं कि वे खेती कर सकें। इस लिहाज से आने वाला साल बहुत मुश्किलों भरा रहेगा। इंफाल वेस्ट में फायरिंग हो रही है। पानी की किल्लत और खाने पीने की वस्तुओं के दाम बढ़ते जा रहे हैं। राहत कैंपों में मदद करने वाले कंगपोकपी निवासी कहते हैं, केंद्र एवं राज्य सरकार यहां पर कानून व्यवस्था बहाल करने में बुरी तरह से फेल रही हैं। स्थिति को सामान्य न कर पाना, सरकारों की नाकामी है। मैतेई जो, पहले से ही हिल में सैटल हो गए थे, अब उन्हें घाटी में विभिन्न जगहों पर राहत कैंपों में शरण लेनी पड़ रही है।

जो ‘कुकी’ स्थायी तौर से इंफाल में रह रहे थे, अब वे ‘हिल’ के विभिन्न जिलों में बने राहत कैंपों में जाने पर मजबूर हैं। कंगपोकपी में भोजन, डॉक्टर और दवा, दोनों की कमी है। सरकार ने भरोसा दिलाया था कि जल्द ही कंगपोकपी और चुराचांदपुर जिलों में आठ मेडिकल टीम पहुंच रही हैं। यहां स्थिति बहुत खराब है। महिला और बच्चे, अपने घर छोड़कर राहत कैंपों में चले गए हैं। राहत सामग्री की भारी कमी हो गई है। पेट्रोल पंपों पर तेल खत्म हो रहा है। राजमार्गों पर टेंशन की वजह से नया स्टॉक नहीं आ पा रहा है।