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महाराष्ट्र सरकार का ‘डेथ वॉरंट’ जारी हो चुका है, दिल्ली में मुख्यमंत्री बदलने की मुहिम शुरू : रिपोर्ट

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिव सेना में पिछले साल हुई टूट और 16 विधायकों की योग्यता पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आने वाले फ़ैसलों को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म हो रखा है.

शीर्ष अदालत के संभावित फ़ैसले से महाराष्ट्र की राजनीति में एक और भूचाल आने या न आने के बारे में जमकर चर्चा हो रही है.

लोग जानना चाहते हैं कि विपक्ष के नेता अजित पवार सरकार बचाने के लिए क्या उसका समर्थन करेंगे! चर्चा मुख्यमंत्री बदलने और दल-बदल फिर शुरू होने को लेकर भी चल रही है.

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना के नेता संजय राउत ने बीते रविवार को ‘भविष्यवाणी’ वाले अंदाज़ में कहा, “यह सरकार टिकने वाली नहीं है. इस सरकार का ‘डेथ वॉरंट’ जारी हो चुका है. अब सिर्फ़ एक बात तय होनी है कि इस पर कब और कौन दस्तख़त करता है.”

उससे कुछ दिन पहले संजय राउत ने कहा था कि दल-बदल का दूसरा सीज़न फिर शुरू होने वाला है. हालांकि ऐसी ‘भविष्यवाणी’ केवल संजय राउत ही नहीं, कई और नेता भी ऐसा कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इस सरकार के अस्थिर होने के दावे क्यों किए जा रहे हैं?

जानकार इसके पीछे दो वजह बताते हैं. पहला कारण, वर्तमान सरकार के सामने मौजूद क़ानूनी अड़चनें हैं और दूसरा कारण, दलगत राजनीति है.

सामना में शिंदे और फडनवीस की आलोचना

संजय राउत के ‘सरकार गिर जाएगी’ वाले बयान के बाद उनके संपादन में छपने वाले शिव सेना के मुखपत्र ‘सामना’ में मंगलवार 25 अप्रैल को एक लेख प्रकाशित हुआ. इस लेख में में भविष्यवाणी की गई है कि सीएम एकनाथ शिंदे अपना पद छोड़ देंगे.

इस आलेख में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर तंज़ कसा गया है. इसके अनुसार, सीएम बनने की उम्मीद पाले फडणवीस के साथ पिछली बार जो हुआ, लगता है इससे अभी तक वो उबरे नहीं हैं और अब विखे पाटिल या अजीत पवार के नाम की चर्चा हो रही है.

आलेख में लिखा गया है, ”शिंदे समूह मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए बेताब है. वहीं फडणवीस समूह मृदुभाषी होने का नाटक कर रहा है. जो भी हो, मौजूदा मुख्यमंत्री का जल्द ही जाना तय है.”

मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावना के बारे में एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल से जब पूछा गया, तो उन्होंने भी इस संभावना से इनकार नहीं किया.

भुजबल ने कहा, ”दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला अगर एकनाथ शिंदे के ख़िलाफ़ गया, तो मुख्यमंत्री बदले जा सकते हैं. लेकिन सरकार नहीं गिरेगी.”

छगन भुजबल ने सोमवार को नासिक में पत्रकारों से कहा, ”हमने अख़बार में पढ़ा कि 16 विधायकों का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इसमें निर्णय 16 विधायकों के ख़िलाफ़ होगा. उनके विधायक हार जाएंगे. अयोग्य ठहराए जाने वाले विधायकों में एकनाथ शिंदे भी शामिल होंगे. अगर उन्हें अयोग्य ठहराया गया, तो वो सीएम का पद छोड़ देंगे और मुख्यमंत्री बदल दिए जाएंगे.”

उन्होंने कहा, ”लेकिन क्या गारंटी है कि फ़ैसला उनके ख़िलाफ़ जाएगा? एक और परिणाम हो सकता है. अगर परिणाम उनके खिलाफ गया और उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाता है, तो भी मौजूदा सरकार के पास 165 विधायकों का समर्थन रहेगा. इनमें से 16 के अयोग्य होने पर भी 149 विधायक रह जाएंगे. इससे उनकी सरकार बची रहेगी.”

भुजबल ने कहा कि मुख्यमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को बदला जा सकता है, लेकिन मुझे लगता है कि सरकार को कोई ख़तरा नहीं है.

छगन भुजबल से अजीत पवार के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा पर जब पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ”इसके लिए मुख्यमंत्री पद का ख़ाली होना और पर्याप्त संख्या बल होना चाहिए.”

उन्होंने कहा, ”आप सवाल पूछते हैं कि क्या वे मुख्यमंत्री बनेंगे? इसके बारे में कोई नहीं बता सकता. ऐसा नहीं है न कि वे राजनीति में आज आए हैं. वे पिछले कई साल से सामाजिक मुद्दे और राजनीति से जुड़े रहे हैं. ये कहने में कुछ भी ग़लत नहीं है कि वे इसी वजह से मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे.”

सांसद संजय राउत ने ये भी कहा कि दिल्ली में मुख्यमंत्री बदलने की मुहिम शुरू हो गई है.

उन्होंने कहा, ”अगर भुजबल के पास और जानकारी है, तो उन्हें आपको बताना चाहिए. लेकिन मैं जानता हूं कि मुख्यमंत्री बदलने की मुहिम शुरू हो चुकी है. ये मुख्यमंत्री राज्य का नेतृत्व करने और भाजपा जो चाहती है, उसे हासिल करने में विफल रहे हैं. उनका इस्तेमाल हमारी सरकार गिराने के लिए किया गया.”

हालांकि शिंदे के नेतृत्व वाली शिव सेना इन सभी संभावनाओं को ख़ारिज करती है. राज्य के आबकारी मंत्री शंभुराज देसाई ने संजय राउत की आलोचना करते हुए कहा, ”राउत यहां बैठकर कैसे जान सकते हैं कि दिल्ली में क्या चल रहा है? उनके अंदरूनी सूत्र क्या हैं?”


सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर सबकी नज़र

महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष से जुड़े सवालों पर सुप्रीम कोर्ट पिछले 9 महीने से सुनवाई कर रहा है. इस सुनवाई का अहम हिस्सा शिव सेना से बगावत कर नई सरकार बनाने वाले 16 विधायकों की अयोग्यता का मामला है.

सुप्रीम कोर्ट में शिव सेना के दोनों गुटों की दलीलें सुनी जा चुकी हैं और अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सुप्रीम कोर्ट क्या फ़ैसला सुनाता है. अदालत के फ़ैसले पर ही राज्य की शिंदे-फडणवीस सरकार का भविष्य निर्भर करता है.

पिछले साल 21 जून को तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ उनकी पार्टी के ही 16 विधायकों ने बगावत कर दी थी. उसके बाद 24 जून को शिव सेना ने इन 16 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग विधानसभा के तत्कालीन उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल से की थी.

उस मामले की सुनवाई करते हुए उपाध्यक्ष जिरवाल ने उन 16 विधायकों को नोटिस भेजा था, लेकिन फिर उद्धव ठाकरे के इस्तीफ़ा देने के कारण उनकी सरकार गिर गई.

विधायकों की अयोग्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है और अब इस मामले पर फ़ैसले का इंतज़ार है.

शिंदे-फडणवीस सरकार के सत्ता में आए छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन सरकार पर अभी भी ख़तरा मंडरा रहा है.

इस मामले की खास बात ये है कि इन 16 विधायकों में राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ख़ुद भी शामिल हैं. इसीलिए संविधान के जानकार मान रहे हैं कि ऐसी स्थिति बीजेपी के लिए कानूनी तौर पर चुनौतीपूर्ण हो सकती है.

क़ानूनी विशेषज्ञ उल्हास बापट इस बारे में कहते हैं, ”अगर 16 विधायक अयोग्य घोषित किए गए तो एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री नहीं रह पाएंगे. संविधान के 91वें संशोधन के अनुसार, अगर कोई विधायक अयोग्य है, तो वह मंत्री नहीं रह सकता.”

बापट कहते हैं, ”संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री चले गए, तो सरकार गिर जाती है. इस वजह से, यदि एकनाथ शिंदे को अस्थायी रूप से दरकिनार कर के फ़ैसले से पहले यदि किसी और को मुख्यमंत्री बना दिया जाए, तो शिंदे को अयोग्य घोषित करने के बाद भी भाजपा के पास बहुमत होगा.”

चूंकि विधायकों को अयोग्य ठहराने का अधिकार सिर्फ विधानसभा अध्यक्ष के पास होता है और अदालत इसमें दख़ल नहीं देगी, तो क्या मौजूदा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर इस मामले पर अंतिम फैसला ले सकते हैं?

इस पर उल्हास बापट कहते हैं, ”केवल राष्ट्रपति ही तय करेंगे कि वे अयोग्य हैं या नहीं. लेकिन जब अदालत फ़ैसला सुनाती है, तो वे क़ानून की व्याख्या करते हैं. अगर वह कहती है कि सभी को उसी समय पार्टी छोड़ देनी चाहिए थी, तो वे बच जाएंगे. एक बार में 37 में से 16 ही गए, दो तिहाई नहीं. यदि ऐसी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय ने की, तो राष्ट्रपति के लिए भी ये व्याख्या बाध्यकारी होगी. तब राष्ट्रपति के हाथ में कुछ नहीं रहेगा. उन्हें अयोग्य घोषित करना ही पड़ेगा.”

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के पहले ही यदि बीजेपी के किसी नेता को मुख्यमंत्री बना दिया जाए, तो क्या जोखिम कम हो जाएगा?

इस पर उन्होंने कहा, ”अगर ऐसा होता है तो सरकार को दोबारा बहुमत साबित करना होगा. अभी बहुत कुछ हो सकता है. यदि एकनाथ शिंदे को अयोग्य घोषित किया गया, तो उनके गुट में भी आंदोलन होगा. क्या वे फिर से बीजेपी को समर्थन देंगे? ऐसी कई राजनीतिक संभावनाएं हैं.”

उनके अनुसार, ”एक बात ये भी है कि राष्ट्रपति शासन तब तक लागू नहीं होगा, जब तक कि सरकार के पास बहुमत है. इसलिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि कौन सा समूह या पार्टी उनका समर्थन करती है. अगर सरकार के पास बहुमत है, तो वह नहीं गिरेगी.”

हालांकि बीजेपी ने इन सभी संभावनाओं को फ़िलहाल ख़ारिज कर दिया है.

बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने बीबीसी मराठी से कहा, ”काल्पनिक सवालों पर अपना पक्ष रखना उचित नहीं है. ये सब बातें अटकलों पर आधारित हैं. हम कोर्ट के फ़ैसले का इंतजार करेंगे.”

वे कहते हैं, ”हमें यक़ीन है कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे. अभी ऐसे मामलों पर अपना पक्ष रखना ठीक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने दीजिए.”

‘शिंदे के विधायक क्या फ़ैसला लेंगे?’

मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा बीते कई दिनों से चल रही है. बीजेपी के कुछ नेताओं के नाम भी चर्चा में हैं.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुधीर सूर्यवंशी ने बताया कि देवेंद्र फडणवीस, राधाकृष्ण विखे-पाटिल, विनोद तावड़े जैसे कुछ नाम चर्चा में हैं.

लेकिन उनका ये भी कहना है कि बीजेपी के लिए यह बदलाव आसान नहीं होगा.

वे कहते हैं, ”इसकी वजह ये है कि शिंदे गुट पहले से ही परेशान नज़र आ रहा है. अगर उनके नेता एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायक अयोग्य हो गए, तो इसका मतलब ये भी है कि बीजेपी उन्हें बचा नहीं पाई. इस वजह से एक सवाल यह भी उठता है कि बीजेपी का मुख्यमंत्री बनने पर शिंदे गुट क्या उसे समर्थन देगा.

उनके अनुसार, ”एक बात तय है कि बीजेपी कुछ बड़े क़दम उठा सकती है. अगले एक साल में लोकसभा और विधानसभा दोनों के चुनाव होने हैं. ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि बीजेपी की उम्मीद के मुताबिक महाराष्ट्र में लोकसभा के लिए माहौल नहीं बन पाया.”

वे कहते हैं, ”जिस तरह से ठाकरे सरकार गिरी और विधायकों ने बगावत करके पार्टी और चुनाव चिह्न को पीछे छोड़ा, उसके बाद बीजेपी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा है. इन्हीं कारणों से बीजेपी कुछ बदलावों या ‘कोर्स करेक्शन’ करने पर विचार कर रही है.”

दूसरी तरफ शिंदे गुट के विधायकों में ताज़ा घटनाक्रम से बेचैनी है. कैबिनेट के विस्तार का काम रुक गया है, नतीजे अधर में लटक गए हैं और उधर अजित पवार को लेकर कई तरह की ख़बरें आ रही हैं. ऐसी सुगबुगाहट है कि शिंदे गुट के कुछ विधायक फिर से ठाकरे गुट के संपर्क में हैं.

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मृणालिनी नानिवाडेकर ने कहा है कि यह सब अटकलें हैं.

नानीवाडेकर कहते हैं, ”यह पूरी स्थिति काल्पनिक लगती है. बिना फ़ैसले के इस पर बात करना उचित नहीं होगा. वैसे विधायकों के अयोग्य करार दिए जाने पर भी सरकार नहीं गिरती है. छह महीने बाद मुख्यमंत्री फिर से विधायक चुने जा सकते हैं.”

पिछले चार सालों में महाराष्ट्र की राजनीति में कई राजनीतिक समीकरण देखने को मिले.

पहले बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूटा, उसके बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी बनाया. उसके बाद एकनाथ शिंदे गुट ने शिवसेना से विद्रोह करके बीजेपी के साथ सरकार बनाई और शिवसेना पर दावा ठोक दिया. बाद में उसे पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी मिल गया.

आज की राजनीतिक स्थिति में कई सवाल फिर से पैदा हो गए हैं, जैसे कि क्या महा विकास अघाड़ी बना रहेगा? क्या शिंदे सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी? बीजेपी के नेता मुख्यमंत्री बनेंगे या कोई और?

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दीपाली जगताप
बीबीसी मराठी संवाददाता