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मालकिन, ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना….

Jasvir Singh ·
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उन्नीस सौ छत्तीस में अमरीका में एक आदमी था, लूथर दरबांग। वह नोबल प्राइज विनर था। लूथर दरबांग ने जिंदगी भर पौधों के पास ही अपनी जिंदगी बिताई। वह पौधों की खोज ही करता रहा। उसकी खोज इतनी बढ़ गई और उसका पौधों से इतना संबंध हो गया कि उसकी पत्नी उसे छोड़ कर चली गई। उसने कहा कि क्या पागलपन मचा रखा है, मैं बैठी हूँ और तुम अपने पौधों से बात कर रहे हो, तुम्हारा दिमाग ठीक है? लूथर दरबांग पौधों से बात करने लगा। अब यह पागलपन का लक्षण है। उसका पौधों से प्रेम हो गया। वह पौधों से बात-चीत, हाल-चाल पूछने लगा, सुबह उठ कर पौधों से कि कहो कैसे हो, कल तबीयत खराब थी, ठीक है न? तो पत्नी तो, ऐसे पति के पास पत्नी रुके? वह गई, उसने कहा कि यह क्या पागलपन है? मुझसे तो कभी पूछते नहीं हो कि तबीयत कैसी है पौधे से तुम पूछ रहे हो? पौधों से पूछने का मतलब? मित्रों ने दरबांग को समझाया कि मालूम होता है तुम्हारा दिमाग खराब हुआ जा रहा है। मालूम होता है ज्यादा दिमाग से श्रम करने के कारण तुम पागल हुए जा रहे हो।

दरबांग ने कहाः दिमाग से काम बंद हो गया है। अब मैं पूरे प्राणों से काम कर रहा हूं। लेकिन कौन माने। तो दरबांग ने कहा कि कैसे तुम मानोगे? लेकिन उसने कहाः तुम सोचते हो? मित्रों ने कहाः सोचते हो, पौधे तुम्हारी सुनते हैं? तो दरबांग ने कहा कि सुनते हैं। क्योंकि पौधों ने मुझे नमस्कार दी है। जब मैंने पौधों से कहाः कैसे हो? तो पौधों ने कहाः ठीक हैं, खुश हैं। मित्रों ने कहाः हमने तो कभी नहीं सुना। अब तो पक्का है कि तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। तुम कोई प्रमाण दे सकते हो? दरबांग ने एक प्रमाण दिया जो अमरीका में घटित हुआ। और वह प्रमाण बहुत अदभुत था।

दरबांग एक कैक्टस के पौधे के पास सात साल तक मेहनत करता रहा। और उस कैक्टस के पौधे में बिना कांटे की डाल नहीं होती, शाख नहीं होती। वह उस पौधे से रोज कहता कि कृपा कर और एक ऐसी शाखा निकाल दे जिसमें कांटे न हों ताकि मित्रों को भरोसा आ जाए कि तूने मेरी सुन ली। दरबांग सात साल तक कहता रहा कि तू कृपा कर और एक शाखा निकाल दे जिसमें कांटे न हों, ताकि मैं भरोसा दिला दूं कि इसने मेरी सुन ली। और सात साल बाद उस पौधे में एक शाखा आ गई जिसमें कांटे नहीं थे। अब दरबांग वैज्ञानिक न रहा प्रेमी हो गया।

अब दरबांग परमात्मा को जान सकता है। प्रेम ही जानने का एक गहरा ढंग है। और जिसको हम ज्ञान कहते हैं वह ऊपर-ऊपर घूमता है।


Sukhpal Gurjar
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लगभग दस साल का अखबार बेचने वाला बालक एक मकान का गेट बजा रहा है..
(शायद उस दिन अखबार नहीं छपा होगा)
मालकिन – बाहर आकर पूछी “क्या है ?
बालक – “आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं?
मालकिन – नहीं, हमें नहीं करवाना..
बालक – हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. “प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।
मालकिन – द्रवित होते हुए “अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा?
बालक – पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना..
मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना….
(लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ.. मालकिन बुदबुदायी)
मालकिन- ऐ लड़के.. पहले खाना खा ले, फिर काम करना…
बालक – नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना…
मालकिन – ठीक है ! कहकर अपने काम में लग गयी..
बालक – एक घंटे बाद “आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं…
मालकिन -अरे वाह ! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए.. यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ..
जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया.. बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा..
मालकिन – भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले.. जरूरत होगी तो और दे दूंगी..
बालक – नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है.. सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है, पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है..
मालकिन रो पड़ी.. और अपने हाथों से मासूम को उसकी दुसरी माँ बनकर खाना खिलाया..
फिर… उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई.. और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी….
और कह आयी-
“बहन आप तो बहुत अमीर हो.. जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं”.ईश्वर बहुत नसीब वालों क़ो ऐसी औलादे देता है 🙏🙏🙏🙏🙏