साहित्य

मेँ वह उम्मीदवार नही…..By-मसरूर अहमद ख़ादिम

मसरूर अहमद ख़ादिम
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मे वह उम्मीदवार नही
जो आप की उम्मीदो पर वार करू बल्कि वह उम्मीदवार हू जो आप की उम्मीदे है उन को पूरा करने मे सहयोगी बनू मगर नहटौर मे पैसा ओर बिरादरी के नाम पर जो खेल खेला जा रहा है उस से मे तक मुतास्सिर हू

मुझे डम्मी बताया गया, ग़रीब बताया गया,चुनाव से बाहर हो गया यह कहा गया,आदि आदि अफवाहे मेरे बारे मे उडाई गई क्यू क्यूकी मेने अंधेरो के खिलाफ रोशनी की हिमायत की मेने बराबरी की बात की,मेने मज़लूम के हक़ की बात की,मेने विधवाओ के सहारे की बात की,मेने पूँजीवाद का विरोध कर समानान्ता की बात,मेने हिम्मत की ग़रीबो का सहारा बन्ने की उस का सिला इन पूँजीवादी प्रत्याशीयो ने मुझे डम्मी बता कर दिया।

आखिर इतना ख़ोफ क्यू ??? इन पूँजीवादीयो को मुझ जेसे साधारण व्यक्ति से शायद इस लिए की मेने बात की बराबरी की,हक़ की,इंसाफ की,सच्चाई की!

यह सब कुछ मे आप लोगो की ताक़त के सहारे ही कर सकता हू यह समय आप की परीक्षा का हे इंसाफ या ज़ुल्म आप को तय करना है मे मुन्तज़िर हू आप के फैसले का मेरे हक़ मे आप क्या फेसला लेते है
“मेरा वजूद आप से है ओर आप सब की उम्मीदो का मे उम्मीदवार हू”
अल्लाह हाफिज़