देश

मोदी के फ़्रांस में, यूरोपीय संसद ने मणिपुर हिंसा को लेकर भारत की तीखी आलोचना की : हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने वाली राजनीतिक के प्रति चिंता ज़ाहिर की : रिपोर्ट

एक तरफ़ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़्रांस दौरे पर हैं, दूसरी तरफ़ यूरोपीय संसद ने मणिपुर हिंसा को लेकर भारत की तीखी आलोचना की है.

इसके साथ ही मणिपुर में हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने वाली राजनीतिक और विभाजनकारी नीतियों के प्रति चिंता ज़ाहिर की गई.

प्रस्ताव में कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति असहिष्णुता के चलते मणिपुर में हिंसा के हालात पैदा हुए हैं.

माना जा रहा है कि मणिपुर हिंसा को लेकर भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है.

यूरोपीय संसद में मणिपुर हिंसा को लेकर हुई बहस पर भारत ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है और इसे अंदरूनी मामला बताया है.

गुरुवार को यूरोपीय संसद ने वेनेज़ुएला, किरगिज़िस्तान और भारत में मानवाधिकार हालात पर तीन प्रस्तावों को स्वीकार किया.

मणिपुर पर प्रस्ताव में क्या कहा गया?
भारत के मणिपुर में हिंसा पर प्रस्ताव में कहा गया है कि मणिपुर राज्य सरकार ने इंटरनेट कनेक्शन बंद कर दिए हैं और मीडिया द्वारा रिपोर्टिंग में गंभीर रूप से बाधा पैदा की है.

हालिया हत्याओं में सुरक्षा बलों के शामिल होने को लेकर प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे प्रशासन के प्रति भरोसा और कम हुआ है.

मणिपुर में बीते मई से हिंसा शुरू हुई है और अब तक 120 लोगों की मौत हुई है, 50,000 लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा है और 17,000 घरों और 250 चर्च नष्ट कर दिए गए हैं.

यूरोपीय संसद ने कड़े शब्दों में भारतीय प्रशासन से हिंसा पर काबू करने की अपील की है और जातीय और धार्मिक हिंसा रोकने और सबी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए तुरंत सारे ज़रूरी उपाय करने को कहा है.

यूरोपी संसद के सदस्यों ने भारतीय प्रशासन से हिंसा की जांच के लिए स्वतंत्र जांच की इजाज़त देने, दंड से बच निकलने के मामलों से निपटने और और इंटरनेट बैन ख़त्म करने की मांग की है.

उन्होंने सभी पक्षों से भड़काऊ बयानबाज़ी बंद करने, भरोसा कायम करने और तनाव में निष्पक्ष भूमिका निभाने की भी अपील की है.

यूरोपीय संसद ने यूरोप-भारतीय साझीदारी में व्यापार समेत सभी पक्षों में मानवाधिकार के मुद्दे को शामिल करने की बात दुहराई है.

यूरोपीय संसद सदस्यों ने यूरोप-भारत मानवाधिकार डायलॉग शुरू करने की वकालत की है.

संसद सदस्यों ने कहा कि यूरोप और इसके सदस्य देश भारत के साथ उच्च स्तरीय वार्ताओं में व्यवस्थित और सार्वजनिक रूप से मानवाधिकार से जुड़ी चिंताओं ख़ासकर बोलने की आज़ादी, धर्म मानने की आज़ादी और सिविल सोसाइटी के लिए सिकुड़ते मौकों के मुद्दे को उठाएं.

इस प्रस्ताव पर हाथ उठाकर वोटिंग कराई गई.

भारत ने प्रस्ताव लाने से रोकने की कोशिश की?

द हिंदू’ के मुताबिक़ भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने नई दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि भारत ने इस मुद्दे पर यूरोपीय संसद के सांसदों को इस मुद्दे को उठाने से रोकने की कोशिश की थी. भारत ने इस मुद्दे पर अपना नज़रिया उनके सामने रखा था, इसके बावजूद वो ये मुद्दा उठा रहे हैं.

क्वात्रा ने ‘द हिंदू’ के एक सवाल के जवाब में कहा, ”ये पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है. हमें पता है कि यूरोपीय संसद में क्या चल रहा है. हमने उनसे इस बारे में बात की है. लेकिन हम ये भी बता दें कि ये पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है.’’

हालांकि उन्होंने अख़बार को एक मणिपुरी अख़बार में छपे इस ख़बर के बारे में बताने से साफ इनकार कर दिया कि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर लॉबिइंग के लिए ब्रसेल्स में एक कंपनी ‘अल्बेर एंड जिजर’ को हायर किया है.

इस कंपनी की सेवा यूरोपीय सांसदों से संपर्क करने के ली गई थी. कहा जा रहा है कि भारत सरकार की ओर से उन्हें इस बारे में चिट्ठी भेजी गई थी.

अख़बार ने लिखा है कि यूरोपीय संसद में पेश किए प्रस्तावों पर भारतीय जनता पार्टी पर हेट स्पीच को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है.

इसमें कहा गया है भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार विभाजनकारी जातीय नीतियों को लागू कर रही है. कुछ दलों ने अफस्पा, यूपीपीए और एफसीआरए नियमों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है.

लेफ्ट ग्रुप की ओर लाए गए एक में प्रस्ताव मणिपुर की स्थिति की तुलना जम्मू-कश्मीर से करने की कोशिश की गई.