साहित्य

यहाँ से निकलने के बाद भी कोई ना कोई ज़िन्दगी तो होगी

Voice of indian muslim
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एक माँ की बच्चेदानी में दो बच्चे थे, दोनों आपस में बातें करने लगे,
एक ने दूसरे से पूछा, “क्या तुम इस थैलीनुमा संसार के पश्चात भी किसी और संसार पर विश्वास रखते हो ?”
दूसरे ने कहा, “अवश्य , यहाँ से निकलने के बाद भी कोई ना कोई ज़िन्दगी तो होगी, संभव है हम यहां इसलिए हों के खुद को आने वाली ज़िन्दगी के लिए तैयार कर लें”
पहला बोला, “भला वह किस प्रकार का ज़ीवन हो सकता है ?”
दूसरे ने कहा:- “मुझे ज्ञात नहीं , लेकिन वहां यहां से ज़्यादा रोशनी होगी, हो सकता है के हम वहां अपने पैरों से चलें और अपने मुंह से खाएं, संभव है वहां हमारे पास अपनी इच्छा शक्ति हों जिसेके बारे में हमें अभी कुछ समझ नहीं है”
पहले ने मज़ाक उड़ाया, “क्या बेवकूफी है, पैरों से चलना मुमकिन ही नहीं और मुंह से खाना ? ये नामुमकिन है, नाफ से जुड़ी नाली से हमें हर वह चीज़ मिल जाती है जिसकी हमें ज़रूरत होती है, लेकिन ये नाली छोटी सी है, जब ये नाली साथ ना होगी तब ज़िन्दगी की कल्पना भी असंभव है,”
दूसरे ने कहा :- ” संभवत:! मेरा विचार है के वहां कुछ ना कुछ अवश्य है और वह भी यहां से अलग, आशा है के वहां हमें खुराक की इस नाली की ज़रूरत ही ना हो, और हो सकता है हम वहां हवा में सांस लें ?”
पहले ने कहा, “बिल्कुल बकवास ! भला हम तो पानी में डूबे हुए ही सांस ले सकते हैं, पानी की थोड़ी सी भी कमी हो तो हमारी ज़िन्दगी खतरे में होती है, और तुम हवा में सांस लेने की बात करते हो, अच्छा चलो ! अगर इसके बाहर भी ज़िन्दगी है तो कोई कभी वहां से वापस क्यूं नहीं आया ? समझ लो के बस यही ज़िन्दगी है उसके बाद कुछ नहीं”,
दूसरा बोला, “खैर मैं ये सब नहीं जानता परंतु मुझे विश्वास है के यहां का जीवन समाप्त होने के पश्चात हमारी मुलाकात हमारी मां से होगी और वही हमारी देख भाल करेगी”
पहला हैरान हुआ, “मां” ? क्या तुम्हे वास्तव मां के होने पर विश्वास है ? अगर यह सत्य है तो अभी वह कहां है ?”
दूसरा बोला :- “मुझे लगता है के मां हमारे चारों तरफ है, हर तरफ, हम भी उसकी वजह से हैं, उसके बगैर ये दुनिया जहान जिसमें हम उपस्थित हैं, ये भी नही होती ”
पहले ने विरोधित स्वर में प्रश्न किया, “अगर मां का अस्तित्व होता तो वह मुझे नज़र भी आती, मुझ से बात भी करती,”इतनी छुप के ना बैठी रहती, अगर हमसे वह इतना भी प्यार करती तो हम को ऐसे ना छोड़ती, इसलिए ! अक्ल यही कहती है के मां का कोई अस्तित्व नहीं है, यह सब कैवल हमारे मस्तिष्क की उपज है और कुछ भी नहीं है”
दूसरे ने जवाब दिया, “कभी कभी जब हम शांत होते हैं, और ध्यान लगाकर सुनने का प्रयास करते हैं तो उसके अस्तित्व का आभास होता है”
कहीं ऊपर से उसकी मुहब्बत भरी आवाज़ सुनाई देती है, हमको अपनी धड़कनों के साथ उसकी धड़कन भी महसूस होती है, वही हमारी मां है, बात सिर्फ महसूस करने की है !”
दोस्तों ! कुछ इसी तरह की अवस्था अभी हमारे और हमारे पालनहार ईश्वर अल्लाह के बीच है ।
” नादान कहते हैं कि अल्लाह ख़ुद हमसे बात क्यों नहीं करता या कोई निशानी हमारे पास क्यों नहीं आती?
ऐसी ही बातें इनसे पहले के लोग भी किया करते थे। इन सब की ज़ेहनियतें एक जैसी हैं। यक़ीन लाने वालों के लिये तो हम साफ़-साफ़ निशानियाँ ज़ाहिर कर चुके हैं।
कुरआन- 2:118
Written by :– Mehrun Nisa Hashmi